50 के हुए राहुल गांधी, छवि से इतर एक अलग छवि बनाने की कवायद में जुटे युवराज-ए-कांग्रेस

50वां जन्मदिन मना रहे राहुल गांधी, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद राजनीति में अग्रेसिव भूमिका निभा रहे राहुल अलग अंदाज में दिख रहे, कोरोना संकट में जो राष्ट्रीय नेता की भूमिका उनकी रही, निश्चित तौर पर विरोधी खेमे के अगुआ राहुल गांधी ही होंगे और आगामी समय में फिर से कांग्रेस के सर्वेसर्वा भी

Rahul Gandhi Birthday Special (राहुल गांधी)
Rahul Gandhi Birthday Special (राहुल गांधी)

पॉलिटॉक्स न्यूज. कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी (Rahul Gandhi) आज अपना 50वां जन्मदिवस (Rahul Gandhi Birthday) मना रहे हैं. हालांकि चीन-भारत में हुए हिंसक विवाद में 20 जवानों के शहीद होने के बाद राहुल गांधी ने अपना जन्मदिन नहीं मनाने का निर्णय किया है. माना कि इस समय कांग्रेस का मान और प्रतिष्ठा वो नहीं रहे जो कभी हुआ करती थी लेकिन राहुल गांधी और उनकी छोटी बहिन प्रियंका के कंधों पर कांग्रेस का वो ही वक्त वापिस लाने की जिम्मेदारी है. फिलहाल कांग्रेस के युवराज के बाद राजनीति से जुड़ी कोई जिम्मेदारी नहीं है लेकिन उसके बाद भी उम्मीद यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में उन्हें फिर से कांग्रेस की बागड़ौर संभालते हुए देखा जा सकता है.

9 जून, 1970 को नई दिल्ली में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी के यहां हुआ था. दीदी इंदिरा गांधी, चाचा संजय गांधी और अपने पिता राजीव गांधी के राजनीति वातावरण में पैदा होने के बावजूद राहुल गांधी ने हमेशा साधारण जीवन ही जिया. दो भाई बहिनों में बड़े राहुल गांधी की प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में की और इसके बाद वो प्रसिद्ध दून विद्यालय में पढ़ने चले गये जहां उनके पिता ने भी विद्यार्जन किया था. सन 1981-83 तक सुरक्षा कारणों के कारण राहुल गांधी को अपनी पढ़ाई घर से ही करनी पड़ी. राहुल ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के रोलिंस कॉलेज फ्लोरिडा से सन 1994 में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की. इसके बाद सन 1995 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज से एम.फिल की उपाधि प्राप्त की. इस दौरान उन्होंने मार्शल आर्ट में ब्लैक बैल्ट भी प्राप्त किया.

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स्नातक स्तर तक की पढ़ाई कर चुकने के बाद राहुल गांधी ने प्रबंधन गुरु माइकल पोर्टर की प्रबंधन परामर्श कंपनी मॉनीटर ग्रुप के साथ 3 साल तक काम किया. राहुल गांधी की सरलता का इसी बात से पता लगाया जा सकता है कि इस दौरान उनकी कंपनी और सहकर्मी इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे कि वे किसके साथ काम कर रहे हैं. 2002 के अंत में वह मुंबई में स्थित अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी से संबंधित एक कम्पनी ‘आउटसोर्सिंग कंपनी बैकअप्स सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड’ के निदेशक-मंडल के सदस्य बन गये.

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2003 में जब राहुल गांधी भारत लौटे, उनके राष्ट्रीय राजनीति में आने के बारे में बड़े पैमाने पर मीडिया में अटकलबाजी का बाज़ार गर्म था, लेकिन तब न उन्होंने और न ही सोनिया गांधी ने इसकी कोई पुष्टि की. ये वो दौर था जब देश में बीजेपी की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. उस समय राहुल गांधी प्राय: सार्वजनिक समारोहों और कांग्रेस की बैठकों में अपनी मां सोनिया गांधी के साथ ही दिखाई दिए. जनवरी, 2004 में जब उन्होंने अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र अमेठी का दौरा किया, तब उनके राजनीति में प्रवेश की फिर से अटकलें बढ़ी लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि मैं राजनीति के विरुद्ध नहीं हूं लेकिन मैंने यह तय नहीं किया है कि मैं राजनीति में कब प्रवेश करूंगा और करूंगा भी या नहीं.

Rahul Sonia
Rahul Sonia

मार्च 2004 में, मई 2004 का चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश की घोषणा की. वह अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा चुनाव के लिए खड़े हुए. इससे पहले उनके चाचा संजय गांधी ने, जो एक विमान दुर्घटना के शिकार हुए थे, ने भी संसद में इसी क्षेत्र का नेतृत्व किया था. उसके बाद सोनिया गांधी ने इस सीट का नेतृत्व किया. उस समय कांग्रेस यूपी की 80 सीटों में से महज़ 10 लोकसभा सीट ही जीत पाई थी और कांग्रेस का हाल बहुत बुरा था.

