लोकसभा में बीजेपी के बहुमत से राज्यसभा में भगदड़ का माहौल

बीजेपी के राज्यसभा में बहुमत जुटाने के प्रयास जोरों पर है. लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के बाद अब बीजेपी को राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत मिलना जरूरी माना जा रहा है. इसके संकेत नीरज शेखर के इस्तीफे से मिलने लगे हैं. नीरज शेखर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के छोटे पुत्र हैं. उत्तर प्रदेश में पिता की सीट बलिया से समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा सांसद रह चुके हैं. 2014 की मोदी लहर में लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्हें समाजवादी पार्टी ने तत्काल राज्यसभा सदस्य बना दिया था.

अब लगता है नीरज शेखर का समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो गया है और वह बीजेपी में जाने वाले हैं. वह इसी धारणा को पुष्ट करते नजर आ रहे हैं कि राजनीति में कौन किसका एहसान मानता है? करियर देखें या निष्ठा और प्रतिबद्धता की परवाह करें? सांसद के रूप में मिलने वाली सुविधाएं बनाए रखना भी जरूरी है. अगर वह बीजेपी के सहारे बनता है तो वही ठीक. नीरज शेखर का सपा से इस्तीफा एक समझदारी भरा फैसला है.

जब नीरज शेखर जैसे नेता बीजेपी में जा रहे हैं, तो बाकी बीजेपी विरोधी गैर कांग्रेसी पार्टियों के नेता क्या करेंगे समझा जा सकता है. चंद्रशेखर मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति करते थे. कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया तो उसका विरोध करने के कारण जेल चले गए. उनके पुत्र नीरज शेखर सुविधा और मौकापरस्ती की राजनीति कर रहे हैं. चंद्रशेखर को मानने वाले कई समाजवादी नेता नीरज शेखर के कदम से दुखी हैं. नीरज शेखर ने राज्यसभा की सदस्यता के साथ ही समाजवादी पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया है.

राज्यसभा में उनका कार्यकाल नवंबर 2020 तक का था. अब वह कुछ दिन बगैर सांसद, बगैर किसी पार्टी के नेता रहे राजधानी दिल्ली के 3, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थित मकान में ठाठ से रहेंगे. यह इसलिए होगा कि बीजेपी का वरदहस्त है. उनके पिता चंद्रशेखर को किसी के वरदहस्त की जरूरत नहीं पड़ती थी. वह संघर्ष से तपकर बने हुए नेता थे.

संकेत है कि बीजेपी नीरज शेखर को उत्तर प्रदेश से फिर राज्यसभा में भेज देगी. राज्यसभा में अब सपा की ताकत पहले जैसी नहीं है. वह अपने दम पर सिर्फ एक सांसद राज्यसभा में भेज सकेगी. नीरज शेखर दूरदर्शी हैं. उन्होंने सोचा कि 2020 के बाद सपा के टिकट पर संसद में जाना मुश्किल है, इसलिए भविष्य का इंतजाम पहले ही कर लेना चाहिए.

पिछले दस साल से संसद में नीरज शेखर की उपस्थिति है. सांसदों से मेलजोल, संसद का अनुशासन, सीट पर कैसे बैठे रहना है, झंझट वाले मुद्दों से कैसे बचकर रहना है, इन सब बातों में नीरज शेखर पारंगत हो चुके हैं और चंद्रशेखर के पुत्र होने से उनका एक अतिरिक्त वजन है, इसलिए बीजेपी को नीरज शेखर को शामिल करने में कोई आपत्ति नहीं है. चंद्रशेखर की एक संतान भी मोदी सरकार के साथ जुड़ जाएगी. नीरज शेखर विपक्ष को पूरी तरह समाप्त करने में भूमिका निभाएंगे. इसके बाद कई लोग पूछेंगे, क्या आप चंद्रशेखर के ही पुत्र हैं? नीरज शेखर कहेंगे हां, लेकिन मैं उनकी बराबरी नहीं कर सकता.

उत्तर प्रदेश में नवंबर 2020 में राज्यसभा की करीब दस सीटें खाली होंगी. इनमें नीरज शेखर की सीट भी शामिल है. संख्याबल के अनुसार इनमें से नौ सीटें बीजेपी जीतेगी. संभावना यही है कि जो सीट नीरज शेखर ने खाली की है, वह फिर से नीरज शेखर को ही मिल जाएगी. पहले वह सपा सांसद थे, अब बीजेपी सांसद के रूप में संसद में मौजूद रहेंगे. गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने सपा नेता अखिलेश यादव से बलिया से टिकट मांगा था, अखिलेश ने शायद यह सोचकर नहीं दिया कि नीरज पहले से राज्यसभा में हैं. अखिलेश के इनकार से नीरज नाराज थे.

इस समय राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसदों की संख्या नौ है. लोकसभा में उसके सिर्फ पांच सांसद रह गए हैं. राज्यसभा में भी गणित बदलना तय है. राज्यसभा में मौजूद विपक्षी पार्टियों के सांसदों में इस बदलते गणित के कारण भगदड़ देखी जा सकती है. अपनी राजनीति बचाने के लिए कई नेता बीजेपी की शरण देख रहे हैं. नीरज शेखर तो सिर्फ शुरुआत है. राज्यसभा से जुड़े विपक्षी पार्टियों के कई नेता बीजेपी में शामिल होने वाले हैं.

चंद्रशेखर भारतीय लोकतंत्र की राजनीति में एक ऐसे दबंग नेता के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने समझौतावादी राजनीति कभी नहीं की. कभी मंत्री बनने में रुचि नहीं दिखाई. राजीव गांधी के समर्थन से सीधे प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस की ऊटपटांग राजनीति देखी तो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया. भारतीय लोकतंत्र में एक सशक्त विपक्षी नेता के तौर पर उनका जो मान-सम्मान बचा हुआ है, उसको बीजेपी अपने आभामंडल के दायरे में लाने के पुरजोर प्रयास कर रही है. नीरज शेखर का बीजेपी के प्रति झुकाव इसका स्पष्ट उदाहरण है.

गौरतलब है कि राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने चंद्रशेखर पर एक किताब लिखी है- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स. इस किताब का विमोचन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे. इससे पहले नीरज शेखर के बीजेपी में शामिल होने की संभावना है. किताब के विमोचन कार्यक्रम से संकेत मिलेगा कि अब नीरज शेखर मोदी सरकार की छत्रछाया में हैं. इस तरह वह उन कई मामलों से भी बचेंगे, जो आने वाले दिनों में उनको परेशान करने वाले हैं.

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