eknath shinde shiv sena
eknath shinde shiv sena

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों का परिणाम घोषित हुए एक सप्ताह से अधिक वक्त गुजर चुका है. राज्यपाल के समक्ष सरकार बनाने का प्रस्ताव भी जा चुका है, 5 दिसंबर को मुख्यमंत्री शपथ का ऐलान भी हो चुका है लेकिन लेकिन ‘महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री कौन होगा’, इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल सकता है. कायदे से देखा जाए तो 132 सीटें लाने वाली भारतीय जनता पार्टी के पास ये पद जाना चाहिए लेकिन पूर्व सीएम एकनाथ शिंदे की चुप्पी और नाटकीय घटनाक्रम के चलते उनकी नाराजगी स्पष्ट देखी जा सकती है. पहले राज्यपाल के पास न जाना और उसके बाद दिल्ली पहुंचना, फिर से अपने पैतृक गांव रवानगी और फिर तबीयत खराब, कुछ इस तरह के घटनाक्रम बन रहे हैं कि महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में एक नई सुगबुगाहट ने जन्म ले लिया है. सुगबुगाहट ये कि क्या एक बार फिर राजनीतिक दलों में टूट होगी? क्या इस बार भी इसका सेहरा एकनाथ शिंदे के सिर बंधने वाला है?

वो एकनाथ शिंदे ही थे, जिनके बागी होने से महाराष्ट्र में धुर​ विरोधी राजनीतिक दलों की महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गयी थी. केवल सत्तारूढ़ होने के लिए ही तत्कालीन शिवसेना प्रमुख ने विरासतकालीन नियमों को ताक पर रखते हुए प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते हुए सक्रिय राजनीति में कदम रखा. इससे पहले बालासाहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र की राजनीति को हमेशा से रिमोट कंट्रोल से साधा था. राज ठाकरे भी ठीक उसी विरासत की अगुवाई कर रहे हैं. इससे पहले शिवसेना परिवार का कोई सदस्य सक्रिय राजनीति में नहीं उतरा था लेकिन पहली बार आदित्य ठाकरे ने इस तिलिस्म को तोड़ा और उसके बाद उद्धव ठाकरे ने.

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वक्त बदलने के साथ साथ महाराष्ट्र की राजनीति भी बदल रही है. शिवसेना भी बदल गयी है और उनके मुखिया भी. शिवसेना यूबीटी के सुप्रीमो हैं उद्धव ठाकरे और कथित तौर पर असली शिवसेना के मुखिया एकनाथ शिंदे हैं. इस्तीफा देने से पहले तक एकनाथ शिंदे के हाथों में प्रदेश की कमान थी, लेकिन अब सियासी प्रकरण बदले हैं. बीजेपी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गयी है. इसके बावजूद सीएम पद को लेकर खींचतान चल रही है. कहा जा रहा है कि दिल्ली से दो ऑब्जर्वर आएंगे और सीएम के लिए नाम का ऐलान करेंगे. अंदरखाने की बात ये है कि एकनाथ शिंदे नहीं चाहते कि उनका औहदा कम हो जाए.

 हालांकि शिवसेना की ओर से गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की मांग की जा रही है. गृह मंत्रालय पिछली सरकार में डिप्टी सीएम रहे ​देवेंद्र फडणवीस के पास था और वित्त मंत्रालय डिप्टी सीएम अजित पवार के पास, जो उन्हीं के पास रह सकता है. गृह मंत्रालय देने में बीजेपी को शायद कोई दिक्कत भी नहीं होगी लेकिन असल टकराव मुख्यमंत्री पद को लेकर ही है. एकनाथ शिंदे ने सीएम पद के लिए ही विश्वासघात करते हुए विचारधारा को ढाल बनाया और बीजेपी से हाथ मिला लिया था. अब लग रहा है कि आगामी समय में ​एकनाथ शिंदे फिर ऐसा कर सकते हैं.

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 हालांकि इससे सरकार को कोई खतरा नहीं होने वाला है. बीजेपी और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के पास 180 से अधिक विधायक हैं जो 145 के बहुमत आंकड़े से काफी ज्यादा हैं. विपक्ष के पास केवल 52 विधायक हैं. इसके बावजूद एकनाथ शिंदे लगातार सरकार पर दवाब बनाए रखेंगे और ऐसा होना निश्चित है. इससे बचने के लिए बीजेपी एकनाथ शिंदे को केंद्र में भेजने का सुझाव दे रही है. अब देखना ये होगा कि एकनाथ शिंदे वक्त की नजाकत को भांपते हुए किस तरह का पैतरा अपनाते हैं.

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