हालांकि कुछ रणनीतिकारों को पूरा विश्वास था कि अमेठी की जनता राहुल गांधी को उसी तरह से स्वीकार करेगी, जिस तरह गांधी परिवार के अन्य सदस्यों सहित सोनिया गांधी को स्वीकार किया था. ये भी माना जा रहा था कि देश के सबसे मशहूर राजनीतिक परिवारों में से एक देश की युवा आबादी के बीच इस युवा सदस्य की उपस्थिति कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवन देगी. ऐसा ही कुछ हुआ भी, उन्होंने एक लाख वोटों के अंतर से चुनाव क्षेत्र को परिवार का गढ़ बनाए रखा. उनका चुनावी अभियान प्रियंका गांधी द्वारा संचालित किया गया था.

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2006 तक राहुल गांधी केवल एक सांसद बने रहे और न पार्टी में और न ही सत्ता में कोई पद ग्रहण किया. उन्होंने मुख्य निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दों और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रेस में व्यापक रूप से अटकलें थी कि सोनिया गांधी भविष्य में उन्हें एक राष्ट्रीय स्तर का कांग्रेस नेता बनाने के लिए तैयार कर रही हैं, जो बात बाद में सच साबित हुई.

जनवरी 2006 में, हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सम्मेलन में पार्टी के हजारों सदस्यों ने राहुल गांधी को पार्टी में एक और महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका के लिए प्रोत्साहित किया और प्रतिनिधियों के संबोधन की मांग की. इस पर उन्होंने कहा, ‘मैं इसकी सराहना करता हूँ और मैं आपकी भावनाओं और समर्थन के लिए आभारी हूं. मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आपको निराश नहीं करूंगा.’ साथ ही धैर्य रखने को कहा और पार्टी में तुरंत एक उच्च पद लेने से मना कर दिया. इसके बाद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने 2006 में रायबरेली में पुनः सत्तारूढ़ होने के लिए उनकी मां सोनिया गांधी का चुनाव अभियान हाथ में लिया, जो आसानी से चार लाख से अधिक अंतर के साथ जीतकर लोकसभा पहुंची.

2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए एक उच्च स्तरीय कांग्रेस अभियान में उन्होंने प्रमुख भूमिका अदा की लेकिन कांग्रेस केवल 22 सीटें ही जीत पाई. इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को बहुमत मिला, जो पिछड़ी जाति के भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है. उस समय तक राहुल गांधी को सबने राजनीति का कच्चा नींबू ही समझा लेकिन 2008 के आखिर में राहुल गांधी पर लगी एक स्पष्ट रोक से उनकी शक्ति का पता पूरे देश को चल गया.

Rahul Gandhi And Mayawati
Rahul Gandhi And Mayawati

तत्कालीन यूपी मुख्यमंत्री मायावती ने राहुल गांधी को चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करने के लिए सभागार का उपयोग करने से रोक दिया. बाद में राज्य के राज्यपाल टी.वी.राजेश्वर (जो कुलाधिपति भी थे) ने विश्वविद्यालय के कुलपति वी.के.सूरी को पद से हटा दिया. गवर्नर राजेश्वर गांधी परिवार के समर्थक और सूरी के नियोक्ता थे. इस घटना को शिक्षा की राजनीति के साक्ष्य के रूप में उद्धृत किया गया और अजित निनान द्वारा टाइम्स ऑफ इंडिया में एक व्यंग्यचित्र में लिखा गया: वंश संबंधित प्रश्न का उत्तर राहुल जी के पैदल सैनिकों द्वारा दिया जा रहा है. लेकिन इस घटना ने राहुल गांधी की ताकत का एक ट्रेलर दिखा दिया.

2009 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 3,33,000 वोटों के अन्तर से पराजित करके अपना अमेठी निर्वाचक क्षेत्र बनाए रखा. इन चुनावों में कांग्रेस ने यूपी में 80 लोकसभा सीटों में से 21 जीतकर उत्तर प्रदेश में खुद को पुनर्जीवित किया और इस बदलाव का श्रेय भी राहुल गांधी को ही दिया गया. उन्होंने छह सप्ताह में देशभर में उन्होंने 125 रैलियों में भाषण दिया था. इस दौरान उन्हें प्रधानमंत्री पद पर आसीन करने की अपील की गई लेकिन सोनिया गांधी ने फिर से ये जिम्मेदारी लगातार दूसरी बार डॉ.मनमोहन सिंह को सौंपी.

