जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती की छटपटाहट इन दिनों उनके बयानों में साफ नजर आ रही है. लगता है अब महबूबा को अपनी सियासी जमीन के खिसकने का अहसास हो गया है. महबूबा कश्मीर की अनंतनाग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही है. दक्षिण कश्मीर में महबूबा अभी तक अजेय रही लेकिन इस बार हार के कगार पर नज़र आ रही हैं.

महबूबा कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी है. महबूबा अनंतानग सीट से 2009 और 2014 में सांसद रह चुकी हैं. महबूबा ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत कांग्रेस के साथ की थी. वह 1996 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक का चुनाव जीती. उसके बाद महबूबा दक्षिण कश्मीर में खासी सक्रिय रही. सेना द्वारा मारे गए आतंकवादियों के घर जाना, पत्थरबाजों को आर्मी कैंप्स से छुड़ाकर लाना और मानवाधिकार उल्लंघन का कड़ा विरोध करना उनकी कार्यशैली में शुमार हो गया. 1999 में महबूबा के पिता ने पीडीपी पार्टी का गठन किया. इसी समय महबूबा ने भी कांग्रेस में अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन तब तक उन्होंने दक्षिण कश्मीर की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना ली थी. उनकी तरफ कश्मीर के युवा आकर्षित होने लगे थे. कश्मीर अब्दुल्ला परिवार और कांग्रेस के विकल्प के रुप में पीडीपी को देखने लगा था.

इसी की बानगी 2002 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली और पीडीपी ने प्रदेश की 16 सीटों पर कब्जा किया. पीडीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बना ली. 2002 के बाद पीडीपी के लिए हालात और भी मुफीद हुए. पीडीपी की सीटें, वोट शेयर और साख, हर क्षेत्र में बरकत मिलने लगी. 2014 के चुनाव में पीडीपी 28 सीट जीतकर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी. पीडीपी का मानना तो ये था कि यह उसके स्वर्णिम काल की शुरुआत है लेकिन यह उसके गले की फांस बन गया. इस दौरान पीडीपी के हालात काफी दयनीय हो गए. इसकी वजह रही कि कश्मीर के हालात खराब होते गए और उसका सीधा असर मुफ्ती पार्टी पर पड़ा.

पीडीपी की सबसे अधिक धमक दक्षिणी कश्मीर में है. यहां के लोगों ने बीजेपी से दूर रहने के लिए पीडीपी को समर्थन दिया. चुनावों से पहले तक पीडीपी ने महबूबा और उनके पिता ने अपने हर भाषण में बीजेपी को निशाने पर रखा लेकिन चुनाव के बाद बीजेपी के समर्थन से ही सरकार बना ली. मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने और बीजेपी के निर्मल सिंह को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. कश्मीर की स्थानीय जनता को इस फैसले को लेकर नाराजगी थी. पीडीपी की तरफ से कहा गया कि प्रदेश के विकास के लिए गठबंधन हुआ है. हालांकि दोनों दलों का एंजेंड़ा अलग था तो गाडी कभी पटरी पर नहीं रही. राष्ट्रीय नेताओं के दखल के कारण ही गठबंधन चलता रहा. 2016 में मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बीमारी के कारण निधन हुआ. उसके बाद लगभग 6 महीने तक सरकार नहीं बनी. बाद में महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनी. बस यहीं से पीडीपी के लिए बुरे दौर की शुरुआत हुई.

हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के एनकांउटर के बाद पूरा कश्मीर उबल पड़ा. पत्थरबाज मारे जा रहे थे. तब महबूबा का बयान आया जो उनके लिए ही परेशानी का सबब बना. महबूबा मुफ्ती ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ मिलकर श्रीनगर में एक पत्रकार सम्मेलन को संबोधित किया. पत्रकारों ने उनसे नाबालिग़ बच्चों के मारे जाने पर सवाल किया. इस पर महबूबा का जवाब आया कि ये लोग क्या आर्मी के कैंप्स में दूध या टॉफी लेने गए थे? जवाब देते वक्त महबूबा इतने गुस्से में आ गईं कि राजनाथ सिंह को उनका हाथ पकड़कर उन्हें चुप कराना पड़ा था. इसके बाद भी कश्मीर के हालातों में सुधार नहीं हुआ जिसका नुकसान पीडीपी को उठाना पड़ा. बाद में बीजेपी ने भी पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया.

महबूबा ने अपने राजनीतिक जीवन में कुल 6 चुनाव लड़े और हर बाद आसानी से विजश्री हासिल की. लेकिन 2019 में उनके लिए हालात खराब है. उनको इसका अंदाजा पहले से है. मुफ्ती कई बार अपने चुनावी अभियान के दौरान रोने लग जाती है. कभी अपने परिवार के योगदान को जनता के बीच साझा करती है तो कभी अपनी पुरानी छवि को हासिल करने के लिए अनर्गल बयानबाजी करती है. बात करें उनकी अनंतनाग लोकसभा सीट की तो यह चार जिलों से बनती है – अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और पुलवामा.

अभी तक का हाल देखा जाए तो पुलवामा और शोपियां पिछले कुछ सालों में आतंकवाद का गढ़ बनकर उभरे हैं. यहां ज्यादा मतदान होने की संभावना दिखाई नहीं दे रही है. इन्ही दो जिलों की वजह से देश के इतिहास में पहली बार किसी एक लोकसभा सीट पर तीन चरण में मतदान हो रहा है. अनंतनाग में 23 अप्रैल को मतदान होगा. कुलगाम में 29 अप्रैल को और पुलवामा और शोपियां में चार मई को वोटिंग होगी. कांग्रेस ने अनंतनाग से पार्टी प्रदेशाध्यक्ष गुलाम अहमद मीर को प्रत्याशी बनाया है.

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