Politalks.News/Delhi. देश भर में जारी कोरोना के कहर के बीच केंद्र सरकार ने संसद का शीतकालीन सत्र रद्द करने का निर्णय लिया है. अब ये निर्णय कोरोना के बढ़ते संक्रमण को लेकर हुआ है या फिर देश भर में चल रहे कृषि कानूनों के वापस लेने की मांग को लेकर हो रहा है, ये साफ़ नहीं है लेकिन अपने इस फैसले के बाद सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है. विपक्ष का कहना है कि सरकार तीनों कृषि कानून पर बहस करने से कतरा रही है इसी कारण सरकार शीतकालीन सत्र आहूत नहीं कर रही है.
दरअसल, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने शीतकालीन सत्र आहूत करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा था. इसी पत्र को आधार बताकर केंद्रीय संसदीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने अधीर रंजन चौधरी को पत्र लिखकर जवाब दिया, कहा कि, ‘सर्दियों का महीना कोविड-19 के प्रबंधन के लिहाज से बेहद अहम है. क्योंकि इसी दौरान संक्रमण के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है, खासकर दिल्ली में. अभी हम दिसंबर मध्य में हैं और कोरोना का टीका जल्द आने की उम्मीद है. ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से संपर्क स्थापित किया गया, उन लोगों ने भी महामारी पर चिंता जताते हुए शीतकालीन सत्र से बचने की सलाह दी.
प्रह्लाद जोशी ने पत्र में लिखा ‘सरकार संसद के आगामी सत्र की बैठक जल्द बुलाना चाहती है. कोरोना महामारी से पैदा हुई अभूतपूर्व स्थिति को ध्यान में रखते हुए बजट सत्र की बैठक 2021 की जनवरी में बुलाना उपयुक्त होगा’.
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इसके जवाब में अधीर रंजन चौधरी ने NDTV को दिए अपने इंटरव्यू विपक्ष पर निशाना साधा और कहा कि ‘कांग्रेस संसद में किसानों के मुद्दों को उठाना चाहते थी और सरकार ने इससे बचने के लिए ये कदम उठाया है. चौधरी ने कहा जिस तरह इस देश के किसान ठण्ड में विरोध कर रहे हैं, यह देश कि छवि के लिए अच्छा नहीं हैं. सरकार किसान आंदोलन को लेकर उठ रहे सवालों में फंस गई है. सरकार नहीं चाहती कि संसद में किसानों की मांगों पर चर्चा हो. चौधरी ने कहा कि सरकार कभी लुभाती है तो कभी डराती है.
तो वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी शीतकालीन सत्र न बुलाने को लेकर सरकार पर निशाना साधा, और ट्वीट कर कहा कि सरकार सच छिपा रही है और ये फैसला लेने से पहले राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद से सलाह नहीं ली गई. रमेश ने कहा, कि ‘राज्यसभा में विपक्ष के नेता की सलाह नहीं ली गई थी. प्रह्लाद जोशी हमेशा की तरह सच को छिपा रहे हैं.’
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वहीं राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाने का निर्णय पूर्णतः अलोकतांत्रिक है. सचिन पायलट ने ट्वीट कर कहा, कि केंद्र सरकार द्वारा संसद का शीतकालीन सत्र न बुलाने का निर्णय अलोकतांत्रिक है. हमारे देश का कृषि क्षेत्र महासंकट का सामना कर रहा है, इन विषम परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि हमारे अन्नदाता की आवाज व कृषि कानून पर विपक्षी दलों का पक्ष सुनकर केंद्र सरकार किसानों के साथ न्याय करें. पायलट ने कहा केंद्र सरकार को संवैधानिक मूल्यों का अनुसरण करते हुए कोरोना से बचाव के समस्त सुरक्षात्मक उपायों एवं दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखकर एक समन्वय स्थापित करके राष्ट्रहित व किसान हित में संसद का शीतकालीन सत्र बुलाना चाहिए.
वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान ने संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाए जाने को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार किसान विरोधी कानूनों पर चर्चा से बचकर भागना चाहती है, इसीलिए उन्होंने इस बार संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाने का फैसला लिया है. पंजाब के संगरुर से सांसद भगवंत मान ने आरोप लगाया कि किसानों की मुख्य चिंताओं पर संसद में जवाब देने की बजाए मोदी सरकार ने महामारी का बहाना बनाकर शीतकालीन सत्र नहीं बुलाने का फैसला लिया है. सांसद भगवंत मान ने एक बयान जारी किया और केन्द्र पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार कॉरपोरेट हाउसों के फायदे के लिए कानून बनाने की खातिर संसद का विशेष सत्र बुला सकती है, तो वह किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए शीतकालीन सत्र क्यों नहीं बुला रही है?
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उल्लेखनीय है कि नए कृषि कानूनों के विरोध में 40 से ज्यादा किसान संगठनों का दिल्ली बॉर्डर पर पिछले 20 दिनों से आंदोलन चल रहा है. किसान और सरकार के बीच 6 दौर की वार्ता के बाद भी कोई नतीजा अभी तक नहीं निकला है. किसानों के अलावा कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इन कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.