Politalka.News/Bharat/P.Chidambaram. एक कटाक्ष भरी पुरानी कहावत है कि चौबे जी बनने निकले थे छब्बे जी लेकिन दुबेजी बनकर लौटे… कुछ ऐसा ही बीते दिनों दिग्गज कांग्रेसी नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम (P. Chidambaram) के साथ हो गया. पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamta Benerjee) की सहानुभूति बटोरने कोलकाता हाईकोर्ट में पैरवी करने छब्बे जी बनकर पहुंचे चिदम्बरम को अपनों के हाथों ही बेइज्जत होकर दुबेजी बनकर लौटना पड़ा. दरअसल, प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) से कांग्रेस (Congress) की बातचीत टूटने के बाद बताया जा रहा है कि पी. चिदंबरम ने अपना महत्व साबित करने के लिए ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस का सद्भाव बनवाने का बीड़ा उठाया. इसी प्रयास के तहत चिदम्बरम कलकत्ता हाई कोर्ट में दर्ज एक जनहित याचिका पर सरकारी पक्ष की पैरवी करने कोलकाता पहुंच गए.
अब ऐसा तो मानने में भी नहीं आता कि इतने बड़े वकील साहब पी चिदंबरम को यह भी नहीं पता हो कि मामले में जनहित याचिका किसने दायर की है? दरअसल, पश्चिम बंगाल के प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ही यह जनहित याचिका ममता सरकार के खिलाफ दायर की थी. मामला मेट्रो डेयरी का है, जिसका बड़ा हिस्सा राज्य सरकार ने कैवेंटर्स कंपनी को दे दिया है. राज्य सरकार का यह पहला और एकमात्र विनिवेश है. इसके खिलाफ अधीर रंजन चौधरी ने याचिका दी है और मामले की सीबीआई जांच की मांग की है.
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लेकिन दिनमान तो बेचारे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम जी के खराब थे जो कि उस कमेटी के अध्यक्ष थे, जिसने प्रशांत किशोर के प्रेजेंटेशन पर फैसला लिया था, और अब कलकत्ता हाईकोर्ट में दर्ज एक जनहित याचिका पर सरकारी पक्ष की पैरवी करने कोलकाता पहुंच गए थे. लेकिन जब चिदंबरम इस मामले में कैवेंटर्स की पैरवी के लिए कोलकाता पहुंचे तो भैया वहां के कांग्रेस नेताओं और पार्टी समर्थक विधायकों ने चिदम्बरम जी का पानी उतार दिया. बड़ी बदसलूकी हुई चिदम्बरम जी की, नारे लगे और तो और उनको दलाल तक बताया गया.
अब ये तो भगवान को ही ठीक कि कानूनी और राजनीतिक रूप से पी चिदंबरम जी का यह प्रयास कितना सफल होगा लेकिन निजी तौर पर कोलकाता की यह यात्रा उनके लिए बहुत बुरी और बेइज्जती भरी रही. शायद इसी तरह के हादसों के लिए यह कहावत बनी होगी कि, ‘चौबे जी बनने निकले थे छब्बे जी लेकिन दुबेजी बनकर लौटे…’