हालांकि 2014 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ गया लेकिन मोदी लहर में कांग्रेस तिनके की भांति उड़ गई. पिछले आम चुनावों में 206 सीटें जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा में केवल 44 सीटों पर सिमट गई. हालांकि राहुल और सोनिया ने अपनी सीट सुरक्षित रखी. राजस्थान में सभी 25 की 25 सीट बीजेपी के खाते में गई. इस समय सोनिया गांधी ने तबीयत खराब चलने के चलते राजनीति से दूरी बनाना शुरु कर दिया. 16 दिसम्बर, 2017 को राहुल गांधी को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर मनोनीत किया गया. इसके बाद पार्टी का पूरा दारोमदार राहुल गांधी के हाथों में आ गया लेकिन पर्दे के पीछे की राजनीति कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हाथ में रही और कमान सोनिया गांधी के.

Rahul Gandhi, Sonia Gandhi And Dr Manmohan Singh
Rahul Gandhi, Sonia Gandhi And Dr Manmohan Singh

2019 में हुए लोकसभा चुनावों में उम्मीद थी कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस मोदी लहर के बावजूद बीजेपी को कड़ी चुनौती देगी लेकिन इतिहास फिर दोहराया गया. बीजेपी 302 सीटें जीत पूर्ण बहुमत से सदन में पहुंची और कांग्रेस 52 पर सिमट गई. राजस्थान, हरियाणा सहित कई राज्यों में पार्टी का खाता तक नहीं खुला. खुद राहुल गांधी अपनी परम्परागत अमेठी सीट से बीजेपी की स्मृति ईरानी के सामने हार बैठे. इससे दुखी होकर हार का पूरा दारोमदार उठाते हुए राहुल गांधी ने 3 अगस्त, 2019 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. सोनिया गांधी सहित सभी वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें पार्टी की जिम्मेदारी निभाने को कहा लेकिन उन्होेंने मना कर दिया. ऐसे में सोनिया गांधी ने फिर पार्टी की कमान संभाली और पार्टी को पटरी पर लाने की कोशिश कर रही हैं.

अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वर्तमान में जो संगठन के हालात हैं, बेहद सोचनीय हैं. मध्य प्रदेश में सरकार गिर चुकी है, गुजरात व गोवा में कांग्रेस विधायक टूट चुके रहे हैं, राजस्थान में संकट बरकरार है, हरियाणा में भी हुड्डा बगावती तेवर दिखा रहे हैं, पंजाब में अंतर कलह चल रही है, यूपी में हालात बेहद सोचनीय हैं, महाराष्ट्र व झारखंड में कांग्रेस सरकार में जरूर है लेकिन सहयोगी बनकर. 18 से अधिक राज्यों में बीजेपी का कमल खिला हुआ है. कांग्रेस का जनाधार लगातार सिमटता जा रहा और संगठन बिखरा सा नजर आ रहा है. ऐसे में राहुल गांधी के सामने गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने के साथ-साथ आगे बढ़ाने की चिंता है. कुल मिलाकर कांग्रेस की राजनीति अर्श से फर्श पर आ गिरी है.

हालांकि राहुल गांधी को ही कांग्रेस का भाग्य विधाता माना जा रहा है और कांग्रेस समर्थकों एवं उनके चाहने वालों को ‘राहुल गांधी रिटन्स’ का बेसब्री से इंतजार है. ऐसे में राहुल गांधी के सामने ‘गांधी परिवार’ की राजनीतिक विरासत को बचाने के साथ-साथ आगे बढ़ाने की चुनौती है. इसके अलावा कांग्रेस के खोए हुए जनाधार को वापस लाने और खुद के साबित करने जैसे बड़ी चुनौती भी है. प्रियंका अपनी राजनीति का सिक्का यूपी में मनवा चुकी हैं और स्थानीय राजनीति में मशगुल हैं जबकि राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से केंद्रीय मुद्दों पर लगातार सरकार को घेरने की रणनीति पर सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं.

Rahul Gandhi And Priyanka Gandhi
Rahul Gandhi And Priyanka Gandhi

राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अपने छवि को बदलकर एक बार फिर से खड़े होने की. राहुल को अब अपनी छवि से इतर एक छवि बनाने की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसमें एक विजेता बनकर उभरते दिख रहे हैं. कांग्रेस के सामने अपनी विचारधारा को लेकर भी एक बड़ी चुनौती है. राहुल कांग्रेस की विचाराधारा को तय नहीं कर पा रहे हैं. देश में लोग वामपंथी विचारधारा को नकार रहे हैं तो राहुल गांधी उसे स्वीकारते जा रहे हैं. दरअसल राहुल गांधी गरीब तबके की बात करते हैं या अमीर तबके लेकिन जो देश का सबसे बड़ा वोटर है ‘मिडिल क्लास’, उसे अपने से दूर करते जा रहे हैं. पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा कारण ये मिडिल क्लास वोटर ही तो रहा है. मिडिल क्लास से कांग्रेस ने अपना पूरा नाता तोड़ लिया है जबकि एक दौर में पार्टी का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था.

