Loksabha Election: कहते हैं कि राजनीति में कोई अपना नहीं, कोई पराया नहीं. वक्त आने पर अपना भी पराया बन जाता है. राजस्थान की बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. यहां मुकाबला अपना बनाम अपना है जो अब पराया हो चुका है. राजस्थान की बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट इस बार हॉट बनी हुई है. यहां से बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को फिर से मौका मिला है.
2004 से पहले तक यह सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. 2004 में बीजेपी के मानवेंद्र सिंह ने यहां बीजेपी के लिए पहली बार कमल खिलाया. अगला चुनाव हारने के बाद 2014 में बीजेपी ने कांग्रेस से आए सोनाराम को टिकट दिया और फिर से यह सीट बीजेपी के खेमे में आ गयी. 2019 के आम चुनाव में मोदी लहर के बीच कैलाश चौधरी ने बड़े अंतर से इस सीट पर कब्जा जमाया. इस बार फिर से पार्टी ने चौधरी पर दांव खेला है लेकिन शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने यहां से चुनावी जंग में उतर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. भाटी का दावा काफी मजबूत है जिसके चलते कैलाश चौधरी के भी पसीने छूट रहे हैं.
अपना बनाम अपना के बीच चुनावी जंग
तीन महीने पहले भाटी बीजेपी के खेमे के बड़े नेता थे. विधानसभा चुनाव में टिकट कटने पर नाराज होकर भाटी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस उम्मीदवार को करारी पटखनी दी. हालांकि चुनाव बाद भाटी ने निर्दलीय बीजेपी को समर्थन दे दिया. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी की ओर से भाटी से गठबंधन का प्रयास किया गया था लेकिन कुछ बातों पर भाटी सहमत नहीं हुए और उन्होंने निर्दलीय बाड़मेर-जैसलमेर सीट पर ताल ठोक दी. कांग्रेस की ओर से उम्मेदाराम बेनीवाल प्रत्याशी हैं लेकिन मुख्य मुकाबला तो भाटी और कैलाश चौधरी के बीच हो रहा है.
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विगत विस चुनावों को देखते हुए स्पष्ट तौर पर भाटी का पलड़ा भारी है. ऐसे में कांग्रेस ने तो भाटी को कमजोर करने के लिए उनकी शिकायत चुनाव आयोग में करना शुरू कर दिया है. भाटी पर चुनावी सभाओं में झूठ बोलने का आरोप लगा है. इस बीच अपनी नामांकन सभा में भाटी ने भारी भीड़ जुटाकर न केवल उम्मेदाराम की उम्मीदों को धवस्त किया है, कैलाश चौधरी की चिंता भी बढ़ा दी है. चौधरी मौजूदा चुनाव में केवल और केवल पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर टिके हुए हैं. वहीं स्थानीय मुद्दे कुछ अलग हैं जिन पर कैलाश चौधरी खरा नहीं उतर पाए हैं. ऐसे में बाड़मेर-जैसलमेर में चौधरी के खिलाफ नाराजगी है जिसका फायदा भाटी को मिलता दिख रहा है.
जाट नेताओं के बीच भाटी का राजपूती दांव
बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र में तीन लाख से ज्यादा राजपूत वोटर्स हार-जीत का फैसला करते हैं. 2004 में मानवेंद्र सिंह के जीतने का भी यही सबसे बड़ा कारण रहा. वहीं बीजेपी के कैलाश चौधरी और कांग्रेस के उम्मेदाराम बेनीवाल दोनों जाट नेता हैं. अगर जाट वोटर्स को छोड़ भी दें और भाटी राजपूत वोट अपने पक्ष में करने में कामयाब हो गए तो उनकी जीत पक्की है. पॉलीटॉक्स के एक सर्वे पर विश्वास करें तो यहां का 60 फीसदी वोट बैंक भाटी के पक्ष में जाता दिख रहा है.
चौधरी के लिए टेंशन का सबसे ये है कि उनके पास सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं है. वे तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और स्थानीय स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में चौधरी को केवल मोदी की छवि का लाभ मिल सकता है. बीजेपी और भाटी के बीच कांग्रेस के उम्मीदाराम की उम्मीद पस्त होते नजर आ रही है.
अधिकांश सीटों पर बीजेपी का ‘कमल’ खिला
बाड़मेर-जैसलमेर सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से 5 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. एक सीट गठबंधन में है जिस पर शिवसेना की डॉ.प्रियंका चौधरी विधायक हैं. शिव से रविंद्र सिंह भाटी बतौर निर्दलीय विधायक काबिज हैं. बायतू से हरिश चौधरी एकमात्र कांग्रेसी विधायक हैं. ऐसे में तो बीजेपी का यहां बहुमत है लेकिन राज्य सरकार के मुद्दे और केंद्र सरकार के मुद्दे हमेशा अलग रहे हैं. राज्य सत्ता विरोध के चलते ये सभी सीटें बीजेपी के पक्ष में गयी लेकिन यहां जीत के लिए बीजेपी को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं.
हैट्रिक जमाने की कोशिश में बीजेपी
बाड़मेर-जैसलमेर सीट 1952 में अस्तित्व में आयी. यहां सबसे पहले भवानी सिंह ने निर्दलीय चुनाव जीता. उसके बाद रघुनाथ सिंह बहादुर भी निर्दलीय सदन में पहुंचे. उसके बाद तीन बार कांग्रेस और दो बार जनता दल के प्रत्याशियों ने अपनी अपनी पार्टियों के लिए जीत दर्ज की. बीते 20 सालों में तीन बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस का यहां से सीटिंग सांसद रहा है. सोनाराम सबसे ज्यादा चार बार सांसद रहे हैं. सोनाराम 1996, 1998, 1999 और 2014 में सांसद रहे. 2004 में बीजेपी के मानवेंद्र सिंह और 2009 में कांग्रेस के हरिश चौधरी ने यहां चुनाव जीता. 2019 में कैलाश चौधरी ने बीजेपी से कांग्रेस में आए मानवेंद्र सिंह को भारी वोटों से हराया. हाल में मानवेंद्र सिंह के फिर से बीजेपी में वापसी करने से कैलाश चौधरी का खेमा मजबूत हुआ है लेकिन रविंद्र सिंह भाटी का दांवा कहीं ज्यादा
सुढृढ लग रहा है.
राजस्थान की राजनीति की बात करें तो यहां पर गर्मी पड़ती है तो आंधियां चलती है और रेत के टीले एक जगह से दूसरी जगह पर शिफ्ट हो जाते हैं. अभी चुनाव की धूल भरी आंधियां चल रही है और अपने ही अपनों को नुकसान पहुंचाते दिख रहे हैं. बीजेपी के अपने रविंद्र सिंह भाटी ने यहां से ताल ठोक कैलाश चौधरी को दिन में सपने दिखाने का काम किया है. अब देखना रोचक रहने वाला है कि मोदी के भरोसे कैलाश चौधरी की नांव जीत के किनारे तक तर पाती है या फिर रविंद्र भाटी की आंधी चौधरी को हाशिए पर उड़ा ले जाती है.