किसको मिलेगा बंगला, किसकी होगी विदाई? गहलोत मंत्रिमंडल ‘पुनर्गठन’ पर चाय की थड़ी पर चर्चा

सत्ता और संगठन में पुनर्गठन की आहट, रायशुमारी के बाद आलाकमान के पाले में है गेंद, कभी भी हो सकती है घोषणा, कांग्रेस विधायकों में कहीं खुशी-कही गम के हालात, मंत्रिमंडल पुनर्गठन पर चर्चाएं जोरों पर, कुछ विधायकों को मिलने भी लगी हैं अग्रिम बधाइयां, कुछ ने शुरु किया काम समेटना, पढ़िए पॉलिटॉक्स ये खास रिपोर्ट

मंत्रिमंडल 'पुनर्गठन' को लेकर सियासी चर्चाओं का दौर
मंत्रिमंडल 'पुनर्गठन' को लेकर सियासी चर्चाओं का दौर

Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान में मंत्रिमंडल पुनर्गठन और कांग्रेस संगठन में फेरबदल को लेकर सियासी चर्चाओं का दौर जोरों पर चल रहा है. चाय की थड़ियों पर लग रही ‘राजनीति की चौपालों’ पर मंत्रियों को लगाने और हटाने की चर्चाएं जोरों पर हैं. कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी उहापोह की स्थिति है. लेकिन कुछ समझदार कार्यकर्ता जो हवाओं का रुख समझते हैं भावी मंत्रियों को अग्रिम शुभकामनाएं भी देने लगे हैं. कांग्रेस विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों की ‘रायशुमारी‘ से छन छन कर आईं खबरों ने इन चर्चाओं में तड़का लगाया है.

सीएम गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट में मंत्रिमंडल पुनर्गठन को लेकर ही पैच फंसा है. वहीं रायशुमारी में प्रदेश प्रभारी अजय माकन को मिली कुछ मंत्रियों की शिकायत और खुद माकन का ये कहना की गहलोत सरकार के कुछ मंत्री सत्ता का मोह छोड़ संगठन के लिए काम करना चाहते हैं. मतलब पहला फॉर्मूला तो माकन ने खुद ही दे दिया. अब माकन साहब कहते हैं तो मान लिया कि मंत्री सत्ता छोड़ संगठन में जाना चाहते हैं. लेकिन ऐसा खुद कौन करता है, ये सिर्फ आलाकमान का फॉर्मूला हो सकता है कि अब सरकार को ढाई साल हो चुका है. कुछ मंत्रियों की विदाई इस लाइन पर की जा सकती है क्योंकि अब बचे ढाई साल किसी ओर मौका दिया जाए, ताकि बैलेंस बना रहे.

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चलिए प्रदेश प्रभारी के कहने पर हम मान लेते हैं कि सरकार के कुछ मंत्री सत्ता को छोड़ संगठन में काम करने चाहते हैं लेकिन माकन साहब ने खुद क्यों नहीं बताए इन मंत्रियों के नाम, माकन को बताना चाहिए था किस मंत्री ने ऐसा विचार प्रकट किया है. प्रदेश प्रभारी माकन के इस बयान के बाद सूत्रों ने बताया है कि गहलोत सरकार के दो मंत्री हरीश चौधरी औऱ लालचंद कटारिया ने माकन के सामने अपने ये विचार रखे हैं. लेकिन बता दें कि ऐसा होना बहुत ही मुश्किल है, दोनों ही ये मंत्री जाट लॉबी से मंत्रिमंडल में है. और अगर कटारिया और चौधरी जो भेजा जाता है पीसीसी तो, पहले से ही वहां प्रदेशाध्यक्ष जाट हैं गोविंद सिंह डोटासरा, तीनों दिग्गजों को कैसे पीसीसी में एडजस्ट किया जाएगा. ये आलाकमान के लिए टेढी खीर होगा. उत्तराखंड औऱ पंजाब का +4 वाला फॉर्मूला भी लागू किया जाता है तो तीनों को एक साथ रखना जातीय समीकरणों के तहत मुनासिब नहीं होगा. इससे ऐसा लगता है कि इन दोनों को ना चाहते हुए भी मंत्रिमंडल में ही काम करना होगा

सियासी गलियारों में चर्चा है कि गहलोत सरकार 11 मंत्रियों पर विदाई की तलवार लटकी है इनमें गोविंद सिंह डोटासरा, बुलाकी दास कल्ला, शांति धारीवाल, प्रमोद जैन भाया, उदय लाल आंजना, प्रताप सिंह खाचरियावास, ममता भूपेश, अर्जुन सिंह बामनिया, सुखराम विश्नोई, भजन लाल जाटव और सुभाष गर्ग शामिल हैं. लेकिन पॉलिटॉक्स आपको बता रहा है कि इनमें से केवल गोविंद सिंह डोटासरा, सुभाष गर्ग का हटना तो तय है, लेकिन बीडी कल्ला, धारीवाल, भाया, आंजना खाचरियावास, बामनिया, विश्नोई, जाटव की कुर्सी हिला पाना इतना आसान भी नहीं है. सबसे बडी बात सियासी संग्राम के बाद से ये सभी मंत्री गहलोत के काफी नजदीकी माने जाते हैं और अगर इन सबको हटा दिया जाए तो फिर गहलोत ब्रिगेड बचेगा ही कौन? फिर मुख्यमंत्री गहलोत पर विश्वास करेगा ही कौन? इसलिए ऐसा होना कतई सम्भव नहीं माना जा सकता.