इसके अलावा कांग्रेस के साथ एक बड़ी समस्या ये भी रही है कि न तो पार्टी कठिन निर्णय ले पा रही है और न ही मौकों को भुना पा रही है. नेता आपस में ही लड़ रहे हैं, जो एक सोचनीय समस्या है. मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ, वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और युवा नेता ज्योतिरादित्य के बीच आपसी फूट ने मप्र की सरकार गिराने में मदद की. हरियाणा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर की बगावत ने कांग्रेस को जीत से दूर रखा जबकि भूपेंद्र हुड्डा ने बगावती तेवर दिखाते हुए सोनिया गांधी की करीबी कुमारी सैलजा को राज्यसभा जाने से रोक दिया.

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खासकर युवा पीढ़ी में कांग्रेस की राजनीतिक प्रासंगिकता को लेकर गहरे सवाल हैं. राहुल इन सवालों के ठोस जवाब और स्पष्ट विजन के साथ युवा वर्ग को अपने साथ जब तक नहीं जोड़ते, तब तक कांग्रेस की राजनीतिक वापसी की राह शायद ही बनेगी.

कांग्रेस को बदलने की जरूरत और इरादे तो राहुल गांधी ने बार-बार जाहिर किए. मगर पार्टी की शैली और चिंतन को बदलने की अपनी सोच को राहुल कोई स्वरूप नहीं दे सके. जमीनी स्तर पर सामाजिक और राजनीति समझ रखने वाले नेता और बीजेपी की तुलना में उच्च कोटी के वक्ता कांग्रेस में नहीं हैं. कांग्रेस की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए नेहरू और इंदिरा के राजनीतिक पैटर्न को राहुल गांधी को अपनाना होगा और उसी रास्ते पर चलकर वे कांग्रेस को नई दिशा और दशा दे पाएंगे. कांग्रेस नेताओं में यह आत्मविश्वास पैदा करें कि पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हासिल कर सकती है.

हाल ही में राहुल गांधी जिस तरह से वापसी कर रहे हैं, उससे कांग्रेस को एक नई दिशा मिलती दिख रही है. विपक्ष की अगर बात आती है तो कांग्रेस ही दिखती है. राहुल गांधी के एक बयान पर जिस तरह से बीजेपी हमलावर होती है, उससे भी राहुल की राजनीतिक अहमियत का पता चलता है. जिस तरह कोरोना संकट को लेकर उन्होंने तीन महीने पहले ही सरकार को आगाह कर दिया था, जिस तरह वित्तिय संकट को लेकर वें एक्सपर्ट से लगातार वार्ता कर रहे हैं, जिस तरह से चीन से हिंसक झड़प में उन्होंने भारतीय सैनिकों के निहत्थे होने का मसला उठाया है, अपनी छवि से इतर एक अलग छवि बनाने की कवायद जरूर करते दिखे हैं.

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राहुल अभी जिस तरह की राजनीतिक पहचान बना रहे हैं वो काफी महत्वपूर्ण है. इसी राह पर चलकर कांग्रेस के खोए हुए जनाधार को वो वापस ला सकते हैं. कोरोना को लेकर अपने रुख को बेहद सियासी समझदारी से तय कर रहे राहुल गांधी के ट्वीट सरकार को घेरते हैं लेकिन उनका लहजा आक्रामक न होकर सुझाव देने वाला होता है. वीडियो कॉन्फ्रेंस में वे जिस तरह सरकार की लापरवाही से संबंधित सवालों को टालते हुए टेस्टिंग बढ़ाने, लॉकडाउन में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने, उनके खातों में पैसे डालने जैसी लोक लुभावन मांग उठा रहे हैं, लग रहा है कि उनके वंश में पले बढ़े राजनीति के बीज धीरे धीरे पनप कर पौधों की शक्ल ले रहे हैं.

राहुल दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंककर पीने वाली कहावत चरितार्थ करते हुए कोरोना पर अपनी प्रतिक्रियाओं को लेकर सजग हैं. वे जानते हैं कि कोरोना संकट के टल जाने के बाद ये सभी बड़े राजनीतिक मुद्दे बनेंगे. जिसमें एक ओर सरकार इस संकट से निपटने के अपने प्रयासों को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही होगी और भारत को विकसित देशों की तुलना में बड़े नुकसान से बचाने की बात कह रही होगी, दूसरी ओर विपक्ष कमजोर अर्थव्यवस्था, नौकरियों का संकट, महंगाई, मजदूरों का पलायन आदि मुद्दों को लेकर सरकार को घेर रहा होगा. इसमें सरकार विरोधी खेमे के अगुआ राहुल गांधी ही होंगे और इसी से उनको कांग्रेस की कमान दोबारा संभालने का मौका भी मिलेगा.

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