Loksabha Election: गर्मी के ताप बढ़ते ही राजस्थान का चूरू जिला दहकने लगता है लेकिन लोकसभा चुनाव के बीच यह संसदीय सीट चुनावी लपटों से दहक रही है. इस बार लोकसभा चुनाव 2024 में चूरू भी एक हॉट सीट बनती जा रही है. एक तरफ इस सीट पर कांग्रेस बीते 25 सालों से जीत का सूखा खत्म करना चाहती है. वहीं बीजेपी इस गढ़ को अभेद किले के रूप में पहले से कहीं अधिक मजबूत करना चाह रही है. पिछली दो बार मोदी लहर के बाद बीजेपी ने इस सीट के सीटिंग सांसद का टिकट काट पैरा ओलंपिक में गोल्ड मैडल प्राप्त देवेंद्र झाझड़िया को थमाया है. इसी बात से नाराज होकर चूरू सीट से सांसद राहुल कस्वां ने बीजेपी छोड़ा ‘हाथ’ का साथ थामा है. हालांकि यहां देवेंद्र झाझड़िया से ज्यादा बीजेपी के कद्दावर नेता एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ चर्चा में बने हुए हैं.
चूरू लोकसभा क्षेत्र राजस्थान के चूरू और हनुमानगढ़ जिले के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनी है. अब चूरू का सियासी माहौल कुछ ऐसा है कि यहां मुकाबला झाझड़िया-कस्वां की बजाय ‘राहुल कस्वां बनाम राजेंद्र राठौड़’ हो चला है. कांग्रेस के कस्वां के भाषणों और बयानों में भी झाझड़िया पूरी तरह से गायब हैं. वहीं राठौड़ के बयान भी राहुल कस्वां से शुरू होकर राहुल कस्वां पर ही खत्म हो रहे हैं. यहां स्थानीय मुद्दों से ज्यादा पिछले विधानसभा चुनाव में राजेंद्र राठौड़ की तारानगर सीट से हार और उसके बाद कस्वां की बीजेपी से टिकट कटने का विवाद पूरे क्षेत्र में छाया हुआ है. एक ओर राहुल कस्वां के लिए ये चुनाव नाक का सवाल बन गया है, तो राजेंद्र राठौड़ के लिए अपनी प्रतिष्ठा का.
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देवेंद्र झाझड़िया के लिए प्रचार कर रहे राठौड़ ने चूरू में डेरा डाला हुआ है. वे चुनावों को लेकर कस्वां पर निशाना साध रहे हैं. पलटवार में कस्वां भी राजेंद्र राठौड़ पर निशाना साधते हैं. यहां झाझड़िया केवल एक चेहरा है लेकिन लग रहा है कि चुनाव कस्वां बनाम राठौड़ के बीच है.
चूरू लोकसभा में कांग्रेस भारी
चूरू लोकसभा की 8 विधानसभाओं में कांग्रेस का पलड़ा भारी है. यहां की तारानगर, सुजानगढ़, रतनगढ़, सरदारशहर व नोहर में कांग्रेस विधायक काबिज हैं. चूरू एवं भादरा में बीजेपी जबकि सादुलपुर बसपा के पास है. हालांकि यहां अब राजनीति जातिगत होती जा रही है. तारानगर से हार का दंश झेल चुके राजेंद्र राठौड़ के प्रति राजपूतों की सहानुभूति है और वे राजपूत समाज को लामबंद करने में जुटे हैं. वहीं राहुल कस्वां के टिकट कटने के पीछे राठौड़ का हाथ बताया जा रहा है. ऐसे में जाट समाज कस्वां के समर्थन में जाता दिख रहा है.
25 सालों से बीजेपी अजेय
चूरू लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी पिछले 5 चुनावों से अजेय चल रही है. अंतिम बार 1996-1998 में नरेंद्र बुढ़ानिया ने यह सीट कांग्रेस को दिलाई थी. उसके बाद 1999 एवं 2004 में रामसिंह कस्वां और 2014 व 2019 में राहुल कस्वां ने यहां कमल खिलाया. इससे पहले 1985 में बुढ़ानिया ने ही कांग्रेस को यहां विजयश्री के दर्शन कराए थे. देवेंद्र झाझड़िया के मैदान में उतरने और टिकट कटने से नाराज होकर राहुल कस्वां ने पाला बदल हाथ को थामा और मैदान में उतर गए. यहां का मुकाबला रोचक होना तय है.
जाट समाज करेगा जीत-हार का फैसला
इस लोकसभा क्षेत्र में जाट समाज को करीब 25 फीसदी वोट बैंक माना जाता है. इस जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए दोनों पार्टियों ने ही जाट समाज से चेहरों को मैदान में उतारा है. कस्वां को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक मिलना तय है. आमतौर पर कांग्रेस के वोट बैंक में एससी-एसटी, मुस्लिमों को भी शामिल किया जा सकता है. यदि वे जाट समाज को लामबंद करने में सफल होते हैं तो उनकी जीत की राह आसान हो सकती है. वहीं ओबीसी, राजपूत सहित सवर्ण और यूथ को बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है. यदि जाट वोट बैंक बंटा और झाझड़िया इस समाज से 50 फीसदी वोट अपने पक्ष में कर लेते हैं, तो उनकी राह आसान हो जाएगी.