Wednesday, January 15, 2025
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महाराष्ट्र की कल्याण सीट: उद्धव-शिंदे गुट में सीधी टक्कर या बन रहे दोस्ती से नए फसाने?

कुछ सीटों पर उद्धव और शिंदे गुट ने बैठाए अपने-अपने सियासी समीकरण, आगामी विधानसभा चुनावों में करीब आने की बताई जा रही कवायत, कल्याण में बीजेपी चल रही मौजूदा सांसद से नाराज जिसका भुगतना पड़ सकता है खामियाजा

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महाराष्ट्र का कल्याण संसदीय क्षेत्र एक वीआईपी सीट मानी जाती है. यहां प्रदेश के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना (यूटीबी) में सीधी टक्कर है. शिवसेना और बीजेपी गठबंधन के चलते यह सीट शिंदे गुट के पास आयी है. कल्याण लोकसभा सीट से सीएम शिंदे के सुपुत्र एवं वर्तमान सीटिंग सांसद श्रीकांत शिंदे मैदान में हैं. उनके सामने उद्धव गुट की ओर से वैशाली दरेकर को उतारा है. पहली नजर में देखें तो यहां मुकाबला श्रीकांत शिंदे के लिए काफी आसान है लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कह रही है कि कल्याण सीट के बहाने उद्धव और शिंदे गुट में दोस्ती के नए फसाने लिखने की कवायत शुरू हो रही है. कल्याण सीट पर पांचवें चरण में मतदान होना है.

पेशे से डॉक्टर श्रीकांत शिंदे बीते दो बार से कल्याण से सांसद हैं. 2009 में अस्तित्व में आयी कल्याण संसदीय सीट पर 2009 में शिवसेना के आनंद परांजपे जीते थे. आनंद के एनसीपी में चले जाने के बाद 2014 में श्रीकांत शिंदे ने यहां से जीत हासिल की. 2019 में भी श्रीकांत ही यहां से सांसद रहे. इससे पहले 1996 से 2008 तक शिवसेना की ओर से प्रकाश परांजपे सांसद रहे. उनके निधन के बाद उनके पुत्र आनंद को इस सुरक्षित सीट से उतारा गया.

क्या उद्धव-शिंदे गुट में घट रही दूरियां

सियासी गलियारों में खबर आम है कि चुनाव के वक्त उद्धव और शिंदे गुट में राजनीतिक दूरियां कम होती दिख रही है. दरअसल, उद्धव ठाकरे ने कल्याण सीट से वैशाली दरेकर को टिकट देकर श्रीकांत शिंदे के लिए मुकाबला आसान कर दिया है. माना जा रहा है कि श्रीकांत शिंदे के मुकाबले वैशाली कमजोर कैंडिडेट हैं. बदले में सीएम एकनाथ शिंदे ने ठाणे में ठाकरे गुट के कैंडिडेट और मौजूदा सांसद राजन विचारे के सामने कमजोर प्रत्याशी उतारा है. वैसे कल्याण सीट शिवसेना का मजबूत गढ़ रही है. 2009 में बनी इस सीट पर हमेशा शिवसेना ही जीती है. ये एरिया एकनाथ शिंदे के प्रभाव वाला है. श्रीकांत शिंदे लगातार दो बार से सांसद भी हैं.

यह भी पढ़ें: दो दशकों से रायबरेली मतलब सोनिया गांधी, साख को कायम रख पाएंगे राहुल गांधी?

इससे पहले ठाकरे गुट से कल्याण सीट से चुनाव लड़ने के लिए आदित्य ठाकरे के नाम की चर्चा थी. बाद में वैशाली को टिकट दिया गया. वैशाली 19 साल से राजनीति में हैं और 2009 में मनसे के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. 2018 में उन्होंने मनसे छोड़कर शिवसेना जॉइन की थी.

वैशाली दरेकर ने 2009 के लोकसभा चुनाव में अच्छी फाइट दी थी. उसके बाद से वे पॉलिटिक्स से दूर थीं. इस बार शिवसेना (UBT) को यहां उम्मीदवार नहीं मिल रहा था, इसलिए वैशाली दरेकर को टिकट दिया गया. हालांकि श्रीकांत शिंदे के खिलाफ दिखने में वैशाली दरेकर कमजोर उम्मीदवार नजर आ रही हैं, लेकिन जैसे-जैसे इलेक्शन करीब आता गया, वैशाली लोगों के नजदीक पहुंचने में कामयाब होती गयी.

बीजेपी गुट चल रहा श्रीकांत से नाराज

अंदरखाने चर्चा है कि बीजेपी विधायक गणपत गायकवाड और मनसे विधायक राजीव पाटिल श्रीकांत शिंदे के खिलाफ हैं. श्रीकांत शिंदे ने कई बार यहां बीजेपी कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे काम तक नहीं किए. बीजेपी विधायक गणपत गायकवाड को तो श्रीकांत शिंदे की वजह से आपसी झगड़े में जेल तक जाना पड़ा. इस नाराजगी की बानगी ये रही कि उनकी पत्नी वैशाली दरेकर का प्रचार करते हुए चुनावी प्रचार में कई दफा देखी गयी हैं. इससे जूनियर शिंदे का थोड़ा नुकसान हो सकता है. इस संभावना के चलते सुरक्षित सीट होने के बावजूद स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 15 मई को यहां रैली करनी पड़ी.

एनसीपी-कांग्रेस कर रही जीत की पूरी कोशिश

खास बात ये कि यहां ठाकरे गुट का एक भी विधायक नहीं है. इस लिहाज से मुकाबला थोड़ा अलग है. फिर भी वैशाली दरेकर श्रीकांत शिंदे को टक्कर दे रही हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना (UBT) और NCP (SP) का गठबंधन है और यहां से एनसीपी के जितेंद्र आव्हाड मौजूदा विधायक हैं जिनकी मुस्लिम वोटर्स पर अच्छी पकड़ है. ऐसे में विधायक जितेंद्र आव्हाड वैशाली दरेकर का सपोर्ट कर रहे हैं. मराठी भाषी वोटर्स को देखें तो यहां लोकल आगरी पॉपुलेशन बहुत बड़ी तादाद में है. ये उद्धव गुट और एकनाथ शिंदे गुट में बराबर बंटे हुए हैं.

जातीय समीकरण देखें तो मुंब्रा-कलवा विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटर बहुत हैं. ऐसे में वैशाली तो अच्छी टक्कर देती दिा रही हैं लेकिन अंदरखाने चर्चा यही है कि उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट ने कुछ सीटों पर अपने समीकरण बिठाए हैं. अगर यह समीकरण स​टीक बैठता है तो आगामी विधानसभा चुनावों में दोनों पार्टियों के बीच राजनीतिक दूरियां कम होती हुई दिखाई देना निश्चित है.

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