पॉलिटॉक्स न्यूज. कोरोना संकट से दुनिया का कोई भी देश अछूता नहीं रहा. स्वाभाविक है कि भारत भी कोरोना का शिकार बना. राष्ट्रीय महामारी होने के कारण केंद्र सरकार पर हर बात की सीधी जिम्मेदारी आई. वहीं राज्य सरकारें भी इससे बच नहीं सकती. राजनीति का कोई समय नहीं होता. उसे करने के लिए कोई भी ऐसा आइडल फार्मेट नहीं है, जिसे अपनाया जा सके. सो देश में कोरोना की शुरूआत से लेकर अब तक राजनीति अलग ही अंदाज में होती रही है.
कभी केंद्र और राज्यों के बीच मतभेद खुलकर सामने आते रहे तो कभी हाॅस्पिटल की व्यवस्थाओं और मजदूरों पर जमकर चौसर खेली गई. आर्थिक मसलों पर तो राजनीति अभी भी ऐसे हो रही है, जैसे देश की विभिन्न पार्टियों के नेता इसके बिना एक भी दिन नहीं रह सकते हो.
गाइडलाइन बनाकर पहले लाॅक फिर अनलाॅक कर जनता को उसके हाल पर छोड दिया गया. जिन राज्यों में कोरोना कहर बरपा रहा है, वहां कि सरकारों की सारी व्यवस्थाओं की पोल भी खुलकर सामने आ रही है. टेस्टिंग से लेकर मरीजों के इलाज और क्वारंटाइन किए गए लोगों के ठहरने और उनके भोजन की व्यवस्थाओं पर हर राज्य अलग ही तरह के सवालों के घेरे में हैं. कहीं घटिया व्यवस्थाओं के कारण क्वारंटाइन किए गए लोगों का गुस्सा सामने आया तो कहीं कोरोना वायरस से लड़ने के लिए खरीदे गए उपकरणों की खरीद फरोख्त में भ्रष्टाचार के मामले भी उजागर हुए. खास बात यह है कि देश में कोरोना से जंग अलग ही अंदाज में लड़ी जा रही है. केंद्र सरकार की गाइड लाइन के बीच हर राज्य का अपना एक अलग फार्मूला है.
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लाॅकडाउन वन से लेकर अनलाॅक वन तक का सफर देशवासियों के लिए बड़ा ही असमंजस भरा रहा. सरकार के निर्णय भले की विशेषज्ञों की सलाह पर हो रहे हैं. फिर भी लोगों की समझ के बाहर रहे.
क्या था लाॅकडाउन वन
शुरूआत लाॅकडाउन 1 से हुई. प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आए और लाॅकडावन वन की घोषणा कर दी. लोगों को कुल चार घंटे का समय दिया गया. यानि की प्रधानमंत्री ने रात आठ बजे घोषणा की और रात 12 बजे से लाॅकडाउन वन पूरे देश में लागू हो गया.
घर की दहलीज बनी लक्ष्मण रेखा
21 दिनों का पहला लाॅकडाउन बहुत सख्त था. मोदी सरकार ने घोषणा कर कहा कि लोगों को अपने घरों की दहलीजों में ही रहना होगा. देश में सभी तरह के यातायात संसाधन सहित सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर भी पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई. इस तरह अचानक हुए लाॅकडाउन से लोग सहम से गए. लोगों को हिदायत दी गई कि वो अपने परिजनों से भी सोशल डिस्टेंसिंग बनाएं. मोदी ने कहा था कि कोरोना वायरस की साइकिल को तोड़ने के लिए 21 दिन का समय महत्वपूर्ण है. 24 मार्च को शुरू हुए लाॅकडाउन वन के पहले दिन भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 519 थी.
ताली, थाली, दीपक और टार्च
इन 21 दिनों के बीच भारत में कोरोना इवेंट भी हुए. मोदी सरकार ने कोरोना वारियर्स का हौसला बढ़ाने और उन्हें सम्मान देने के लिए एक दिन जनता से तालियां और थालियां बजवाई. एक दिन टार्च और दीपक जलवाए. अतिउत्साहित लोगों ने यह काम करने के साथ-साथ लगे हाथों आतिशबाजी कर खुशी भी जता दी.
