Rajasthan Politics: राजस्थान में आगामी दो महीनों में 200 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने हैं. 5-10 अक्टूबर के बीच में चुनावी आचार सहिता लग जाएगी. वर्तमान में यहां कांग्रेस की गहलोत सरकार की सत्ता है. वहीं बीजेपी सत्ता वापसी के लिए जमकर पसीना बहा रही है. प्रदेश में मुख्य चुनावी मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच में है लेकिन थर्ड फ्रंट इस बार पहले से मुकाबला अधिक मजबूत है और चुनावी दंगल में दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का खेल बिगाड़ेगा. इस बार प्रदेश की 200 सीटों पर कई राजनीतिक पार्टियों अकेले ही चुनाव लड़ने का मन बना चुकी हैं. हालांकि इनमें से 5-10 सीटों पर को छोड़कर सभी सीटों पर इन्हें हार ही नसीब होगी. मुख्य पार्टियों का खेल खराब करने में निर्दलीय एवं नोटा का भी अपना अपना योगदान कम नहीं है.
बात करें आगामी विधानसभा चुनाव की तो बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, हनुमान बेनीवाल की रालोपा, जननायक जनता पार्टी, शिवसेना और कम्युनिष्ट पार्टी जैसी प्रमुख पार्टियां राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में अपने अपने प्रत्याशी उतारेगी. पिछली बार 2018 में कांग्रेस ने 100 सीटों पर विजयश्री हासिल की. बीजेपी 73 पर सिमट गयी. बसपा से 6 विधायकों के विलय और उपचुनाव में बीजेपी से दो सीटों छीनने के बाद कांग्रेस का आंकड़ा 108 और बीजेपी 71 पर रह गयी.
फ्रंट और निर्दलीयों ने बांटी थी 27 सीटें
वहीं थर्ड फ्रंट पर एक नजर डालें तो बसपा ने 6, आरएलपी ने 3, माकपा एवं बीटीपी ने दो—दो और आरएलडी ने एक सीट हासिल की. यानी 200 में से 14 सीटों पर थर्ड फ्रंट ने अपना कब्जा जमाया. वहीं पिछले चुनाव में कुल 840 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया था, जिनमें से 13 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे. पिछले विसचु में कांग्रेस एवं बीजेपी में वोट अंतर केवल 0.54 फीसदी रहा लेकिन निर्दलीयों ने 9.59 फीसदी वोट हासिल किए थे. क्षेत्रीय दलों का शेयर 5.68 फीसदी रहा.
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क्षेत्रवार स्थिति देखें तो अकेले ढूंढाड़ क्षेत्र में थर्ड फ्रंट और निर्दलीयों की पौ बारह रही. यहां इन दोनों को 13 सीटों पर जीत मिली. इसमें जयपुर, टोंक, करौली, दौसा, धौलपुर, सवाई माधोपुर आदि क्षेत्र आते हैं. इसी तरह मारवाड़ में 5, मेवाड़ में 4 और शेखावाटी में 5 सीटों पर थर्ड फ्रंट और निर्दलीयों को जीत मिली. संभाग स्तर पर देखें तो अजमेर में थर्ड फ्रंट एवं निर्दलीयों को सर्वाधिक 10 सीटें, भरतपुर में 5, जोधपुर एवं अजमेर संभाग में 3-3, उदयपुर-बीकानेर में भी 3-3 सीटों पर इनके प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. कोटा में बीजेपी और कांग्रेस ने 17 सीटें आपस में बांटी.
नोटा का रहा था अहम रोल
वोट हासिल करने में नोटा का भी अहम योगदान रहा. पिछले विधानसभा चुनाव में नोटा को 4 लाख 67 हजार 988 वोट मिले, जो कुल वोटिंग का 1.31 फीसदी था. इसके चलते नोटा चुनावी दंगल में उतरी 81 पार्टियों से आगे निकल गया. कुल 2294 में से 1839 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी.
पिछली बार मैदान में उतरे थे 86 दल
2018 के विधानसभा चुनाव में 86 क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दलों ने अपने 1454 अधिकृत प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था. इस बार यह संख्या निश्चित तौर पर अधिक होगी. हालांकि इनमें से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल (RLP), भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), माकपा और आरएलडी को ही सीट हासिल हो पायी. इनके अलावा, 840 उम्मीदवारों ने निर्दलीय के रूप में किस्मत आजमायी थी, जिनमें से केवल 13 ही जीत दर्ज कर पाने में कामयाब हो पाए. अन्य में से अधिकांश प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी.
इस बार आधा दर्जन से अधिक नयी पार्टियां भी राजस्थान के चुनावी दंगल में जोर आजमाईश करने की जुगत में है. बसपा, आम आदमी पार्टी और रालोपा सभी 200 सीटों पर, तो जननायक जनता पार्टी 30, शिवसेना 20 व कम्युनिष्ट पार्टी 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. आप, आरएलपी और शिवसेना मिलकर गठबंधन बनाने का प्लान कर रही है. वहीं जननायक पार्टी बीजेपी से गठबंधन करना जा रही है. ओवैसी की AIMIM के बसपा से गठजोड़ करने की संभावना है. अन्य छोटी क्षेत्रीय पार्टियां आपस में एक दूसरे का सहयोग करती दिख रही है. ऐसे में ये थर्ड फ्रंट जीत की संभावना तो नहीं रखता है लेकिन राजस्थान में गहलोत सरकार और बीजेपी की राह में कांटे बिछाने का काम जरूर कर सकता है.