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Loksabha Election: यूपी में सियासी उलटफेर और इस्तीफों का दौर अलबत्ता जारी है. कई अहम पदों पर बैठे सियासी दिग्गज भी पार्टियां छोड़ इधर उधर हो रहे हैं. समाजवादी पार्टी में भी अदल बदल की प्रक्रिया काफी तेजी से चल रही है. स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा के महासचिव पद एवं विधान परिषद की सदस्यता के इस्तीफा देने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम शेरवानी और उनके बाद सपा के राष्ट्रीय सचिव योगेंद्र पाल सिंह तोमर ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसके तुरंत बाद मौर्य ने नई दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में एक कार्यक्रम में नई पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया.

नई पार्टी का नाम राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RSSP) होगा. इस पार्टी में मौर्य-तोमर-शेरवानी की तिगड़ी के शामिल होने की पूरी पूरी संभावना जताई जा रही है. तीनों की विचारधारा और एक समान सोच के चलते यह तिगड़ी सपा को नुकसान पहुंचाने का काम जरूर कर सकती है. हालांकि मौर्य ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को मजबूत करने की बात कही है.

मौर्य की पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ काम करेगी लेकिन राजनीति विशेषज्ञों की मानें तो स्वामी के इस कदम से राजनीतिक तौर पर सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को होने वाला है.

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मौर्य-तोमर-शेरवानी बाहर की पार्टियों से आए हैं और सपा में शामिल हुए हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य लंबे समय तक बीजेपी के नेता रहे हैं. यूपी विधानसभा चुनाव-2022 से ऐन वक्त पहले मौर्य बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हो गए. सपा से इस्तीफा देने के बाद उनके बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन नई पार्टी का गठन कर उन्होंने फिर से सभी को चौंका दिया. इसी तरह कांग्रेस के टिकट पर 2019 लोकसभा चुनाव में बदायूं से हार का सामना करने वाले सलीम इकबाल शेरवानी ने भी यूपी विस चुनाव से पहले सपा में एंट्री ली. पांच बार के सांसद रहे सलीम इकबाल शेरवानी को पिछले साल जनवरी में सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था. लोकसभा चुनाव आते ही उन्होंने फिर अपना पुराना रंग दिखाया और पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

वहीं 28 जून 2023 को पार्टी को राष्ट्रीय सचिव बनने वाले योगेंद्र तोमर का झुकाव सलीम शेरवानी की तरफ है. उनके सपा से अलग होने के तुरंत बाद तोमर ने भी इस्तीफा दे दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी में अल्पसंख्यकों के साथ ही सामान्य और पिछड़े वर्ग की अनदेखी हो रही है. तीनों में से शेरवानी का सपा में खास दबदबा रहा है. सपा शासन काल में करीब दो दशक तक सलीम शेरवानी का दबदबा रहा और सपा के टिकट पर वह यहां से लगातार सांसद बने. अब जल्दी ही तीनों एक जाजम पर आकर सपा को नुकसान पहुंचाने का काम करते हुए दिखाई देंगे और मौका मिलते ही विपक्षी गठबंधन में शामिल होने का प्रयास करेंगे.

हालांकि यह बात सच है कि पार्टी के बिना बड़े नेताओं का अपना रसूख कम ही देखने को मिला है. इसके बावजूद स्वामी प्रसाद मौर्य, सलीम इकबाल शेरवानी और योगेंद्र तोमर के राजनीतिक अनुभव को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. मौर्य तो अपने खौलते हुए बयानों के चलते हमेशा चर्चा में ही रहते हैं. ऐसे में इन तीनों का प्रदर्शन देखना रोचक रहने वाला है. हालांकि इनका किया जाने वाला ‘यूपी का खेला’ बीजेपी को कम नुकसान पहुंचाने के साथ सपा को ज्यादा परेशान करने वाला है.

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