Politalks.News/NewDelhi. किसी ने सोचा नहीं था की पुरे विश्व में अपना लोहा मनवाने वाले दो बड़े लोकतांत्रिक देश जो अपने लोकतंत्र को सर्वोपरि दिखा कर विश्वभर में सुर्खियां बटोरते रहे हैं, लेकिन उनके लिए बीता एक महीना शर्मनाक रहा. जी हां जैसा नजारा अमेरिका के कैपिटल हिल में देखने को मिला था कुछ वैसा ही नजारा आज भारत के लाल किले पर भी देखने को मिला. हालाँकि 26 जनवरी का दिन देश के लिए गौरव का प्रतीक है. जहाँ देश का तिरंगा लहराया जाता है, उस लाल किले पर आज किसानों ने अपना झंडा लहरा दिया. जिस जगह देश के प्रधानमंत्री हर साल स्वतंत्रता दिवस के दिन झंडारोहण करते हैं, वहां हंगामे और भारी हिंसा के बीच एक युवक ने उस पोल पर चढ़ कर खालसा पंथ और किसान संगठन का झंडा लहरा दिया. जिसके बाद लगभग 2 महीने से शांतिपूर्वक चल रहे किसान आंदोलन पर उंगलियां उठने लगीं हैं.
ऐसा नजारा आज से ठीक 20 दिन पहले 6 जनवरी को भी देखने को मिला था, जब अमेरिका के केपिटल हिल में हथियार के साथ ट्रम्प समर्थक कैपिटल हिल में घुस गए और वहां तोड़फोड़ की. कुछ ऐसा ही नजारा आज दिल्ली में भी देखने को मिला दिल्ली में जहां एक ओर राजपथ पर देश के जवानों ने अपना शौर्य प्रदर्शन दिखाया तो वहीं देश भर के किसान केंद्र सरकार द्वारा लाये गए तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर ट्रेक्टर परेड निकाली. किसान नेताओं द्वारा जहां इस ट्रेक्टर परेड में किसी तरह की हिंसा ना होने की बात कही गई थी लेकिन, दिल्ली में परेड का नजारा बिलकुल अलग नजर आया.
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किसानों की ट्रेक्टर परेड को लेकर दिल्ली पुलिस ने किसानों के लिए जो रुट तय किया गया था, उसके उलट किसानों ने बैरिकेट्स तोड़ कर लाल किले की तरफ कूच किया, और ठीक उसी जगह, जहां देश के प्रधानमंत्री वर्षों से तिरंगा लहराते आ रहे हैं वहां एक युवा किसान कहें या अराजक तत्व ने, पोल पर चढ़कर खालसा पंथ और किसान संगठन का झंडा लहरा दिया. हालाँकि काफी जद्दोजहद के बाद किसानों को लाल किले से हटाया गया और किसानों द्वारा फहराए गए झंडे को निचे उतार दिया गया.
अब ऐसी स्थिति में कैपिटल हिल और लाल किले पर हुई घटना अत्यंत निंदनीय नजर आती है. कैपिटल हिल पर हुए हमले का कसूरवार तो अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और ट्रम्प समर्थकों को माना गया. लेकिन सवाल ये उठता है कि आज जो दिल्ली में हिंसा हुई, जो लाल किले पर किसानों का कूच हुआ, उसके लिए असल में जिम्मेदार कौन है? क्या इस देश का अन्नदाता और इन अन्नदाताओं के मुखिया बने बैठे वो किसान नेता इस घटना के जिम्मेदार हैं? या फिर देश की सरकार और स्वयं नरेंद्र मोदी इस घटना के जिम्मेदार है?
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सवाल बहुत बड़ा है और आरोप भी लेकिन क्या ये सच है कि अगर केंद्र सरकार तीनों कृषि कानून वापस ले लेती तो ये स्थिति पैदा होती? सवाल ये भी है कि ‘जब किसानों को ट्रेक्टर परेड की इजाजत दी गई तब दिल्ली पुलिस को हिंसा का पहले से अनुमान था, तो फिर लाल किले पर सुरक्षा व्यवस्था का पूरा इंतजाम क्यों नहीं किया गया? बता दें, आज की हिंसा के बाद हुई गृह मंत्रालय की बैठक में दिल्ली में 10 सीआरपीएफ और 5 अन्य पैरा मिलिट्री फोर्स को तैनात करने के आदेश दिए हैं. लेकिन क्या यही आदेश इसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था 26 जनवरी से पहले नहीं कि जा सकती थी? क्या दिल्ली पुलिस और इंटेलिजेंस के गोपनीय सूत्र किसानों के बीच बैठे उपद्रवियों के प्लान का पता लगाने में फैल रहे? आखिर किसकी जिम्मेदारी बनती है?
बताया जा रहा है कि किसानों का जो रूट पुलिस ने तय किया था, उसमें लाल किला कहीं नहीं आता. सिंघु बॉर्डर से जो किसान दिल्ली में दाखिल हुए, वहीं रूट तोड़कर लाल किले की ओर बढ़ गए. संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर से उन्हें आउटर प्वाइंट की तरफ जाना था, लेकिन उधर ना जाकर वो लाल किले की तरफ मुड़ गए. मुबारका चौक पर कुछ किसानों को पुलिस ने रोका भी, लेकिन हाथापाई के बाद पुलिस हट गई और वहां हजारों किसान जमा हो गए. वहीं किसान संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने इसकी जिम्मेदारी लेने से साफ इंकार करते हुए कहा है कि उपद्रवी हमारे आंदोलन का हिस्सा नहीं हैं और इनको हम जानते तक नहीं हैं.
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सरकार की ओर से सुरक्षा के मध्यनजर एहतियातन किसानों के प्रदर्शन वाली जगहों पर इंटरनेट सेवा को बाधित कर दिया गया है. सिंघु, टीकरी, गाजीपुर बॉर्डर के साथ ही मुकरबा चौक और नांगलोई इलाके में इंटरनेट रात 12 तक बंद कर दी गई है. वहीं, किसान अभी भी दिल्ली में कई जगहों पर परेड शांतिपूर्वक तरीके से निकाल रहे हैं. बता दें किसान आंदोलन कर सरकार से नए कृषि कानून को रद करने की मांग पर अड़े हैं.
सुबह सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर पर सुबह किसानों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी किसान परेड निकाली थी. थोड़ी देर बाद ही गाजीपुर बॉर्डर पर कुछ उपद्रवी उत्तेजित होकर दिल्ली के आइटीओ पहुंच गए. यहां प्रदर्शन करने के दौरान उनकी पुलिस से झड़प भी हुई. हालांकि कुछ देर बाद ही वहां शांति छा गई, लेकिन आईटीओ के पास ही अभी भी कुछ उपद्रवी किसानों ने कब्जा जमा रखा है. बता दें कि सुबह में किसानों पूरे झंडे और तिरंगे के साथ नारेबाजी करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से परेड निकाल रहे थे. सभी किसान नेता यह कह कर थे कि हम अपने तय रूट पर ही चल रहे थे.