Politalks.News/Rajasthan. फिल्म मिलन का यह गाना आनंद बक्शी जी का लिखा हुआ है. संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी ने दिया था. गाने को लता मंगेशकर जी ने मीठास भरा स्वर दिया. गाना सुपर हिट हुआ था. सावन के महीने के लिए लिखा और गाया गया यह गाना किसी भी दूसरे गाने से बेहतरीन साबित हुआ.
सावन पर गाए गए इस गाने ने सावन की तरह ही अपनी छाप लोगों पर छोड़ी. राजस्थान में सावन का अपना अलग ही महत्व है. सावन में यहां ऐसे महससू किया जाता है, जैसे स्वर्ग से कोई ठंडी-ठंडी हवा हमारा मन मोहने आ रही हो. लेकिन राजस्थान की राजनीति में चल रहे सियासी घमासान ने सावन के इस महीने में ऐेसी गरम पुरवाईयां चला दी हैं कि उसमें सारी सरकार और लोकतंत्र तप रहा है.
चलिए इस गाने के शुरूआती बोल से समझते हैं कि वर्तमान हालातों पर यह गाना कैसे अपने आपको साबित कर रहा है.
गाने की शुरूआत होती है- ‘सावन का महीना …पवन करे शोर, शोर नहीं बाबा सोर…. सही बात लग रही है, शोर ही तो मचा हुआ है. पिछले 20 दिनों से हर तरफ से राजनीति का शोर ही तो सुनाई दे रहा है. कभी इस खेमे से तो कभी उस खेमे से. दो खेमों से शुरू हुआ शोर, अब चार खेमों में साफ-साफ नजर आ रहा है.
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अब देखिए, गाने की दूसरी लाइन- ‘जियरा रे झूमे ऐसे, जैसे बनमा नाचे मोर’… गहलोत सरकार के द्वारा विधानसभा सत्र बुलाने के लिए पहले तीन बार भेजी गई फाइल ‘ना’ के साथ लौटा दी गई, चौथी बार फाइल राज्यपाल के पास भेजी गई, फिर स्वीकार हो गई. अब 14 अगसत को विधानसभा सत्र आहूत होगा. इसके बाद से गहलोत खेमे में बिल्कुल यही नजारा है, जिया झूम रहा है, ठीक ऐसे जैसे वन में मोर खुश होकर नाचता है.
अब इस गाने की आगे की लाइन का आनंद लिजिए- मौजवा करे क्या जाने, हमको इशारा, जाना कहां है पूछे, नदिया की धारा – मरजी है तुम्हारी, ले जाओ जिस ओर. जियरा रे झूमे ऐसे… इस मौजवा को सीएम अशोक गहलोत अच्छी तरह समझते हैं, कि यह मौजवा कितनी चुनौती भरी है. वो इस मौजवा के सारे ईशारे अच्छी तरह जानते हैं. ऐसा लग रहा है कि नदियां की धारा भी उनसे इसी मौजवा की ओर संकेत करती हुई पूछ रही है, कि बताइए आपको जाना कहां है.
नदियां के इस सवाल के जवाब में गहलोत अपने सधे हुए राजनीतिक अंदाज में शायद यही कहेंगे कि मरजी है तुम्हारी, ले जाओ जिस ओर. यानि सत्ता के आखिरी संघर्ष में अब जहां भी नदियां की धारा ले जाना चाहे, वो पूरी तरह तैयार हैं, पूरी तरह कॉंफिडेंट जहां भी ले जाना चाहें वहीं पहुंचकर सीएम गहलोत अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जादूगरी साबित करने के लिए तैयार हैं.
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अब आते हैं, इस गाने के अगले अंतरे पर… रामा गजब ढाए, ये पुरवइया. नइया सम्भालो कित, खोए हो खिवइया…. पुरवइया के आगे, चले ना कोई जोर…. गाने का संदर्भ राजस्थान के राजनीतिक हालातों से समझे तो रामा की यह पुरवाईयां भी क्या गजब ढा रही है. रामा की पुरवाईयों ने इतना गजब तो कहीं और किसी राज्य में नहीं ढाया. गहलोत सरकार की नैया ही पूरी तरह हिला डाली. संभाले नहीं संभल रही. समय भी शायद मुख्यमंत्री गहलोत से कह रहा है, कि नइया संभालो, चूक मत जाना. नही तो नइया समय की धारा में पलटी खा जाएगी. गहलोत नइया को संभालने की सारी कोशिशों के बाद मानो यह कह रहे हो कि पुरवइया के आगेे, चले ना कोई जोर. फिर भी इस पुरवइया से नैया को बचाने लिए वो आखिरी समय तक अपना जोर लगाते रहेंगे.
अब आते हैं गाने के आखिरी और महत्वपूर्ण अंतरे पर…. जिनके बलम बैरी, गए हैं बिदेसवा. लाई है जैसे उनके, प्यार का संदेसवा, काली अंधियारी, घटाएं घनघोर. जियरा रे झूमे ऐसे …
बताने की जरूरत नहीं की कौनेसे बलम बैरी हो गए हैं. यह भी बताने की जरूरत नहीं कि कौनसे परदेस गांव में जाकर बैठ गए हैं. लेकिन काली अंधियारी और घनघोर घटाएं, बैरी बलम का संदेश लेकर सीएम गहलोत तक पहुंच चुकी है. अब गहलोत जूझ रहे हैं, इन काली अंधियारी, घनघारे घटाओं को हटाने में.
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अब आते हैं गाने के समापन पर. अशोक गहलोत खेमे के विधायकों को कड़ी सुरक्षा में चार्टर प्लेन्स से जैसलमेर ले जाया गया है. सावन में राजनीति शोर के बीच अब मन जयपुर में नहीं लग रहा या यूं कह लें कि अब तोड़-फोड़ की बढ़ती आशंका के डर से विधायकों को यहां रखना ज्यादा सेफ नहीं है, इसलिए अब जैसलमेर की सूर्यगढ होटल में किसी मोर की तरह नाचेगा सियासी मन.