Politalks.News/Bihar/Rahul Gandhi. बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरण समाप्त हो चुके हैं. तीसरा और अंतिम चरण 7 नवंबर को है और 10 नवंबर को नतीजे आएंगे. कांग्रेस के लिए इन चुनाव की अहमियत सिर्फ बिहार में सत्ता तक पहुंचना नहीं है बल्कि चुनाव के नतीजे पार्टी की अंदरूनी सियासत पर भी असर डालेंगे. बिहार के चुनावी परिणाम न केवल बिहार बल्कि कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य पर भी गहरा प्रभाव डालेंगे. बिहार की चुनावी रैलियों में राहुल गांधी के आक्रमक तेवरों और बिहार के सकारात्मक परिणाम (अगर आते हैं तो) मिलकर कांग्रेस के अंदरूनी चुनावों में वो काम कर जाएंगे जो पिछले डेढ़ साल में पार्टी में फूट पड़ने की असली वजह बन गए हैं.
दरअसल, बिहार में राजद और कांग्रेस वामदलों के साथ मिलकर महागठबंधन के बैनर तले विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. इस चुनाव में देखा जाए तो कांग्रेस की तरफ से एक आत को छोड़ दें तो कोई बड़ा चेहरा मैदान में नहीं है. यहां स्टार प्रचारक के तौर पर राहुल गांधी ही ताबड़तौर रैलियां और जनसभाओं में नजर आ रहे हैं. प्रियंका गांधी यूपी से बाहर नहीं निकल रहीं और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी गिनी चुनी डिजिटली कैंपेनिंग कर रही हैं. यहां पार्टी के चुनावी प्रचार की बागड़ौर राहुल गांधी के हाथों में हैं जो बिहार के स्थानीय नेताओं को भी लीड कर रहे हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी की तरफ से प्रचार का जिम्मा राहुल गांधी संभाल रहे हैं. अगर बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिलती है और पार्टी महागठबंधन के साथ सत्ता हासिल करने में कामयाब होती है तो राहुल गांधी की राहत आसान हो जाएगी. वहीं राहुल गांधी जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की केंद्र सरकार पर आक्रामक हैं, उनके आक्रामक तेवरों को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि वह पार्टी के अंदरूनी चुनाव के जरिए अध्यक्ष के तौर पर वापसी कर सकते हैं. यह सब बिहार के चुनावी परिणामों पर निश्चित तौर पर निर्भर करेगा.
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कुछ महीनों पहले कांग्रेस के 23 असंतुष्ट नेताओं ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठन से संबंधित कुछ सवाल उठाए थे. इसके बाद पार्टी ने असंतुष्ट नेताओं को साथ लेकर चलने की कोशिश करते हुए कुछ बदलाव भी किए. उसके बाद पार्टी के इन असंतुष्ठ नेताओं की पार्टी के खिलाफ कुछ बगावती बयान भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे. हालांकि कुछ ने बाद में उन्हें हटा लिया और कुछ ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली. लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए पार्टी ने इस सभी पर कोई सख्त एक्शन नहीं लिया. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का हालिया बयान भी इस मुद्दे और बिहार चुनाव के परिणामों का कनेक्शन स्पष्ट करता है. उन्होंने कहा कि अगर बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहता है, तो असंतुष्ट नेता एक बार फिर मुखर हो सकते हैं जो पार्टी हित में नहीं है.
इसके दूसरी ओर, बिहार चुनाव में अगर कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करती है तो असंतुष्ट नेताओं का स्वर दबेगा. हालांकि कांग्रेस कितना भी अच्छा प्रदर्शन कर लें, अकेले तो सत्ता पर काबिज नहीं हो सकती. इसकी वजह है कि कांग्रेस केवल 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. लेकिन राहुल गांधी की राह जरूर प्रशस्त हो जाएगी क्योंकि बिहार चुनावों में बड़े नेताओं के तौर पर केवल राहुल गांधी ही बिहार की सरजमीं पर दिखाई दिए हैं. हां..अगर कांग्रेस राजद और वामदलों के साथ सत्ता पर काबिज होती है, साथ ही निजी तौर पर अच्छा प्रदर्शन करती है तो कांग्रेस में विरोध के स्वर जरूर दब जाएंगे.
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बिहार चुनाव के सकारात्मक परिणाम राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस की बागड़ौर राहुल गांधी के हाथों में अधिकारिक तौर पर दिला सकते हैं, इस बात में दो राय नहीं होनी चाहिए. इससे पहले पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने असंतुष्ट नेताओं की तरफ से लिखे गए पत्र को लेकर हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण का गठन पहले ही कर चुकी हैं. प्राधिकरण की कई दौर की बैठक हो चुकी है और माना जा रहा है कि अगले साल कई राज्यों के होने वाले चुनाव से पहले कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा.
अंदरूनी सूत्र और राजनीतिक विशेषज्ञ ये बता रहे हैं कि अंतपंत राहुल गांधी को ही पार्टी की बागड़ौर संभालनी पड़ेगी. अगर इस बात पर यकीन कर लिया जाए तो निश्चित तौर पर बिहार के सकारात्मक चुनावी परिणाम राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष बनने की राह सुगम करेंगे क्योंकि, इसके बाद आने वाले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है.