महाराष्ट्र में मॉनसून की आगवानी ने पारा चाहे नीचे गिरा दिया हो, लेकिन सियासी सरगर्मियां तेज हैं. अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए हर मोर्चे पर तैयारी जोर-शोर से है. एक समय में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले महाराष्ट्र में बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में धुंआधार एंट्री की और कांग्रेस के किले को ध्वस्त कर दिया.
वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में शिवसेना के साथ एलायंस ने उन्हें बड़े भाई की भूमिका में ला दिया. लोकसभा में शानदार जीत के बाद अब सबकी नजर विधानसभा में इस जोड़ी के प्रदर्शन पर है.
हालांकि पिछला विधानसभा चुनाव दोनों ने अलग-अलग लड़ा था और उसके बाद से पांच साल तक शिवसेना अपने विचारों को लेकर काफी बेबाक नजर आई. कई बार जुबानी हमले किए गए और इनके बीच की ये अंदरूनी रार भी किसी से छुपी नहीं है. लेकिन इस बार शिवसेना के मुखपत्र सामना में जिस तरह से सीएम पद को लेकर लिखा गया, मतलब साफ है कि शिवसेना अब छोटा भाई बनकर नहीं, बल्कि बराबरी चाहती है. ढाई-ढाई साल के फॉमूले को चाहती है.
हालांकि हाल ही में आलाकमान की तरफ से ये सख्त निर्देश दिए गए है कि दोनों ही दलों के मुखिया के अलावा मीडिया में कोई और बयान नहीं दिया जाएगा और ये चुनाव साथ मिलकर लड़ा जाएगा.
इन सबके बीच दिलचस्प सवाल ये है कि क्या शिवसेना सीएम पद के चेहरे के रूप में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को उतारने की तैयारी मे है? क्या ठाकरे परिवार के चिराग इस बार चुनाव लड़ेंगे? हालांकि चुनाव लड़ना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन शिवसेना में अगर ऐसा होता है तो ये एक बड़ा बदलाव होगा. बड़ा इसलिए क्योंकि अब तक ठाकरे परिवार सिर्फ परदे के पीछे से काम करता आया है. ये सत्ता का हिस्सा न बनकर संगठन के लिए काम करते आए हैं. इस परिवार से कभी किसी ने चुनाव नहीं लड़ा है.
वैसे आदित्य ठाकरे युवा विंग को लेकर काफी सक्रिय रहे हैं लेकिन बाला साहब ठाकरे से लेकर आदित्य ठाकरे तक किसी ने चुनाव नहीं लड़ा है. ऐसे में इस बार मैदान में आना नीतियों में बदलाव जरूर है. हालांकि ये कयास ही है. इससे पहले भी बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन के समय खबरें थीं कि ठाकरे लोकसभा चुनाव लड़ सकते है पर ऐसा नहीं हुआ.
लेकिन इस बार शिवसेना प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने जिस तरह से आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठाई, तब से ही चर्चाएं तेज हैं. उन्होंने हाल ही में कहा कि लोग चाहते हैं कि आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम हो. हालांकि ये भविष्य के गर्भ में है.
लेकिन जिन मुद्दो को लेकर शिवसेना शुरू से आक्रामक रही है, उससे तो साफ है कि सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पटल पर भी आने की तैयारी है. उद्दव ठाकरे शुरू से ही राम मंदिर और राष्ट्रवाद को लेकर बेबाक रहे हैं. ये सब जानते हैं कि इसके जरिए बीजेपी ने पूरे चुनाव लड़े और अब तक विजय पताका फहरा रही है.
ये विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए भी बड़ी चुनौती है. अपनी खोई हुई जमीन को पाने और मेन स्ट्रीम राजनीति में वापस आने का एक सुनहरा मौका है, लेकिन कांग्रेस के लिए यहां चुनौती सिर्फ बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ही नहीं, बल्कि प्रकाश अंबेडकर की वीबीए और औवेसी की एआईएमआईएम भी है.
हालांकि बीजेपी को लेकर आक्रामक रहने वाले दोनों ही दल वोटिंग स्ट्रेटजी में कांग्रेस-एनसीपी के लिए मुसीबत बन सकते हैं. इन दलों की वजह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-एनसीपी को सात से आठ सीटों का नुकसान हुआ है और वोट प्रतिशत गिर गया. दो बड़े कांग्रेस दिग्गज सोलापुर और नादेंड से चुके हैं इसलिए इस बार कांग्रेस विधानसभा में ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी. वैसे भी विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों और लोकल चेहरों पर लड़े जाते हैं. ऐसे में इन दोनों ही दलों का वर्चस्व कुछ इलाकों में जरूर है.
इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 2014 विधानसभा चुनाव और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम अपनी सीटें निकालने में कामयाब रहीं और इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ.
कांग्रेस को फिलहाल गठबंधन करने से पहले सोचना पड़ेगा कि क्या वो अंबेडकर की सारी मांगें मानकर गठबंधन में शामिल करे या फिर अलग से चुनाव लड़े. खैर महाराष्ट्र में फिलहाल एलायंस की राजनीति है. लेकिन क्या ये चुनाव एक महागठबंधन तैयार करेगा, ये देखना अभी बाकी है.