राजस्थान में मदन लाल सैनी के निधन के बाद उनकी जगह नए भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है. इसका क्या कारण है, स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. लगता है भाजपा एक बार फिर जातिगत समीकरणों में उलझ गई है. मदन लाल सैनी 2018 में जब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे, उस समय भी लंबी खींचतान चली थी. अब उनके निधन के बाद भी वैसी ही खींचतान शुरू होने के आसार दिख रहे हैं. इस पर अटकलों का बाजार गर्म है.
मदन लाल सैनी का निधन 24 जून को हुआ था. उसके बाद तय हुआ था कि जुलाई के दूसरे सप्ताह तक राजस्थान में नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर दी जाएगी. लेकिन अब जुलाई का महीना निकल चुका है और अगस्त शुरू हो चुका है. इस मुद्दे पर जल्दी फैसला होने के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं. एक बार फिर अध्यक्ष पद को लेकर गुटबाजी देखने को मिल सकती है.
बताया जाता है कि भाजपा संगठन के भीतर राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कई समीकरण तलाशे गए थे, लेकिन फैसला नहीं हो पाया. यह बात भी सामने आई कि जिस तर राज्यसभा में पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं को भेजा गया है, उसी तरह राजस्थान में भी जातिगत समीकरणों से ऊपर उठकर पार्टी के किसी वरिष्ठ कार्यकर्ता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए. लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया है. समय गुजरने के साथ ही पार्टी में जातिगत राजनीति हावी होने लगी और अब हालत यह है कि भाजपा जाट, ब्राह्मण, दलित के समीकरण में उलझकर रह गई है.
गौरतलब है कि भाजपा ने महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने में कोई देरी नहीं की, लेकिन राजस्थान में नियुक्ति इतनी आसान नजर नहीं आ रही है. बताया जाता है कि भाजपा के राजस्थान मूल के एक बड़े नेता, जो इन दिनों दिल्ली में सक्रिय हैं और अमित शाह के नजदीकी बताए जाते हैं, उनके पास प्रदेश भाजपा के विभिन्न गुट अपनी-अपनी पसंद के नाम पहुंचा रहे हैं. उक्त नेता की राय इस मुद्दे पर अभी तक स्पष्ट नहीं है.
राजस्थान में पिछले 20 साल का रिकॉर्ड है कि यहां प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की नियुक्ति कभी आसान नहीं रही. 2018 में जब मदन लाल सैनी प्रदेश अध्यक्ष बने थे, उस समय भी जमकर खींचतान हुई थी. पार्टी हाईकमान की पसन्द के रूप में गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम सामने आया था, जिस पर वसुंधरा राजे को एतराज होने के कारण कई दिनों तक प्रदेश अध्यक्ष पद का फैसला नहीं हो पाया था.
एक समय था, जब राजस्थान में भाजपा के एकछत्र नेता भैरोंसिंह शेखावत हुआ करते थे. 2002-03 में जब वसुंधरा राजे को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था, उस समय भी भारी विरोध हुआ था. उसके बाद से प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के समय विरोध की परंपरा बन गई है. ओम माथुर हौं या अरुण चतुर्वेदी या फिर गुलाब चंद कटारिया, हर बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पर नियुक्ति को लेकर घमासान होता रहा है.
2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात चली थी, तब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के गुट आमने-सामने हो गए थे. जिसके चलते कई महीने प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो पाई थी. आखिरकार बीच का रास्ता निकालते हुए आम राय से मदन लाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उनके निधन के बाद एक बार फिर नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर खींचतान शुरू होने के आसार बन गए हैं.
बताया जाता है कि संघ से जुड़ा खेमा आमेर के विधायक सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता है. संगठन का कामकाज देख रहे चंद्रशेखर भी पूनिया के पक्ष में बताए जाते हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे चाहती हैं कि भाजपा के राज्यसभा सांसद नारायण पंचारिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए. पंचारिया के नाम पर सहमति हो सकती है, क्योंकि वह भी मदन लाल सैनी की तरह पार्टी में निर्विवाद नेता हैं.
एक संभावना यह भी है कि जयपुर ग्रामीण से सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. अमित शाह उनके पक्ष में बताए जाते हैं, इसीलिए इस बार उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है. चूरू के विधायक राजेन्द्र राठौड़ का नाम भी चल रहा है, लेकिन उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना इसलिए कम है, क्योंकि वह जनता दल छोड़कर भाजपा में आए हैं. राज्यवर्धन सिंह राठौड़ नए भाजपा नेता हैं, इसलिए उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना भी कम ही है. बताया जाता है कि भाजपा संघ की पृष्ठभूमि के किसी व्यक्ति को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहत है.
भाजपा का एक खेमा राजसमंद की विधायक दीया कुमारी का नाम आगे कर रहा है. इस खेमे के नेताओं का मानना है कि जयपुर राजघराने से जुड़ी दीया कुमारी वसुंधरा राजे को चुनौती दे सकती है. बहरहाल यह सिर्फ कयास है. मदन लाल सैनी को जब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, तब राजनीतिक परिस्थितियां अलग थीं. राजस्थान में भाजपा सरकार थी और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री थीं. अब सत्ता में कांग्रेस है और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं. युवा नेता सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री हैं. पायलट के पास लंबे समय से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी है.
कई भाजपा नेता मानते हैं कि सचिन पायलट का मुकाबला करने के लिए युवा नेता को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की बागडोर सौंपी जानी चाहिए. इस परिस्थिति में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है. लेकिन वसुंधरा राजे का खेमा इसे मंजूर करेगा, इसमें संदेह है. इन परिस्थितियों में नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जो नाम चल रहे हैं, उनके अलावा भी किसी नेता की नियुक्ति हो सकती है, क्योंकि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ज्यादातर चौंकाने वाले फैसले ही करते हैं.