Supreme Court Vs Central Government. कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति नहीं होने को लेकर उच्चतम न्यायालय की नाराजगी सामने आई है. सोमवार कोई सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर सुनवाई करते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि, ‘ऐसा लगता है कि सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के रद्द किए जाने से नाखुश है. केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति पर बैठी रहेगी तो सिस्टम कैसे काम करेगा. कॉलेजियम यह नहीं कह सकता कि सरकार उसकी तरफ से भेजे हर नाम को तुरंत मंजूरी दे. अगर ऐसा है तो उन्हें खुद ही नियुक्ति कर लेनी चाहिए.’ केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले दिनों एक टीवी डिबेट में कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम को लगता है कि, ‘सरकार की ओर से उसकी सिफारिशों में फैसला नहीं लिया जा रहा है तो वह जजों की नियुक्ति पर नोटिफिकेशन जारी कर दे.’ अब इस पर पर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने सामने नजर आ रहे हैं.
कॉलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों पर सरकार की तरफ से निर्णय नहीं लिए जाने पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है. जजों की नियुक्ति के मसले पर सुनवाई कर रही जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने लंबे समय से सरकार के पास अटकी फाइलों पर गहरा असंतोष जताया. जस्टिस कौल ने कहा, ‘कुछ नाम डेढ़ साल से भी ज़्यादा समय से सरकार के पास हैं. इस तरह सिस्टम कैसे चल सकता है? अच्छे वकीलों को जज बनने के लिए सहमत करना आसान नहीं है, लेकिन सरकार ने नियुक्ति को इतना कठिन बना रखा है कि देरी से परेशान लोग बाद में खुद ही अपना नाम वापस ले लेते है?’ इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की तरफ से बिना कोई वजह बताए नामों को रोक कर रखना गलत है. सरकार अपनी मर्ज़ी से नाम चुन रही है. इससे वरिष्ठता का क्रम भी गड़बड़ा रहा है. कॉलेजियम यह नहीं कह सकता कि सरकार उसकी तरफ से भेजे हर नाम को तुरंत मंजूरी दे. अगर ऐसा है तो उन्हें खुद ही नियुक्ति कर लेनी चाहिए.’
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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि, ‘हम लंबित फाइलों पर सरकार से बात कर जवाब देंगे. इस पर कोर्ट ने सुनवाई 8 दिसंबर के लिए टाल दी. वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कोर्ट से अवमानना नोटिस जारी करने की मांग की. इसका अटॉर्नी जनरल ने विरोध किया. इस दौरान जस्टिस कौल ने कहा, ‘समस्या यही है कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित कानूनी प्रक्रिया का पालन करने को सरकार तैयार नहीं है. ऐसी बातों का दूरगामी असर पड़ता है.’ याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कानून मंत्री के बयान की कोर्ट को जानकारी दी. इस पर जजों ने नाखुशी जताई और कहा कि, ‘हमने अब तक कई बयानों की उपेक्षा की है, लेकिन यह एक बड़े पद पर बैठे व्यक्ति का बयान है. उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था.’
हाल ही में एक कार्यक्रम में जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि, ‘यदि सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम को लगता है कि सरकार की ओर से उसकी सिफारिशों में फैसला नहीं लिया जा रहा है तो वह जजों की नियुक्ति पर नोटिफिकेशन जारी कर दे. कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए ‘एलियन’ है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से एक अदालत के फैसले के माध्यम से कॉलेजियम बनाया. जबकि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी. भारत का संविधान सभी के लिए विशेष रूप से सरकार के लिए एक ‘धार्मिक दस्तावेज’ है. कोई भी चीज जो केवल अदालतों या कुछ न्यायाधीशों द्वारा लिए गए फैसले के कारण संविधान से अलग है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उससे देश भी सहमत ही होगा.’
हालांकि भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश यू. यू. ललित ने 13 नवंबर को कहा था कि, ‘कॉलेजियम प्रणाली में कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में कहा था, ‘कॉलेजियम प्रणाली यहां मौजूद रहेगी और यह एक स्थापित मानदंड है, जहां न्यायाधीश ही न्यायाधीश को चुनते हैं.’