Politalks.News/Bharat/Corona. कोरोना में भी भूख तो लगेगी, पेट तो रोटी से ही भरेगा, जब नौकरी ही नहीं तो पैसा कहां से आएगा? जब पैसा नहीं तो रोटी कौन खिलाएगा? जब रोटी नहीं तो जीवन कैसे और कौन बचाएगा? और अगर इस सब के बाद बीमारी से बच भी गए तो जीवन बचाने की जद्दोजहद में खुद पर हुआ सूदखोरों का कर्ज कौन चुकाएगा? ऐसे ही कुछ और भी सवाल हैं जो आज मजबूर कर रहे हैं लोगों को सरकारी नियम और कायदे तोड़ने के लिए ! कोरोना का दंश हमारा देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व झेल रहा है लेकिन आज हम बात कर रहे हैं सिर्फ भारत की.
हमारे देश में भी अन्य देशों की तरह कोरोना महामारी फैली हुई है लेकिन हमारे देश में जिसे बीमारी और उससे हो रही परेशानियों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है वो सिर्फ जनता है. बेरोजगारी, गरीबी, लाचारी, भूखमरी, अपराध और आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही हैं. क्या इसके लिए सिर्फ देश का नागरिक ही जिम्मेदारी हैं? क्या सरकार की कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही किसी के प्रति नहीं बनती? क्या कोई है जो सरकार से ये पूछ सके कि आज देश के जो भी हालात हैं क्या उसके लिए सिर्फ वो जनता ही दोषी है जिसने अपने वोटों के दम पर राजनेताओं को सोने का सिंहासन दिलाया? आखिर क्या दोष है उस जनता का जिसने अपने अच्छे भविष्य के सपने देखे? क्या सिर्फ हर चीज के लिए जनता पर ही दोषारोपण किया जाता रहेगा? क्या कोई केंद्र और राज्य सरकारों से इन परिस्थितियों के लिए जवाब मांगने वाला है? या फिर क्या आज की परिस्थितियों में सिर्फ जनता ही हर बात, हर गलती, हर जुर्म के लिए जुर्माना भरेगी?
यह भी पढ़ें: आखिर वैक्सीन की कीमतों पर क्या है ‘संशय’? क्यों विपक्ष के निशाने पर है मोदी सरकार? जानिए पूरी बात
चक्की के दो पाटों में पिसती जनता का आखिर कब तक सरकारें तेल निकालती रहेंगी?, कब तक जनता दुधारू गाय की तरह राजनेताओं और पूंजीपतियों के लिए सिर्फ कमाई का जरिया बनी रहेगी? आज जब पूरा देश कोरोना रूपी सर्प का दंश झेल रहा है ऐसे में भारत की जनता के मन ये सवाल भी उठने लगे हैं कि हमें आखिर किन पापों की सजा मिल रही है? देश में 13महीने से आखिर हो क्या रहा है? पिछले साल मार्च में चीन से भारत और दुनियाभर में फैली महामारी पर चीन ने काबू पा लिया है लेकिन आज भी दुनिया इस महामारी से जूझ रही है. भारत में भी कोरोना ने अपने पैर ऐसे पसारे हैं कि ये संभलते ही नहीं बन रहा है, हर तरह की तकलीफों, बंदिशों और परिशानियों से जैसे तैसे अपना-अपनों का जीवन बचाते हुए लोग बद से बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर हो रहे हैं. खाने को रोटी नहीं, रहने को घर नहीं, पीने का पानी नहीं, परिवार चलाने के लिए पैसा नहीं, फिर भी लोग एक उम्मीद में जिए जा रहे हैं कि कभी तो अच्छे दिन आएंगे. क्या कोई बताएगा वो अच्छे दिन कब आएंगे?