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आपको बता दें कि गोविंद सिंह डोटासरा की विदाई तो मंत्रिमंडल से तय है, एक पद-एक व्यक्ति के सिद्धांत के तहत उन्हें विदाई दी जाएगी. डोटासरा अगर पीसीसी चीफ बने रहते हैं तो उनकी विदाई होनी ही होनी है. डोटासरा का एक वीडियो तो इसकी पुष्टि भी करता है. सुभाष गर्ग राष्ट्रीय लोक दल से सरकार में मंत्री बनाए गए थे. क्योंकि उस समय कांग्रेस के विधायक केवल 99 थे और एक विश्वसनीय व्यक्ति की जरुरत थी. लेकिन अब ऐसी कोई दिक्कत नहीं है. एक मात्र महिला मंत्री मंत्रिमंडल में ममता भूपेश हैं. अगर उनकी विदाई होती है तो शकुंतला रावत को उनकी जगह एडजस्ट किया जा सकता है.

गौरतलब है कि बीडी कल्ला और शांति धारीवाल सीएम गहलोत के नजदीकी हैं और धारीवाल की तारीफ तो खुद विधायकों ने की है कुछ विधायकों ने उन्हें हीरो भी बताया है. प्रमोद जैन भाया, उदय लाल आंजना और प्रताप सिंह खाचरियावास सरकार जब बनी थी तो ये तीनों पायलट कैंप से मंत्री बने थे. सूत्रों की माने तो तीनों ही मंत्रियों को हटाने के लिए पायलट कैंप ने कहा है कि अब ये हमारे कैंप में नहीं है. तो इन पर चर्चा के बाद ही कुछ फैसला हो सकता है. वहीं वन मंत्री सुखराम विश्नोई एक मात्र विश्नोई समाज के मंत्री हैं और पश्चिम राजस्थान में विश्नोई कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक है. विश्नोई को रिप्लेस करने की गलती सरकार और संगठन नहीं करेगा.

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हालांकि, सियासी संकट के दौरान मंत्री पद से बर्खास्त किए गए रमेश मीणा और भरतपुर महाराजा विश्वेन्द्र सिंह को फिर से मंत्री बनाया जाना तय है. लेकिन इनके साथ ही दौसा विधायक मुरारी लाल मीणा भी ताल ठोक रखे हैं. साथ ही पायलट कैंप के विधायक हरीश मीणा के लिए उनके बड़े भाई पूर्व केन्द्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा भी पैरवी कर रहे हैं. इधर दो से तीन मंत्रियों का प्रमोशन तय माना जा रहा है. अलवर से आने वाले टीकाराम जूली और युवा मंत्री अशोक चांदना का प्रमोशन तय माना जा रहा है. वहीं मंत्री बनाए जाने वाले विधायकों के नाम तो चर्चा में हैं उनकी लिस्ट लंबी है.

राजस्थान के 15 से ज्यादा विधायकों के नाम इस लिस्ट में हैं विधायक संयम लोढ़ा, बाबूलाल नागर, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, जितेन्द्र सिंह, हेमाराम चौधरी, जाहिदा कामां, खिलाड़ी बैरवा, राजकुमार शर्मा, दीपेंद्र सिंह, महादेव सिंह खंडेला, शंकुतला रावत, मंजू मेघवाल, गोविंद मेघवाल, और बृजेन्द्र ओला के नाम शामिल हैं. इन विधायकों में से हेमाराम चौधरी, दीपेन्द्र सिंह शेखावत और बृजेन्द्र ओला पायलट कैंप से हैं. वहीं बसपा से कांग्रेस में आए राजेन्द्र सिंह गुढ़ा भी मंत्री बनाए जा सकते हैं. निर्दलीय विधायकों संयम लोढ़ा और बाबूलाल नागर को मंत्री वाला बंगला मिलना तय माना जा रहा है.

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ध्यान रहे कि पॉलिटॉक्स ने राजस्थान में सबसे पहले कहा था कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मंत्रिमंडल का ना तो विस्तार होगा ना ही फेरबदल यहां पूरा का पूरा पुनर्गठन होगा. क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस की समस्या ये हैं कि ना तो यहां गहलोत को नाराज किया जा सकता है और ना ही सचिन पायलट को हाथ से निकल जाने दिया जा सकता है. वैसे ये मंत्रियों की लिस्ट एक अनुमान है. क्योंकि राजनीति में दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दिखाया नहीं जाता. तो दिल्ली आलाकमान पर नजरें बनाए रखिए क्योंकि गेंद अब दिल्ली के पाले में है.

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