किसी भी राजनीतिक दल के साथ तालमेल बैठाने में महारथ हासिल थी रामविलास पासवान को

सही मायने में रामविलास पासवान को राजनीति जगत का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था, केंद्र में सरकार किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, लेकिन पासवान हमेशा सत्ता में बने रहे, पासवान, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार ने राजनीति पारी का आगाज लगभग एक साथ ही किया

रामविलास पासवान
रामविलास पासवान

Politalks.News/New Delhi. मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान का गुरुवार शाम को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पासवान के निधन के बाद तमाम दलों के नेताओं ने गहरा शोक जताते हुए उनको राजनीति क्षेत्र का दूरदर्शी नेता बताया. ‘सही मायने में रामविलास पासवान को राजनीति जगत का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था‘, केंद्र में सरकार किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, लेकिन रामविलास पासवान हमेशा सत्ता में बने रहे‘. यहां हम आपको बता दें कि उन्होंने हमेशा चुनाव के पहले गठबंधन किया, चुनाव के बाद कभी नहीं किया.

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अपनी सियासी पारी में पांच दशक तक रामविलास पासवान कई बार कांग्रेस के साथ तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते और जीतते रहे. 1969 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले पासवान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पासवान ने 11 चुनाव लड़े, जिनमें नौ में उनकी जीत हुई. ‘पासवान के पास छह प्रधानमंत्रियों के साथ उनकी सरकार में मंत्री रहने रिकॉर्ड है‘. पासवान ने 1977 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था. इसके बाद 2014 तक उन्होंने आठ बार लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की.

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वर्तमान में रामविलास पासवान राज्यसभा के सदस्य तथा नरेंद्र मोदी सरकार में उपभोक्ता मामलों तथा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे. ‘जब रामविलास पासवान कांग्रेस सरकार में केंद्रीय मंत्री थे तब वह भारतीय जनता पार्टी की नीतियों का मुखर होकर तीव्र विरोध करने के लिए जाने जाते थे. उसकेे बाद एनडीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे’. रामनिवास पासवान के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी समेत तमाम केंद्रीय मंत्रियों ने शोक जताते हुए श्रद्धांजलि दी है. वहीं दूसरी ओर अपने लोकप्रिय नेता को खोने के बाद बिहार की जनता शोक में डूबी हुई है.

वर्ष 2000 में पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना की थी–

लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना साल 2000 में राम विलास पासवान ने की थी. पासवान पहले जनता पार्टी से होते हुए जनता दल और उसके बाद जनता दल यूनाइटेड का हिस्सा रहे, लेकिन जब बिहार की सियासत के हालात बदल गए तो उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. रामविलास पासवान ने एलजेपी का गठन सामाजिक न्याय और दलितों पीड़ितों की आवाज उठाने के मकसद से किया था. एलजेपी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीतीं. चार सीटों के साथ ही वो यूपीए का हिस्सा बने.

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लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल भी कांग्रेस के साथ यूपीए सरकार का हिस्सा थी. रामविलास पासवान को केंद्र में मंत्री भी बनाया गया. एक समय जब एलजेपी सत्ता से बाहर थी. लेकिन एनडीए में ऐसे समीकरण बदले कि एलजेपी को फिर से सहारा मिल गया. 2013 में बीजेपी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया. नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी की उम्मीदवार रास नहीं आई और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया. हालांकि बिहार में वो अपनी सरकार बचाने में सफल रहे, लेकिन पासवान ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया.

2014-19 में भाजपा-एलजेपी ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा–

2014 में लोकसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी ने एक साथ मिलकर लड़ा था. एलजेपी ने बिहार में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा जिनमें से 6 सीट पर विजयी रही. नरेंद्र मोदी की लहर में एलजीपी भी खूब आबाद हुई. पासवान के बेटे चिराग पासवान भी जमुई लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़े और जीते. दूसरी ओर रामविलास पासवान को केंद्र में मंत्री बनाया गया. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव का मौका आया तो नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया. इस महागठबंधन की ऐसी लहर चली कि बीजेपी समेत तमाम दूसरे विरोधी दल हवा हो गए. एलजेपी केवल 2 सीटें जीत पाई, लेकिन केंद्र में भाजपा सरकार के साथ एलजीपी बनी रही.

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ऐसे ही 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. लेकिन रामविलास पासवान राज्य सभा के रास्ते संसद पहुंचे. उसके बाद दूसरी बार मोदी सरकार में पासवान को केंद्रीय मंत्री बनाया गया. रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार ने राजनीति पारी का आगाज लगभग एक साथ ही किया था. रामविलास पासवान ने अपनी राजनीति को बिहार से ज्यादा केंद्र में अधिक सक्रिय बनाए रखा.

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