अगर एक तरफ मान भी लिया जाए कि सरकारें लोगों के हित की बात रही हैं तो भी मास्क नहीं लगाने पर जुर्माना जनता भरे, बाजारों में सामान लेने सड़कों पर जाए तो नियमों के उल्लंघन का जुर्माना जनता भरे, अस्पतालों में मरीज भर्ती हो तो पैसा जनता भरे, अस्पतालों की कमियों से जनता जूझे, देश की अर्थव्यवस्था खराब हो तो उसकी भरपाई जनता से, पानी, बिजली और टेलीफोन और अन्य बिलों सहित खरीद-फरोख्त में टैक्स का भुगतान जनता करे. ऐसे में जेहन में कुछ सवाल आना अब लाजमी हो गया है कि आखिर कब तक मर-मर के जीते रहेंगे लोग? कब तक सरकार के बनाए थोथे नियमों का पालन करते रहेंगे लोग?, कब तक अपनों का जीवन बचाए रखने की जद्दोजहद करते हुए सरकारों का टैक्स और जुर्माने से पेट भरते रहेंगे लोग? कोरोना में परिवार का पेट भरने की जिम्मेदारी जब खुद की है तो कमाने के लिए बाहर जाना क्या गुनाह है?
यह भी पढ़ें: देशभर में कोरोना का महाकोहराम जारी, ज्यादातर अस्पतालों में बची कुछ घण्टों की ऑक्सीजन ने डराया
एक समाजसेवक ने जनता के पक्ष में सरकारों को ही आड़े हाथों लिया, उनके अनुसार अब सवाल ये उठता है कि इतना सब होने के बाद भी गलतियों और कमियों का खामियाजा या जुर्माना सिर्फ जनता ही क्यों भरे? अस्पतालों में बेड नहीं मिले तो, कोरोना जांच के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध न हों तो, मरीजों को जीवन रक्षक दवा नहीं मिले तो, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी हो तो, महामारी में सरकारी सहायता आधी-अधूरी मिले तो, मौत के बाद कब्रिस्तान में दफनाने की जगह न मिले तो, श्मशान में जलाने को घंटों इंतजार करना पड़े फिर भी जगह न मिले तो, मृत्यु के बाद अगर जलाने के लिए लकड़ी या शवदाह गृह न मिले तो सरकार कितना जुर्माना देगी? इन सारी अव्यवस्थाओं की स्थिति में सरकारों पर कितना जुर्माना लगना चाहिए? ये भी तय हो. हाल ही में हुए महाकुंभ और विधानसभा चुनावों में सरकारों और नेताओं द्वारा रैलियों और सभाओं में कोरोना गाइडलाइन का जमकर उल्लंघन करने के जुर्म में नेताओं पर कितना जुर्माना लगना चाहिए?, क्योंकि बड़ी संख्या में इन सभाओं और रैलियों ने देश में कोरोना की गति को कई गुना तक बढ़ा दिया है.
… और इस सब से इतर सबसे खास बात धर्म के ठेकेदारों से भी ये पूछा जाना चाहिए कि कोरोना महामारी के दौर में देश में कुंभ के आयोजन की क्या मजबूरी थी? क्यों धर्म के ठेकेदारों और सरकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया?, क्यों कुंभ को मंजूरी दी गई?, क्यों दिल्ली में मरकज के आयोजन और उससे हुई परेशानियों से भी सरकारों ने सबक नहीं लिया? लाखों लोगों का जीवन खतरे में डाल कर सरकारें सिर्फ जनता पर जुर्माना लगा रही है, क्या सरकार पर इतनी बड़े उल्लंघन के लिए नहीं लगना चाहिए जुर्माना?
यह भी पढ़ें: यात्री अपने सामान यानी जान की रक्षा स्वयं करें- मोदी के भाषण पर विपक्ष ने लगाए पल्ला झाड़ने के आरोप
बहरहाल इस पूरी बात से किसी की धार्मिक भावना को आहत करना हमारी मंशा नहीं लेकिन आखिर क्यों सरकारें अपने राजनीतिक लाभ के लिए भोली-भाली जनता का खून चूसने में लगी हैं? आखिर क्या इन सरकारों का फर्ज नहीं बनता कि जब जनता पर नियम लागू हों तो पहले उनके पालना की शुरूआत सरकार और उनके नुमाइंदों को खुद से करनी चाहिए? और अगर ऐसा नहीं है तो फिर इन पर भी जुर्माना आखिरकार लगना ही चाहिए.