राहुल गांधी पर बंटे विपक्ष में ‘किसी की हां तो किसी की ना’, ‘रागा’ की ‘विरोध नीति’ पर हमलावर बीजेपी

लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष ने कसी कमर, मोदी के सामने चेहरे को लेकर बंटा है विपक्ष, किसी को पसंद तो कोई मजबूरी में राहुल के साथ, क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपनी भी है महत्वकाक्षाएं, अपने विरोध को लेकर बीजेपी के निशाने पर रहने वाले राहुल मस्त होकर जुटे हैं 'विरोध नीति' में

'रागा' की 'विरोध नीति'
'रागा' की 'विरोध नीति'

Politalks.News/Delhi. आने वाले लोकसभा चुनाव-2024 की तैयारियों को लेकर सभी पार्टियों ने कमर कस ली है. विपक्ष एकजुट करने की कई सिरों से कोशिश की जा रही है. ममता बनर्जी और शरद पवार अपने स्तर पर इसको लेकर लगातार मीटिंग कर रहे हैं. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कह चुके हैं कि सारी कवायद कांग्रेस के बिना बेकार है. कांग्रेस के बिना कोई भी गठबंधन मोदी को चुनौती नहीं दे पाएगा. अब बात की जाए यूपीए का ढांचा नए सिरे से खड़ा करने या नया गठबंधन बनाने में कांग्रेस की समस्या यह है कि राहुल गांधी से ज्यादातर विपक्षी नेताओं को दिक्कत है. ज्यादातर बड़ी पार्टियों के नेता राहुल को अपना नेता मानने को तैयार नहीं है.

राहुल किसी को ‘पसंद’ किसी की ‘ना’
मोदी के खिलाफ नया मोर्चा बनाने में एक ये बड़ी समस्या है कि कांग्रेस समेत सभी बड़े क्षेत्रीय क्षत्रपों की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं, जिनसे उनको लग रहा है कि वे राहुल को क्यों आगे करें तो कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो भाजपा की ओर से राहुल के खिलाफ किए गए प्रचार को सही मानने लगे हैं. आपको बता दें कि भाजपा ने पिछले सात साल में अपने आईटी सेल की मदद से राहुल गांधी को पप्पू के तौर पर स्थापित किया है. भाजपा के नेता अपने हर साधन से सिर्फ राहुल गांधी से लड़ते हैं लेकिन उनको यह भी साबित करने में लगे रहते हैं कि वे किसी लायक नहीं हैं. भाजपा ने यह धारणा बनवाई है कि राहुल के रहने से भाजपा को फायदा होता है. कई विपक्षी पार्टियों के नेता इस बात को सही मानते हैं और उनको लगता है कि राहुल के साथ रहने से उनको नुकसान हो सकता है.

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विपक्षी दल असमंजस में करें तो क्या करें

प्रादेशिक नेताओं की महत्वाकांक्षा या भाजपा के प्रचार को सही मानने की वजह से बहुत कम नेता ऐसे बच गए हैं, जो कांग्रेस के साथ जुड़े हैं. हालांकि इसमें भी उनकी मजबूरी ज्यादा है क्योंकि बिहार, झारखंड से लेकर तमिलनाडु तक क्षेत्रीय पार्टियों को लगता है कि कांग्रेस अलग लड़ी तो उनको नुकसान पहुंचा सकती है. बहरहाल, राहुल गांधी से दिक्कत का आलम यह है कि संसद के चालू सत्र के दौरान मंगलवार और बुधवार दोनों दिन विपक्षी पार्टियों की बैठक हुई, जिसमें राहुल शामिल हुए लेकिन तृणमूल के नेता उसमें नहीं गए. जैसे यह खबर आई कि राहुल विपक्षी नेताओं की बैठक की अध्यक्षता करेंगे और उसके बाद प्रेस को संबोधित करेंगे, तृणमूल के नेता नदारद हो गए. समाजवादी पार्टी के नेता भी विपक्ष की बैठकों में शामिल नहीं हुए. बसपा तो कांग्रेस से दूरी बना ही चुकी है. एनसीपी के नेता जरूर बैठक में शामिल हुए पर राहुल गांधी के बारे में शरद पवार की राय सबको पता है. बहरहाल, विपक्ष की बैठक के नाम पर राजद और एनसीपी के अलावा तमिलनाडु और केरल में कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां शामिल हुईं.

राहुल गांधी की ‘विरोध नीति’ औऱ ‘हमलावर’ बीजेपी

राहुल गांधी फिलहाल देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता हैं तो उनका काम है सरकार का विरोध करना सो, वे विरोध करते हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि वे जितना सरकार का विरोध करते हैं उससे ज्यादा सरकार के मंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता उनका विरोध करते हैं. जब उनका विरोध करने के लिए तर्कसंगत बातें नहीं होती हैं तो कुतर्कों या अजीबोगरीब तर्कों से भी उनका विरोध किया जाता है. राहुल गांधी सोमवार को जब ट्रैक्टर चला कर संसद पहुंचे और केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों का विरोध किया. यह विरोध का एक तरीका होता है, जैसे पेट्रोल-डीजल की महंगाई का विरोध करने के लिए किसी जमाने में अटल बिहारी वाजपेयी बैलगाड़ी से संसद गए थे. सो, राहुल ट्रैक्टर से संसद पहुंचे तो उसको नौटंकी बता कर विरोध करने के अलावा सबसे अजीब तर्क कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दिया. उन्होंने कहा कि, ‘राहुल गांधी जितने लोगों को ट्रैक्टर पर बैठा कर लाए वह ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन था. आप अंदाजा लगाइये केंद्रीय कृषि मंत्री के तर्क पर! अगर यह ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन था तो ट्रैफिक पुलिस उसका चालान काटेगी, केंद्रीय कृषि मंत्री को तो उनके उठाए मुद्दों का जवाब देना चाहिए.

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केन्द्रीय मंत्री खो बैठते हैं आपा, देते हैं अजीबो गरीब तर्क !

इससे दो-चार दिन पहले नई विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा कि अगर महामारी के दौरान राहुल ने अपनी भूमिका ठीक तरीके से निभाई होती तो लोगों को इतनी दिक्कत नहीं होती. इस टिप्पणी को लेकर लेखी सोशल मीडिया पर काफी ट्रोल हुई. लोग पूछ रहे हैं कि राहुल गांधी क्या प्रधानमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री थे, जो उन्होंने अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाई? यह भी पूछा जा रहा है कि अगर विपक्ष के नेता के नाते उन्होंने किसी सरकारी काम में बाधा डाली तो आपदा प्रबंधन कानून के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? बहरहाल, केंद्रीय मंत्री बनने के बाद लेखी अपना एक अलग ही रूप दिखा रही हैं. इसी तरह से कोरोना की पहली लहर के दौरान राहुल गांधी दिल्ली से पलायन कर रहे प्रवासी मजदूरों के एक परिवार से राहुल गांधी सड़क पर मिले थे तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि राहुल ने मजदूरों का समय खराब किया.

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