हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग की तरफ से जल्द की जा सकती है. संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आयोग सितंबर और अक्टूबर के महीने में हरियाणा में विधानसभा चुनाव करवा सकता है. पॉलिटॉक्स न्यूज हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर एक विशेष कार्यक्रम शुरु करने जा रहा है. हम आपको इस कार्यक्रम में हरियाणा की हर विधानसभा सीट की ग्राउंड रिर्पोट से अवगत करवाएंगे. आज हम बात करेंगे जींद विधानसभा की…

जींद विधानसभाः
हरियाणा की राजनीति में जींद जिले का अलग ही महत्व है. यह इलाका जाट राजनीति का गढ़ माना जाता है. जींद विधानसभा में लगभग 35 प्रतिशत जाट मतदाता है, लेकिन इलाके में भारी तादाद होने के बावजूद भी आज तक जींद विधानसभा क्षेत्र से कोई जाट प्रत्याशी विधायक नहीं बन पाया है. यहां के नतीजे हमेशा से जाट राजनीति के स्वीकार्यता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते है.

जींद विधानसभा का इतिहासः पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखा जाए तो यह क्षेत्र कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल के लिए मुफीद मालूम पड़ता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मांगेराम गुप्ता यहां से चार बार विधायक चुने गए. लेकिन 2009 के चुनाव के बाद मांगेराम गुप्ता सक्रिय राजनीति से दूर हो गए.

मांगेराम की सियासत से बेरुखी का फायदा जींद में इनेलो ने उठाया और 2009 के जींद विधानसभा चुनाव में पंजाबी नेता हरिचंद मिड्ढा ने इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट पर जीत हासिल की. मिड्ढा की जीत का सिलसिला 2014 के विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा. इस बार मिड्ढा ने बीजेपी नेता सुरेंद्र सिंह बरवाला को लगभग दो हजार मतों से मात दी. लेकिन अगस्त, 2018 में मिड्ढा के निधन के बाद जींद विधानसभा सीट खाली हुई.

जींद उपचुनावः
इनेलो विधायक हरिचंद मिड्ढा के निधन के बाद जनवरी, 2019 में जींद में उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव को हर राजनीतिक पार्टी ने लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना. हर राजनीतिक दल ने दमखम से चुनाव लड़ा और अपने मजबूत प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारा.
कांग्रेस की तरफ से पहले कलायात से आजाद विधायक जेपी के पुत्र को चुनाव लड़ाने की चर्चा थी, लेकिन पार्टी ने कैथल विधायक रणदीप सुरजेवाला को मैदान में उतारा.

हरिचंद मिड्ढा के पुत्र कृष्ण मिड्ढा पिता के निधन के बाद इनेलो छोड़ बीजेपी में शामिल हो गये. बीजेपी ने सहानूभूति वोट बटोरने के लिए कृष्ण मिड्ढा को प्रत्याशी बनाया. इनेलो के पास मजबूत प्रत्याशी का अकाल था तो उन्होंने जिला परिषद सदस्य उम्मेद सिंह रेढू और नई नवेली जननायक जनता पार्टी ने दिग्विजय चौटाला को चुनावी समर में उतार दिया.

चुनाव की शुरुआत में लगा कि दिग्विजय चुनाव निकाल लेंगे लेकिन नतीजे अनुमान के विपरित आए. बीजेपी प्रत्याशी कृष्ण मिड्ढा ने भारी अंतर से चुनाव जीता. जजपा के चौटाला दूसरे नंबर पर रहे. कैथल विधायक रणदीप सुरजेवाला किसी तरह अपनी जमानत बचाने में कामयाब हुए. चार साल पहले सीट पर कब्जा करने वाली इनेलो की जमानत जब्त हो गई.

2019 विधानसभा चुनावः
पार्टियों ने जींद विधानसभा को लेकर तैयारियां शुरु कर दी है. अनेक पार्टियों ने यहां से उतरने वाले प्रत्याशियों के नाम भी लगभग फाइनल कर दिए है. उपचुनाव में हार के बाद जिस प्रकार दिग्विजय चौटाला क्षेत्र के लोगों का धन्यवाद देने जींद आए, उससे यह तय लग रहा है कि दिग्विजय इस बार भी चुनाव जींद से ही लड़ेंगे.

बीजेपी के सामने प्रत्याशी चयन को लेकर कोई समस्या नहीं है. पार्टी ने अभी 5 महीने पूर्व उपचुनाव में जीत हासिल की है इसीलिए बीजेपी की तरफ से विधायक कृष्ण मिड्ढा का टिकट तय माना जा रहा है. कांग्रेस के पास जींद में कोई मजबूत नेता नहीं है. इसका नमूना विधानसभा चुनाव में देख चुके है कि कैसे कैथल के विधायक रणदीप सुरजेवाला को चुनाव लड़ाने के लिए जींद लाया गया था.

यह देश में पहला बिरला उदाहरण था जब किसी वर्तमान विधायक को उपचुनाव में उतारा गया था. अब रणदीप आगामी चुनाव में तो कैथल विधानसभा से चुनाव लड़ेगे, यह तय है. ऐसे में पार्टी यहां किसी नए चेहरे पर दांव खेलेगी. ये नया चेहरा कलायत विधायक जेपी के पुत्र हो सकते है. इनेलो हरियाणा में अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है. उपचुनाव में उसके प्रत्याशी की जमानत जब्त हो चुकी है इसलिए इस बार इनेलो भी किसी नए चेहरे पर दांव खेलेगी.

जीत की संभावनाः
आगामी विधानसभा चुनाव में जींद क्षेत्र के ग्राउंड रिर्पोट की बात करे तो बीजेपी काफी मजबूत नजर आ रही है. अगर कांग्रेस की तरफ से कोई कमजोर प्रत्याशी उतारा जाता है तो जजपा मुकाबले में आ सकती है. लेकिन अगर पिछले चुनाव की तरह विपक्षी पार्टियों के प्रत्याशी मजबूत रहे तो यहां से बीजेपी के जीतने की संभावना ज्यादा है.

बीजेपी की जीत के कारणः
बीजेपी की जीत की संभावना इसलिए ज्यादा है क्योंकि यहां जाट मतदाताओं की तादाद लगभग 35 फीसदी है लेकिन 65 फीसदी गैर जाट वोट बीजेपी के पक्ष में लामबंद नजर आ रहा है. इलाके में पंजाबी, वैश्य, ब्राहम्ण और सैनी वोट बहुतायात में है. उपचुनाव में यहां राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा मंच ने चुनाव लड़ा था और उनके प्रत्याशी पंडित विनोद आशरी ने 13000 हजार मत हासिल किये थे.

इन मतों में सबसे ज्यादा हिस्सा सैनी समुदाय का था. अब राजकुमार सैनी की पकड़ सैनी समाज में ज्यादा बची नहीं है. जाट विरोध के कारण इस बार इन वोटों का भी बीजेपी की तरफ जाना तय है

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