सीएम गहलोत, महेश जोशी और OSD शर्मा सहित अन्य के खिलाफ दायर रिवीजन याचिका हुई खारिज

विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त से जुड़ी ऑडियो क्लिप्स को वायरल करने और इस संबंध में की गई बयानबाजी को लेकर बतौर गृह मंत्री अशोक गहलोत और मुख्य सचेतक महेश जोशी सहित अन्य के खिलाफ दायर रिवीजन याचिका को अतिरिक्त सत्र न्यायालय क्रम-3 महानगर प्रथम ने किया खारिज

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Politalks.News/Rajasthan. वर्ष 2020 में गहलोत सरकार पर आए सियासी संकट के समय विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त से जुड़ी ऑडियो क्लिप्स को वायरल करने और इस संबंध में की गई बयानबाजी को लेकर बतौर गृह मंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और मुख्य सचेतक महेश जोशी (Mahesh Joshi) सहित अन्य के खिलाफ दायर रिवीजन याचिका को अतिरिक्त सत्र न्यायालय क्रम-3 महानगर प्रथम ने खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि परिवादी ने पूर्व में रिवीजन याचिका पेश की थी, जिसे एडीजे क्रम-7 अदालत ने खारिज कर दिया था. परिवादी ने उन्हीं तथ्यों को इस निगरानी में उठाया है. परिवादी ने ऐसे कोई आधार नहीं बताए हैं, जिनके आधार पर अदालत प्रथम दृष्टया आरोप प्रमाणित मान सके.

गौरतलब है कि इससे पहले परिवादी ने निचली अदालत में पेश परिवाद में कहा गया था कि 17 जुलाई 2020 को सीएम को ओएसडी लोकेश शर्मा की ओर से एक ऑडियो क्लिप को वायरल करने का समाचार प्रकाशित हुआ था. लोकेश शर्मा लोक सेवक की श्रेणी में आते हैं, ऐसे में यह आईपीसी, ओएस एक्ट और टेलीग्राफ एक्ट की अवहेलना है. इस ऑडियो को बतौर सबूत मानकर महेश जोशी ने एसओजी में आईपीसी की धारा 120 बी और 124ए के तहत मामला दर्ज करा दिया.

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परिवादी की ओर से यह भी कहा गया था कि इस ऑडियो क्लिप के बाद राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो गई. वहीं, सीएम अशोक गहलोत ने विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाए. राजद्रोह और संवेदनशील मामलों से जुड़ी एफआईआर को सार्वजनिक करने पर प्रतिबंध है. इसके बावजूद अशोक गहलोत ने एसओजी के मुखिया अशोक राठौड़ से मिलीभगत कर अनुसंधान के विषय को अपने उद्देश्य के लिए चार्जशीट से पहले ही इसे सार्वजनिक कर दिया. गौरतलब है कि परिवाद को एसीएमएम क्रम-12 ने गत एक नवंबर को खारिज कर दिया था. जिसके बाद इस आदेश को रिवीजन याचिका में चुनौती दी गई थी.

ऐसे में आज सत्र न्यायालय क्रम-3 महानगर प्रथम ने रिवीजन याचिका खारिज करते हुए कहा कि परिवादी ने महेश जोशी की ओर से एसओजी में दर्ज कराई एफआईआर की ऑडियो क्लिप को सार्वजनिक करने का आरोप लगाया है, जबकि यह एफआईआर क्लिप के सार्वजनिक होने के बाद ही दर्ज हुई थी. इसके अलावा राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होने के लिए कोई हिंसक घटना नहीं होने के कारण यह देशद्रोह का मामला नहीं बनता. अदालत ने कहा कि पूर्व में निचली अदालत ने परिवाद को सीआरपीसी की धारा 200 के तहत जांच के लिए अपने पास रखा था.

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इसके खिलाफ परिवादी ने पूर्व में रिवीजन याचिका पेश की थी, जिसे एडीजे क्रम-7 अदालत ने खारिज कर दिया था. परिवादी ने उन्हीं तथ्यों को इस निगरानी में उठाया है. परिवादी ने ऐसे कोई आधार नहीं बताए हैं, जिनके आधार पर अदालत प्रथम दृष्टया आरोप प्रमाणित मान सके. अदालत ने कहा कि एडीजे क्रम-7 अदालत के आदेश के बाद निचली अदालत ने परिवादी के बयान दर्ज किए थे और परिवादी ने अन्य कोई गवाह पेश नहीं करने की बात कही थी, इसके बाद ही तथ्यात्मक रिपोर्ट तलब कर आदेश पारित किया था.

इसके अलावा परिवाद में शासकीय गोपनीयता अधिनियम की बात कही गई है, जबकि यह परिवाद सरकार की ओर से नहीं बल्कि एक नागरिक की हैसियत से पेश है. ऐसे में शासकीय गोपनीयता अधिनियम का संबंधित प्रावधान भी इस पर लागू नहीं होता है. आपको बता दें, रिवीजन याचिका में में परिवादी ओमप्रकाश सोलंकी ने बतौर गृहमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन मुख्य सचेतक महेश जोशी के अलावा मुख्यमंत्री के ओएसडी लोकेश शर्मा, तत्कालीन मुख्य सचिव राजीव स्वरूप, गृह सचिव रोहित कुमार सिंह, डीजीपी भूपेन्द्र सिंह और एसओजी के एडीजी अशोक राठौड सहित अन्य को पक्षकार बनाया था.

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