Mamta Banerjee preparing third front: देश में आगामी लोकसभा चुनावों को एक साल के करीब समय शेष है. उससे पहले गठजोड़ और सियासी समीकरण की गणित का जोड़-भाग होना शुरू हो गया है. गुजरात एवं हिमाचल चुनावों से ऐन वक्त पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं वर्तमान सांसद राहुल गांधी ने भारत जोड़ा यात्रा निकाल देश में अन्य राजनीतिक पार्टियों को विपक्षी एकता का संदेश देते हुए सत्ताधारी मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने का रास्ता तो दिखा दिया लेकिन यात्रा समाप्त होते ही राहुल गांधी और कांग्रेस केम्ब्रिज मामले में उलझ कर रह गए. हालांकि राकंपा सुप्रीमो शरद पवार जैसे कुछ लीडर्स अभी भी विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं लेकिन दूसरी ओर, ममता बनर्जी आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता में शामिल होने की जगह भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के खिलाफ तीसरा मोर्चा खोलने की तैयारी कर रही है. दीदी का मानना है कि बीजेपी की नीतियों से नाराज और कांग्रेस से मोह भंग कर चुके लोगों के लिए थर्ड फ्रंट एक मरहम की तरह काम कर सकता है.
बंगाल विधानसभा चुनावों के समय से ही तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी सबसे अलग थलग होकर काम कर रही है. बंगाल में भी उन्होंने कांग्रेस या अन्य पार्टियों से गठबंधन करने से पूरी तरह मना कर दिया, जबकि उस समय उनके 24 प्रमुख नेता बीजेपी की शरण ले चुके थे. इसके बावजूद उन्होंने अकेले चुनाव लड़ा और जो नतीजा आया, वो सबसे सामने है. इसके बाद ममता न तो कभी कांग्रेस और न ही शरद पवार की किसी विपक्षी एकता वाली बैठकों में शामिल हुईं. यहां तक कि उन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से भी दूरी बनाए रखी और अपने इरादे स्पष्ट कर दिए.
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अब ममता थर्ड फ्रंट बनाकर अपनी बादशाहत कायम रखना चाहती है. वे अच्छी तरह जानती हैं कि विपक्षी एकता में शामिल होने का मतलब है कि वहां कांग्रेस और राहुल गांधी ही सर्वेसर्वा रहेंगे. इससे बेहतर है कि एनडीए और यूपीए से अलग एक नया धड़ा तैयार किया जाए जहां बीजेपी और कांग्रेस की नीतियों से परेशान लोगों को अपने खेमे में लाया जा सके. यह खेमा अलग दो से तीन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करता है तो पिछले लोकसभा चुनावों में 51 सीटों पर सिमटी कांग्रेस को पीछे धकेलकर प्रमुख विपक्षी दल बना जा सकता है. यही वजह है कि ममता ने लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और यूपीए से किसी भी तरह के गठबंधन से स्पष्ट तौर पर मना कर दिया है. मेघालय विस चुनावों में राहुल गांधी द्वारा टीएमसी को बीजेपी की टीम बी बताने को लेकर भी ममता और कांग्रेस के बीच तल्खी मजबूत हुई है.
जैसाकि सर्वविदित है कि थर्ड फ्रंट की राजनीति हमेशा मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग तक सीमित रहती है. इसी पटरी पर ममता दीदी भी चल रही है. ऐसे में टीएमसी, AIMIM के प्रमुख ओवैसी, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और काफी हद तक बहुजन समाज पार्टी की मायावती से संपर्क साध रही हैं. हालांकि ये कहना ज्यादा उचित होगा कि ये सभी अलग अलग दीदी से संपर्क साध रहे हैं.
इसी कड़ी में 17 मार्च को अखिलेश यादव ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कोलकाता में उनके आवास पर मुलाकात की थी. इस दौरान ममता और अखिलेश ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों से दूरी बनाने का फैसला किया. इस मीटिंग के बाद अखिलेश ने कहा था कि भगवा खेमे को हराने के लिए सपा मजबूती से टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ खड़ी रहेगी. राजस्थान चुनावों में टीएमसी का ओवैसी से गठबधन होने के संकेत सामने आ रहे हैं. अधिकांश देखा भी गया है कि दोनों की राजनीति एक ही पक्ष के इर्दगिर्द घूमती है. ऐसे में इस गठबंधन में उनका शामिल होना करीब करीब तय माना जा रहा है.
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देशभर में बसपा का एक खास वोटबैंक है और दलित वर्ग पर मायावती की मजबूत पकड़ है. चूंकि यूपी में मायावती और अखिलेश एक साथ चुनाव लड़ चुके हैं, ऐसे में मायावती का इस खेमे में शामिल होना थर्ड फ्रंट को मजबूत बनाने का काम करेगा. आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से दूर रहे थे. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर दीदी का प्रस्ताव आता है तो केजरीवाल एंड कंपनी को भी दीदी के खेमे से जुड़ने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
इस पकड़ को अधिक मजबूत करने के लिए ममता खुद भुवनेश्वर पहुंचकर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात कर नए गठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव दे चुकी हैं.
गौरतलब है कि ममता ने बीते दिनों शरद पवार से भी मुलाकात की थी. यहां विपक्षी एकता को लेकर कुछ बातें होने की चर्चाएं सामने आई हैं लेकिन ममता ने यूपीए धड़े में शामिल होने से साफ तौर पर मना कर दिया है. हालांकि इसके बाद भी शरद पवार विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर अपने निवास पर एक बैठक के लिए बुलावा भेज रहे हैं. इसमें दीदी के आने की संभावना ना के बराबर है. अब अगर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले टीएमसी-AIMIM-सपा-बसपा सहित अन्य पार्टियों का थर्ड फ्रंट खड़ा हो जाता है तो ये कांग्रेस के लिए वोट कटवा साबित होगा और इससे यूपीएम का कमजोर होना निश्चित है. अगर इस धड़े को प्रमुख विपक्षी दल की मान्यता मिलती है तो यहां दीदी का कद बढ़ना निश्चित है.