लोकसभा चुनावों के छह चरण पूरे हो चुके हैं. अब केवल आखिरी चरण का मतदान शेष है. 23 मई को परिणाम आने हैं. इससे पहले यूपी की सियासत और मायावती-अखिलेश यादव के महागठबंधन के चुनावी परिणामों पर सबकी नजरें गढ़ी हुई हैं. यह तो साफ तौर पर लग रहा है कि बीजेपी यहां अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा सकेगी. उनकी इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा ही महागठबंधन है. महागठबंधन का सीधा मुकाबला नरेंद्र मोदी से है.

इस महागठबंधन की अगुवाई कर रही है बसपा सुप्रीमो मायावती. इस बार उनकी सियासी दिनचर्या में भी बदलाव देखा गया है. छठे चरण तक हर रैली और जनसभा में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. सातवें चरण से पहले उनके हमले और भी तीखे हो चले हैं. जानकारों का कहना है कि आखिरी चरण की नजदीकी लड़ाई में मायावती की चिंता कोर वोटों में सेंध बचाने की है. 23 मई के बाद आने वाले त्रिशंकु नतीजों में भी महागठबंधन को ‘विकल्प’ बनने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.

यूपी में पिछले छह चरणों में 67 संसदीय सीटों पर मतदान हो चुका है. अंतिम चरण में 13 सीटों पर  मतदान शेष है. ये सभी सीटें पूर्वांचल की हैं जिसमें से अधिकतर सीटें पिछड़ा, सवर्ण व दलित बहुल है. अधिकांश सीटों पर गैर यादव अति-पिछड़ी जातियां प्रभावी हैं. गैर जाटव वोटर्स भी अच्छी तादात में हैं. 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दलित वोटों में अच्छी खासी सेंधमारी की थी. अब एक फिर पूर्वांचल के जातीय कुरुक्षेत्र में मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी ने बसपा के इन कोर वोटों पर नजरें गड़ा रखी है. पीएम मोदी जिस तरह से राजस्थान के थानागाजी में हुई घटना पर मायावती की ‘जवाबदेही’ तय कर रहे हैं, यह इसकी नजीरभर है.

महागठबंधन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मायावती का मोदी पर तीखा हमला भी इसी रणनीति का हिस्सा है. आम तौर पर केंद्रीय एजेंसियों के दबाव या फिर अपनी स्थानीय मजबूरियों में दबे क्षेत्रीय दलों ने मोदी पर इतने तीखे हमले नहीं किए, जितने मायावती ने किए हैं. कांग्रेस खुद मायावती पर सीबीआई के दबाव में काम करने का आरोप लगा चुकी है.

बसपा के एक नेता का कहना है कि मोदी पर सीधा व निजी हमला बोलकर मायावती की रणनीति अपने वोटर्स को यह संदेश देने की है कि वह अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है और बीजेपी चुनाव हार रही है. कोर वोटर्स को जोड़े रखने के साथ जमीन पर गठबंधन की गणित को और मजबूत करने के लिए यह संदेश जरूरी भी है. अगर मायावती का यह फॉर्मूला काम कर गया तो बीजेपी के पाले में गिरने वाले वाले गैर-जाटव व अति पिछड़े जाति के वोट बैंक को महागठबंधन के पक्ष में वापस लाना आसान होगा.

वर्तमान लोकसभा चुनाव की सबसे दिलचस्प बात यह है कि मोदी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इस बार यूपी बनता नजर आ रहा है. 2014 के चुनाव में इसी गढ़ ने मोदी को शीर्ष पर बिठाया था. यूपी से हो रहे नुकसान की भरपाई के लिए बीजेपी को सबसे अधिक उम्मीद ममता बनर्जी की अगुवाई वाले पश्चिम बंगाल से है. यही वजह है कि ‘दीदी’ का मोदी के खिलाफ विरोध लोकतंत्र के ‘थप्पड़’ तक जा पहुंचा है.

विपक्षी एकता के सूत्रधारों के लिए ममता और मायावती दोनों ही अहम किरदारों में शामिल हैं. मायावती के प्रधानमंत्री बनने के सपनों को उनके गठबंधन सहयोगी अखिलेश यादव से लेकर बिहार में राजद के अगुआ लालू प्रसाद यादव ने हवा दी है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मायावती को संघर्षों का नेशनल सिंबल बता चुके हैं.
दिल्ली में तीसरे मोर्चे की संभावना तभी बनेगी जब यूपी में महागठबंधन बीजेपी के आंकड़ों को काफी नीचे पहुंचा दे. ऐसी स्थिति में मायावती सपा-बसपा गठबंधन के मुखिया के तौर पर दिल्ली की राजनीतिक फैसलों में भी अहम भूमिका निभाएंगी. यही वजह है कि नतीजों की घड़ी में मायावती ने खुद को मोदी के प्रमुख विरोधी के तौर पर स्थापित करना शुरू कर दिया है. राजनीतिक तौर पर चुनाव परिणाम से पहले विपक्षी दलों की बैठकों से सपा-बसपा की दूरी भी सभी विकल्पों को खुले रखने की ओर इशारा कर रही है.

Leave a Reply