इन 21 दिनों में होती रही जमकर राजनीति
लाॅकडाउन वन के 21 दिनों में देश में जमकर राजनीति होती रही. जरूरतमंद लोगों के घरों में खाद्य सामग्री पहुंचाने को लेकर आरोप प्रत्यारोप के खेल चलते रहे. कहीं गेहूं तो कहीं चावल पहुंचाने में भाजपा और कांग्रेस नेता एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने में उलझे रहे. भला हो देश के समाजिक संगठनों और भामाशाहों का जिन्होंने जमीनी स्तर पर व्यवस्थाओं को संचालित कर सही मायने में लोगों को राहत पहुंचाई. पहला लाॅकडाउन 14 अप्रेल तक चला.
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पुलिस ने जमकर हाथ साफ किए
इस लाॅकडाउन के नियमों की पालना कराने के लिए विभिन्न राज्यों की पुलिस ने कानूनों को ताक में रखकर नागरिकों की जमकर पिटाई की. सोशल मीडिया पर पुलिस की बर्बता से भरे वीडियो देखकर हर कोई हैरान था. कई स्थानों पर कानून की पालना कराने के लिए पुलिस बेरहम बनी नजर आई. कहीं लोगों को डंडों से बुरी तरह पीटा गया तो कहीं उन्हें मुर्गा बनाकर प्रताड़ित किया गया. यह सिलसिला कई स्थानों पर तो अभी भी जारी है.
खबरें यूं चली, जैसे कोरोना मुसलमान फैला रहे हो
इसी दौरान दिल्ली के मरकज का मामला सामने आया. यहां आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में मुसलमान जुटे थे. मामला खुला तो फिर यह मीडिया के एक वर्ग के ऐजेंडे में बदल गया. कई दिनों तक इस तरह की खबरों को परोसा गया जैसे देश में कोरोना को मरकज से जुड़े मुसलमान फैला रहे हो. इस बात की अंतराष्टीय स्तर पर भी आलोचना हुई. भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष ने बयान दिया कि कोरोना का संबंध किसी जाति या धर्म से नहीं है. सोशल मीडिया में भी कई लोगों ने मरकज से जुड़े मुसलमानों को निशाना बनाकर पोस्टें डाली.
15 अप्रैल से लाॅकडाउन 2
एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आए और देश को बताया कि लाॅकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ा दी गई है. यह लाॅकडाउन भी पहले लाॅकडाउन की तरह सख्ती भरा था. इस दौरान घरों में बंद विभिन्न राज्यों के प्रवासी मजदूरों का असंतोष सामने नजर आया. मजूदरों को भरोसा था कि सरकारें उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर देगी. लेकिन यह राजनीति चूक ही रही कि सरकारों ने इस और कोई ध्यान ही नहीं दिया. परिणाम स्वरूप देश के कई राज्यों में घरों बंद मजदूर लक्ष्मण रेखा उघांल कर सड़कों पर प्रदर्शन करने आ गए. जगह-जगह हालात तनाव पूर्ण बने. सरकार और मजदूर आमने सामने हो गए. कई स्थानों पर लाठीचार्ज और पत्थरबाजी हुई.
लॉकडाउन 3 और रेड, ग्रीन ऑरेंज जोन
रेड, ग्रीन और ऑरेंज के काॅन्सेप्ट के बीच गृहमंत्रालय ने लाॅकडाउन 3 घोषित किया. यह भी असमंजस भरा रहा. ग्रीन, ऑरेंज और रेड जोन का यह फार्मूला भी बहुत कारगर नहीं रहा. क्यूंकि हर दिन हर जगह की स्थिति में बदलाव हो रहा था. ऐेसे में किसी भी क्षेत्र को कोई एक जोन बनाकर नहीं रखा जा सकता था. आखिरकार बात सारी केंटोंमेट जोन पर आकर समाप्त हो गई. इस दौरान केंद्र और राज्य सरकारो के बीच गाइड लाइन को लेकर खींचतान चलती रही. कई राज्य सरकारों का आरोप रहा कि केंद्र सरकार दिल्ली में बैठकर राज्यों में इस तरह के जोन का निर्धारण नहीं कर सकती है. इन तीनों जोन का काॅन्सेप्ट यह रहा है कि जिन क्षेत्रों में पिछले 18 दिनों में कोरोना पाॅजिटिव मिले हैं, वो रेड जोन में रहेंगे. यहां सभी तरह की गतिविधियों पर पूर्ण पांबदी रही.
कोरोना काल कथा – भाग 2 अगले पार्ट में जारी…