Politalks.News/KalyanSingh. भाजपा के पहले फायर ब्रांड दिग्गज नेता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का लम्बी बीमारी के बाद कल रात लखनऊ के PGSI अस्पताल में निधन हो गया. आपको बता दें, कभी उत्तरप्रदेश का पावर सेंटर रहने वाले कल्याण सिंह को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई नेताओं से रिश्ते खराब होने के बाद भाजपा से बाहर होना पड़ा था. हालांकि वापसी के बाद कल्याण सिंह ने कहा था कि अब मेरी यजी5इच्छा है कि जीवनभर मैं भाजपा में रहूं और मेरा शव पार्टी के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि की तरफ जाए.
आपको बता दें, उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक समय ऐसा भी आया कि कल्याण सिंह के निजी संबंधों को लेकर पार्टी के कई नेता उनसे नाराज हो गए थे, लेकिन कल्याण सिंह किसी की परवाह नहीं कर रहे थे और उन्होंने सबके खिलाफ ओपन रिवोल्ट कर दिया. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से रिश्ते खराब कर लिए, तो मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनको केंद्र में मंत्री बनाने का प्रस्ताव देने के कारण पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से रिश्ते खराब हो गए थे. यही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी की सार्वजनिक आलोचना करने के बाद 1999 में उनको भाजपा (बीजेपी) से निकाल दिया गया था.
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राजनीति के जानकर बताते हैं कि लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी को नामांकन करना था. बेगम हजरत महल पार्क में कार्यक्रम था. उस कार्यक्रम में बीजेपी नेता लालजी टंडन, कलराज मिश्र, राजनाथ सिंह और तत्तकालीन मुख्यंत्री कल्याण सिंह मौजूद थे. बाकी नेताओं का संबोधन हुआ, लेकिन कल्याण सिंह को मौका नहीं दिया गया. कल्याण सिंह को उस प्रकरण को भूलने मे वक्त लगा.
बनाया था अपना राष्ट्रीय क्रांति दल
बीजेपी से जाने के बाद कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय क्रांति दल नाम से अपनी एक नई पार्टी बना ली और 2002 विधानसभा चुनाव में शामिल हुए. इस दौरान उनकी पार्टी को चार सीटों पर सफलता मिली और 70 सीटों से अधिक पर उन्होंने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया. उस दौरान कल्याण सिंह अपने पूरे प्रभाव का इस्तेमाल भाजपा के खिलाफ किया. इसके बाद 2003 में वे सपा सरकार में शामिल भी हुए, लेकिन ये दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली और 2004 में वे फिर भाजपा में वापस आ गए. यूपी में भाजपा को काफी नुकसान हुआ था, वो वापस पार्टी में आए, पर तब तक सब कुछ बदल चुका था.
2007 में नहीं बन पाए सीएम तो समाजवादी पार्टी से मिला लिया था हाथ
2007 में कल्याण सिंह को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने चुनाव लड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इसके बाद कल्याण सिंह ने एक बार फिर अविश्वसनीय और हैरान करने वाला कदम उठाते हुए 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिला लिया. समाजवादी पार्टी के सहयोग से लोकसभा में सांसद हो गए. फिर उन्होंने यूपी विधानसभा के 2012 चुनाव में अपनी पार्टी से ही 200 कैंडिडेट उतार दिए, लेकिन उनको एक भी सीट नहीं मिली. यही नहीं, अपने घर अतरौली में भी दुर्गति हो गई. अतरौली से इनकी बहू प्रेमलता हारीं, जबकि यहीं से ही कल्याण सिंह 8 बार जीते थे. वहीं, डिबाई से इनके बेटे राजू भैया उर्फ राजवीर सिंह भी हार गए. ना भाजपा को फायदा हो रहा था ना कल्याण सिंह को.
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अब मेरी एक ही इच्छा है कि जीवनभर मैं भाजपा में रहूं और….
2013 में एक बार फिर कल्याण सिंह की वापसी हुई. जन क्रांति पार्टी का बीजेपी में विलय हुआ. उनको इस बात का एहसास था कि उन्होंने भाजपा को कितना बुरा-भला कहा है, इसलिए उन्होंने समय के फेर को जिम्मेदार बताते हुए भावुकता के भरा भाषण दिया था. कल्याण सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने बचपन के रिश्तों की याद दिलाई और रो पड़े थे. कल्याण सिंह ने कहा था, ‘संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरे रक्त की बूंद-बूंद में समाए हुए हैं, इसलिए मेरी इच्छा है कि जीवनभर मैं भाजपा में रहूं और जब जीवन का अंत होने को हो, तब मेरी इच्छा है कि मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि की तरफ जाए.’ आपको बता दें, कल्याण सिंह का शव कल अतरौली ले जाया जाएगा. जबकि अंतिम दर्शन के लिए शव उनके पैतृक आवास पर रखा जाएगा. इसके बाद नरौरा घाट पर अंतिम संस्कार होगा. इस दौरान सीएम योगी साथ रहेंगे और वकल्याण सिंह की अंतिम इच्छा के अनुसार अब वे चिरनिद्रा मेंबीजेपी के झंडे में लिपटकर ही श्मशान भूमि की तरफ जाएंगे.