आप साथ रहिए या विरोध में, अगले 20-30 साल तक राजनीति रहेगी बीजेपी के इर्द-गिर्द ही- प्रशांत किशोर

आजादी के बाद के 50-60 सालों तक देश की राजनीति कांग्रेस के इर्दगिर्द घूमती थी, 1977 के दौर को छोड़कर आजादी के बाद से 1990 तक कांग्रेस ही राजनीति के केंद्र में रही, उस समय भी आज जैसा माहौल था ,आप साथ रहिए या विरोध में, उस समय राजनीति का हर पैंतरा कांग्रेस की तरफ से था, कोई भी पार्टी पैन इंडिया अपनी पकड़ नहीं बना पा रही थी, ठीक इसी प्रकार आज इसके केंद्र में बीजेपी है, इसीलिए आने वाला एक लंबा वक्त भाजपा का हो सकता है, यदि उसे मिलकर चुनौती नहीं दी गई

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Politalks.News/PrashantKishore. बीते रोज बुधवार को इंडियन एक्सप्रेस (Indian Express) के कार्यक्रम ई-अड्डा में कार्यकारी निदेशक अनंत गोयंका और द इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ओपिनियन एडिटर वंदिता मिश्रा के साथ बातचीत करते हुए प्रमुख चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) ने खुलकर अपनी बातों को रखा. प्रशांत किशोर का कहना है कि आजादी के बाद के 50-60 सालों तक देश की राजनीति (Politics) कांग्रेस के इर्दगिर्द घूमती थी. पीके ने कहा कि 1977 के दौर को छोड़कर आजादी के बाद से 1990 तक कांग्रेस (Congress) ही राजनीति के केंद्र में रही. उस समय भी आज जैसा माहौल था. आप साथ रहिए या विरोध में, उस समय राजनीति का हर पैंतरा कांग्रेस की तरफ से था, कोई भी पार्टी पैन इंडिया अपनी पकड़ नहीं बना पा रही थी. ठीक इसी प्रकार आज इसके केंद्र में बीजेपी (BJP) है. पीके ने कहा कि आप साथ रहिए या विरोध में, अगले 20-30 साल तक राजनीति बीजेपी के इर्द-गिर्द ही रहेगी.

इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम ई-अड्डा में प्रशांत किशोर ने आगे कहा कि कांग्रेस देश में एक मुख्य विपक्षी दल है, जो दशकों तक सत्ता में रही है. लेकिन कांग्रेस यह सीखना होगा कि विपक्ष में कैसे रहा जाता है. आप यह कह के नहीं बच सकते हैं कि मीडिया हमें कवर ही नहीं कर रहा है. इससे ऐसा लगता है कि उन्हें सत्ता में ही रहने की आदत हो गई है और लोग आज उनकी सुन नहीं रहे हैं तो खीझ पैदा हो रही है. पीके ने कहा कि भाजपा से फिलहाल कोई एक अकेला दल मुकाबला नहीं कर पाएगा. इसके लिए उन्होंने कांग्रेस का ही उदाहरण देते हुए कहा कि 1950 से 1990 के दशकों में हम देखते हैं कि कांग्रेस का मुकाबला कोई एक दल नहीं कर पा रहा था. इसमें एक लंबा वक्त लगा था. इसीलिए मैं कहता हूं कि आने वाला एक लंबा वक्त भाजपा का हो सकता है, यदि उसे मिलकर चुनौती नहीं दी गई.

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प्रशांत किशोर ने कहा कि कोई एक दल यदि सोचे कि वह भाजपा को मात दे देगा तो यह गलत है. 1984 के दौर में कांग्रेस चरम पर थी, उस समय मिली जीत ऐतिहासिक थी, वह बहुत बड़ी जीत थी. लेकिन 1990 के बाद के दौर में कांग्रेस सिमटने लग गई. 2000 के बाद सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी खड़ी हुई और अटल बिहारी जैसी शख्सियत को चुनौती भी दी और उसके बाद 10 सालों तक यूपीए की सरकार भारत में रही, लेकिन इस दौर को ऐसा नहीं माना जा सकता कि हर तरफ कांग्रेस थी. गठबंधन की बैसाखी पर चलकर वो सरकार बना तो रही थी पर उसकी वो अपील नदारद थी, जो 90 के पहले हुआ करती थी. 2004 में कांग्रेस की 145 सीटों से सरकार बनी थी. तो हम देख सकते हैं कि 1990 के बाद लगातार उसमें गिरावट आती रही है. वर्तमान दौर में विपक्ष की मजबूती को लेकर प्रशांत किशोर ने कहा कि मुद्दों के आधार पर सरकार के खिलाफ एक बड़ा वर्ग दिखता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उसका फायदा विपक्ष उठा ही पाएगा.

प्रशांत किशोर ने आगे बताया कि राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए चर्चा में बने रहने की जरूरत होती है. फिर वो चाहे पॉजिटिव हो या नेगेटिव, लेकिन कांग्रेस इस मामले में फिसड्डी होती दिख रही है. पार्टी अब चर्चाओं में रहती है तो हार या बगावत की वजह से. पीके ने कहा कि कांग्रेस लगातार गिरावट झेलती रही है. आपातकाल. बोफोर्स, मंडल आंदोलन, राम मंदिर आंदोलन और फिर 2014 में हुए इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट ने कांग्रेस के वोट शेयर में लगातार कमी की. प्रशांत किशोर ने कहा कि कांग्रेस लगातार गिरती आ रही है और उसने अपने वोटबैंक को रिकवर नहीं किया है.

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प्रशांत किशोर ने कहा कि आपको एक नैरेटिव तैयार करना होगा कि लगातार संघर्ष कर रहे हैं और तभी नतीजा निकलेगा. पीके ने कहा कि आप देखेंगे कि शाहीन बाद और किसान आंदोलन जैसे प्रदर्शनों में कोई चेहरा नहीं था. लेकिन कुछ लोग एक मुद्दे के पीछे साथ आए और लगातार प्रदर्शन करते रहे और फिर सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़ गए. इससे पता चलता है कि यदि आपके पास नैरेटिव है तो फिर किसी करिश्माई चेहरे की भी जरूरत नहीं है. पीएम नरेंद्र मोदी, कैप्टन अमरिंदर सिंह और ममता बनर्जी जैसे नेताओं की जीत चेहरे के आधार पर होने के सवाल पर प्रशांत किशोर ने कहा कि इसके पीछे नैरेटिव भी था. यदि आप पास नेता एक मेसेंजर के तौर पर हो और मेसेज भी सही तो काम आसान हो जाता है, लेकिन नैरेटिव सबसे अहम चीज है.

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