Loksabha Election: राजस्थान का वागड़ क्षेत्र बांसवाड़ा इस वक्त राजनीति की दृष्टि से हॉट बना हुआ है. वजह है महेंद्रजीत मालवीय, जिन्होंने कांग्रेस को छटक बीजेपी का हाथ थामा है और अब कांग्रेस के किले में कमल खिलाने की तैयार कर रहे हैं. यहां कांग्रेस की तरफ से अरविंद डामोर चुनावी जंग में मौजूद हैं लेकिन महेंद्रजीत मालवीय को रोकने का असली दारोमदार भारतीय आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत पर है. चौरासी से विधायक राजकुमार रोत को कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त है. ऐसे में यहां मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा है.
दरअसल, चार बार के विधायक एवं पूर्व मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय अब बीजेपी के लिए वही भूमिका निभाने जा रहे हैं, जो रामायण में श्रीराम के लिए ‘विभीषण’ ने निभाई थी. मालवीय आदिवासी इलाके के दिग्गज़ नेता है जिनका मेवाड़ और वागड़ क्षेत्र में काफी प्रभुत्व है. विधानसभा चुनाव हारने के बाद मालवीय को लोकसभा चुनावों में कमजोर दिख रही कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी से हाथ मिलाना फायदे का सौदा लगा. इसका ईनाम भी उन्हें मिला और बीजेपी ने मालवीय को बांसवाड़ा से टिकट थमा दिया. इतना तो तय है कि मालवीय के बीजेपी में शामिल होने से कांग्रेस को आदिवासी क्षेत्र में खामियाजा उठा पड़ेगा. मालवीय अपने इलाके के पंचों और सरपंचों से वार्ता कर रहे हैं और भारी संख्या में उन्हें बीजेपी के पक्ष में करने में सफल भी रहे हैं.
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उदयपुर संभाग के साथ गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में भी महेंद्रजीत मालवीय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी बीजेपी से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. बीजेपी बांसवाड़ा से लगातार दो बार आम चुनाव जीतते आ रही है. ऐसे में एक तरफ महेंद्रजीत मालवीय यहां से बीजेपी की जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस का किला ढहाने में भी प्रमुख भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं.
कांग्रेस में दो फाड़, बीजेपी को फायदा
मालवीय के प्रभुत्व को भांपते हुए कांग्रेस ने अरविंद डामोर को यहां से टिकट दिया. इसी बीच राजकुमार रोत ने बीजेपी को धूल चटाने के लिए कांग्रेस से गठबंधन का आग्रह किया. इस पर कांग्रेस ने डामोर से नामांकन वापिस लेने को कहा जिस पर उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया और मैदान में डटे रहे. ऐसे में कांग्रेस का वोट बैंक बंटना निश्चित है जिसका फायदा महेंद्रजीत मालवीय को हो सकता है. इसके बावजूद राजकुमार रोत का बांसवाड़ा क्षेत्र में वोट बैंक काफी अच्छा है. रोत पिछले दो बार से लगातार यहां से विधायक रहे हैं और आदिवासी क्षेत्र में उनकी काफी अच्छी पकड़ है.
बांसवाड़ा का जातीय समीकरण
बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यह एक एसटी आरक्षित सीट है. यहां करीब 19,75,368 वोटर हैं जिनमें 9,96,924 पुरुष और 9,78,437 महिला मतदाता हैं. अनुसूचित जनजाति (ST) मतदाताओं की संख्या करीब 75 फीसदी है जिन पर हार जीत का पूरा समीकरण टिका हुआ है. 15 फीसदी मुस्लिम और 4.2 फीसदी एससी वोटर्स भी यहां है. बुद्ध, ईसाई, जैन और सिख जनजाति की संख्या केवल एक फीसदी के करीब है.
बांसवाड़ा लोकसभा के अंतर्गत 8 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें से डूंगरपुर, सागवाड़ा, गढ़ी और बागीदौरा सीटें बीजेपी के कब्जे में है. घाटोल, बांसवाड़ा और कुशलगढ़ में कांग्रेस जबकि चौरासी सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत विधायक हैं. ये सभी सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं जिन पर कभी कांग्रेस का एकछत्र राज था. महेंद्रजीत मालवीय (1998) बांसवाड़ा से सांसद भी रह चुके हैं. इसका फायदा उन्हें मिल सकता है. 2014 में बीजेपी के मानशंकर निनामा और 2019 के आम चुनाव में बीजेपी के ही कनकमल कटारा यहां से जीतकर संसद पहुंचे.
रोत को मिला समर्थन तो बीजेपी की हार तय
बांसवाड़ा संसदीय क्षेत्र में इस वक्त मुकाबला त्रिकोणीय भले ही लग रहा है लेकिन यहां मुकाबला राजकुमार रोत और महेंद्रजीत मालवीय के बीच तय है. कांग्रेस के दो फाड़ होने से अरविंद डामोर केवल अपने दम पर मैदान में हैं और दोनों उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे हैं. कांग्रेस आलाकमान के राजकुमार रोत को समर्थन देने के ऐलान के बाद कांग्रेस में भी असमंजस की स्थिति पैदा हो गयी है जिसका फायदा महेंद्रजीत मालवीय को होता दिख रहा है. हालांकि अगर कांग्रेस का एक तिहाई वोट बैंक भी अगर रोत के पक्ष में गिरता है तो यहां मालवीय के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है.