Politalks.News/UttraPradeshChunav. उत्तरप्रदेश (UttarPradesh Assembly Election 2022) में छः चरणों के मतदान के बाद अब विधानसभा चुनाव समापन की ओर है. इस बीच सियासी गलियारों में चर्चा है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) के तीन सांसद बहुत नाराज हैं और ये तीनों घोषित रूप से नाराज सांसदों की नाराजगी का मतदान पर क्या असर हुआ है? भाजपा के रणनीतिकार इसका आकलन कर रहे हैं. भाजपा के नेता मान रहे हैं कि कम से कम उनके अपने क्षेत्र में और आसपास के कुछ क्षेत्रों में इन सांसदों की नाराजगी का अच्छा खासा असर हुआ होगा. इसका कारण यह भी है कि ये तीनों सांसद अपेक्षाकृत चर्चित और असर रखने वाले हैं. आपको बता दें, मेनका गांधी (Menka Gandhi), वरुण गांधी (Varun Gandhi) और संघमित्रा मौर्य (Sanghamitra Maurya) इन तीनों सांसदों के लोकसभा क्षेत्र में मतदान संपन्न हो चुका है. अब इन तीनों ही सांसदों को लेकर कहा जा रहा है कि आगामी 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणाम ही तय करेगा की भविष्य में इन सांसदों की भाजपा में क्या भूमिका रहने वाली है.
आपको बता दें, अपनी ही पार्टी से नाराज चल रही सुल्तानपुर की भाजपा सांसद मेनका गांधी, पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और बदायूं की सांसद संघमित्रा मौर्य ने यूपी चुनाव के दौरान चुप रह कर या सक्रिय रूप से भाजपा के खिलाफ काम किया है. मेनका गांधी ने कोई बयान नहीं दिया है लेकिन सबको पता है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाए जाने से वे नाराज बताई जा रही हैं. वहीं मेनका को पार्टी संगठन में भी जगह नहीं मिली है और उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करने के लिए भी पार्टी ने उनसे नहीं कहा. इसलिए उनके चुनाव क्षेत्र सुल्तानपुर की पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा को नुकसान का अंदेशा है.
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वहीं दूसरे सांसद मेनका गांधी के बेटे और पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी ने खुल कर केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों का विरोध किया है और उसके खिलाफ बयान दिया है. वरुण लगातार ट्विट करते रहे हैं, तभी उनके क्षेत्र और आसपास तराई के इलाकों में भाजपा को नुकसान की पूरी आशंका है.
यहां आपको यह बता दें कि बीजेपी में शामिल होने के बाद मेनका और वरुण गांधी ने पार्टी को निराश नहीं किया, मेनका 2004 से अब तक लगातार चार बार और वरुण 2009 से लगातार तीन बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं. 2014 में जब केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी तो उसमे मेनका गांधी को मंत्री बनाया गया और वरुण गांधी पार्टी सबसे कम उम्र के राष्ट्रीय महासचिव बने. पर पिछले ढाई-तीन वर्षों में उनके रिश्तों में खटास आ गयी है, खासकर किसान आन्दोलन शुरू होने के बाद.
तीसरी सांसद संघमित्रा मौर्य है, हालांकि मौर्य का मामला इन दोनों से अलग है. बदायूं की सांसद संघमित्रा मौर्य के पिता योगी सरकार के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली. इसके बाद संघमित्रा ने भाजपा सांसद होने के बावजूद खुल कर भाजपा के खिलाफ वोट मांगा है. स्थानीय जानकारों का मानना है उनके अपने क्षेत्र के अलावा दूसरी जगहों पर भी उनकी वजह से नुकसान की संभावना है.
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ऐसे में सियासी जानकारों का कहना है कि भविष्य के गर्भ में क्या है यह तो नहीं बताया जा सकता, पर इतना तो तय है कि बीजेपी को अब गांधी परिवार के किसी सदस्य की जरूरत नहीं है. बिना गांधी के पीलीभीत और सुल्तानपुर में बीजेपी की क्या हैसियत है, बहरहाल इसका अनुमान 10 मार्च को ही लग पाएगा. अगर इन क्षेत्रों में बीजेपी 2017 की ही तरह प्रदर्शन करती है, जबकि पार्टी ने पीलीभीत संसदीय क्षेत्र के सभी पांचों सीट और सुल्तानपुर संसदीय क्षेत्र की छः में से सिर्फ इसौली को छोड़ कर बाकी के पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, तो फिर इतना मान कर चलना होगा कि मेनका और वरुण गांधी का अब बीजेपी में कोई भविष्य नहीं बचा है. वहीं बदायूं सांसद मौर्य का भविष्य भी इसी बात पर निर्भर करेगा साथ ही अगर भाजपा के पक्ष में पूरे राज्य में परिणाम नहीं होते हैं तो संघमित्रा का भविष्य भी भाजपा के गांधी परिवार जैसा ही मानकर चला जा रहा है.