केंद्र सरकार ने नेशनल मेडिकल कमिशन बिल-2019 को विपक्ष के विरोध के बावजूद गुरुवार को राज्यसभा से पास करा लिया. इससे पहले 29 जुलाई को ये बिल लोकसभा से में पारित करवाया गया था. जल्दी ही इसे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा जाएगा और उनकी अनुमति के बाद ये बिल कानून की शक्ल ले लेगा.
गौरतलब है कि जब से ये बिल लोकसभा से पारित हुआ है, देशभर के डॉक्टर्स इस बिल के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं. दिल्ली में एम्स के डॉक्टर्स भी लगातार तीसरे दिन हड़ताल पर हैं. विरोध प्रदर्शन के चलते अधिकांश सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह ठप्प हो गयी. आखिर क्या है इस बिल में जो सभी चिकित्सक एकजुट हो विरोध करने पर आमादा हैं. आइए जानते हैं ….
एनएमसी बिल-2019 पर एक सरसरी निगाह डालें तो पता चलता है कि पूरे बिल में केवल 5-6 बातें ही हैं जिसका की डॉक्टर्स विरोध कर रहे हैं. हालांकि इस बिल को सरकार केवल मेडिकल क्षेत्र में सिस्टम को सुधारने के लिए लेकर आयी है. सरकार का कहना है कि इस बिल के कानून बनने के बाद चिकित्सा परिस्थितियां बदल जाएंगी.
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1. इस बिल पर सबसे बड़ा विरोध ये हैं कि एनएमसी बिल-2019 में एक ब्रिज कोर्स का प्रावधान है. इस ब्रिज कोर्स को करने के बाद आयुर्वेद और होम्योपैथी डॉक्टर एलोपैथिक इलाज कर पाएंगे. इसके विरोध में डॉक्टर्स का कहना है कि इससे नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा. वहीं सरकार का कहना ये है कि आयुर्वेद और होम्योपैथी डॉक्टर्स के आने के बाद डॉक्टर्स की संख्या बढ़ेगी और चिकित्सा व्यवस्था सुधरेगी. साथ ही कहा गया है कि ब्रिज कोर्स के जरिए सीमित एलोपैथी प्रैक्टिस का अधिकार केवल उन आयुष डॉक्टरों को मिलेगा जिनके पास प्रैक्टिस का लाइसेंस हो.
2. एनएमसी के 32वें प्रावधान के तहत कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को मरीजों को दवाइयां लिखने और इलाज का लाइसेंस मिलेगा. इस प्रावधान पर डॉक्टर्स ने आपत्ति जताई कि इससे मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी. चिकित्सों का ये भी कहना है कि बिल में ‘कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर’ शब्द को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया. इसके अनुसार, अब नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिक्स आधुनिक दवाइयों के साथ प्रैक्टिस कर सकेंगे जबकि, वे इसके लिए प्रशिक्षित नहीं होते. इस पर सरकार का तर्क है कि इस बिल के आने से प्राइमरी हेल्थ वर्कर्स को 6 महीने का मेडिकल कोर्स करके प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिल जाएगा. इसके बाद वे प्राइमरी इलाज कर सकेंगे और दवाईयां भी लिख सकेंगे. इस कदम से खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को खासी राहत मिलेगी. कानून बनने के बाद करीब 3.5 लाख गैर-चिकित्सा शिक्षा प्राप्त लोगों को लाइसेंस मिलेगा.
3. नेशनल मेडिकल कमिशन बिल-2019 में दूसरा प्रावधान ये है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को 50 फीसदी सीटों की फीस तय करने का हक मिलेगा. इस प्रावधान के बाद जायज है कि अगर मेडिकल कॉलेज खुद फीस तय करेगा तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षा महंगी हो जाएगी. इस पर सरकार ने तर्क दिया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को 50 फीसदी सीटों की फीस तय करने का हक देने से आर्थिक तंगी से बंद होने की नौबत नहीं आएगी. हालांकि देश में एमबीबीएस की मौजूदा 76 हजार सीटों में से 58 हजार सीटों पर फीस सरकार ही तय करेगी.
4. केंद्र सरकार ने चिकित्सा में शिक्षा के स्तर को उंचा उठाने के लिए नेशनल मेडिकल कमिशन बिल-2019 में एक प्रावधान डाला गया है. प्रावधान के अनुसार, एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रैक्टिस शुरू करने के लिए डॉक्टरों को एक टेस्ट पास करना होगा. उसके बिना कोई भी प्रैक्टिस नहीं कर पाएगा. डॉक्टर्स का सबसे अधिक विरोध इसी प्रावधान पर है. डॉक्टरों का कहना है कि एक बार टेस्ट में नाकाम रहने के बाद दोबारा टेस्ट देने का कोई अतिरिक्त विकल्प यहां नहीं है. ऐसे में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद भी हजारों लोगों को घर बैठना पड़ेगा. वहीं सरकार ने तर्क दिया है कि इससे पढ़ाई का स्तर सुधरेगा. इस परीक्षा को पास करने वालों को ही मैडिकल प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस दिया जाएगा. इसी के आधार पर पोस्ट ग्रैजुएशन में एडमिशन होगा. बिल में बिना लाइसेंस मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों को एक साल की जेल और 5 लाख तक जुर्माने की व्यवस्था का प्रावधान है.
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5. इस बिल के आने के बाद एमसीआई यानि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया खत्म हो जाएगी. इसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन यानि एनएमसी लेगा. एमसीआई की बर्खास्ती के साथ ही कई अधिकारियों की सेवाएं भी तत्काल प्रभाव से समाप्त होंगी. इस पर सरकार का तर्क हे कि जिन कर्मचारियों-अधिकारियों की सेवाएं खत्म होंगी, उन्हें 3 महीने की तनख्वाह और भत्ते मिलेंगे. उसके बाद ही एनएमसी बनने की कार्यवाही शुरू होगी.
6. अगला तर्क राजनीतिक है. इसके तहत अब तक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के उच्चाधिकारियों की नियुक्ति चुनाव से होती आयी है लेकिन नेशनल मेडिकल कमीशन में सरकार द्वारा गठित एक कमेटी अधिकारियों का चयन करेगी. इसमें चिकित्सा संघ का कहना ये है कि सरकार तो अपने पसंद के अधिकारी को ही पैनल में बिठाएगी और पसंद के अधिकारी को एनएमसी में भेजेगी. इस पर सरकार ने तर्क दिया है कि चुने गये अधिकारी का कार्यकाल केवल चार वर्ष के लिए होगा. इससे चिकित्सीय पैनल को राजनीति से दूर रखने में मदद मिलेगी. कार्यकाल कम होने से योग्य लोगों को बेहतर अवसर प्राप्त होंगे.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने (IMA) ने एनएमसी बिल-2019 का कड़ा विरोध किया है. बिल का विरोध करते हुआ IMA के कहना है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का गठन 1956 में आधुनिक चिकित्सा सेवा को पंजीकृत करने और दिशा निर्देशित करने के लिए किया गया था. इसके अलावा यह चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को भी देखता है. आईएमए का कहना है कि इस बिल से मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षा महंगी हो जाएगी.
बिल का विरोध करते हुए आईएमए ने कहा कि बिल में कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर शब्द को सही से परिभाषित नहीं किया गया है. जिससे नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिक्स आधुनिक दवाइयों के साथ प्रैक्टिस कर सकेंगे. इसके अलावा निजी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन 50 प्रतिशत सीटों को मनमर्जी के दाम में बेचेंगे जिससे मेडिकल शिक्षा गरीब युवा की सोच से बहुत दूर हो जाएगी.