Politalks.News/Uttarpardesh. अखाड़ा परिषद के महंत नरेंद्र गिरि की मौत का मामला तेजी से तूल पकड़ता जा रहा है. इस बीच महंत नरेंद्र गिरि का कथित सुसाइड नोट सामने आया है. जिसमें कथित रूप से नरेंद्र गिरि ने लिखा है कि ‘मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं. मेरी मौत के लिए आनंद गिरि, आद्या तिवारी और संदीप तिवारी जिम्मेदार हैं. प्रयागराज के सभी प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं मेरी हत्या के लिए उपरोक्त तीन लोगों पर कार्रवाई की जाए. जिससे मेरी आत्मा को शांति मिले’.
‘महिला के साथ मेरी फोटो जोड़कर बदनाम करने की साजिश’
कथित सुसाइड नोट में लिखा गया है कि ‘जबसे आनंद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य मनगढ़ंत आरोप लगाए हैं, तब से मैं मानसिक दबाव में रह रहा हूं. मैं जब भी एकांत में होता हूं तो मर जाने की इच्छा होती है. आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी और उनका लड़का संदीप मिलकर मेरे साथ विश्वासघात कर रहे हैं. मुझे मारने का प्रयास कर रहे हैं’. कथित सुसाइड नोट में लिखा गया है कि ‘हरिद्वार से सूचना मिली थी कि आनंद गिरि किसी महिला के साथ मेरी फोटो जोड़कर मुझे बदनाम करने के लिए मेरी फोटो वायरल कर दी. मैंने सोचा कि मैं किस-किस को सफाई दूंगा, बदनामी होगी. इसलिए मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं इसके साथ ही इस नोट में कहा गया है कि वो 13 सितंबर को ही आत्महत्या करना चाह रहे थे, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाए’.
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भीलवाड़ा का रहने वाला है आनंद गिरी उर्फ अशोक
महंत नरेन्द्र गिरि के सुसाइड नोट के सामने आने के बाद आनंद गिरि की मुसीबतें बढ़ना तय है. महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में उनके शिष्य आनंद गिरि को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. आनंद गिरि के तार राजस्थान के भीलवाड़ा से जुड़े हैं. आनंद गिरि भीलवाड़ा आसींद क्षेत्र के सरेरी गांव के रहने वाले हैं. उनका असली नाम अशोक है. 12 साल की उम्र में वह अपना गांव छोड़ हरिद्वार चला गया था भीलवाड़ा के एक गांव का अशोक, आनंद गिरि कैसे बना आपको बताते हैं.
1997 में छोड़ा था भीलवाड़ा
साल 1997 में आनंद गिरि अपना घर छोड़ हरिद्वार चला गया. उस समय वह गांव और परिवार में अशोक के नाम से जाना जाता था. इसके बाद वह हरिद्वार में महंत नरेंद्र गिरी की शरण में गए. 2012 में महंत नरेंद्र गिरि के साथ अपने गांव भी आए थे. नरेंद्र गिरि ने उनको परिवार के सामने दीक्षा दिलाई और वह अशोक से आनंद गिरि बन गया.
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5 महीने पहले मां की मौत पर आनंद आया था गांव
संत बनने के बाद आनंद गिरि दो बार अपने गांव आया है. पहली बार दीक्षा लेने के लिए और इसके बाद 5 महीने पहले. जब उनकी मां का देहांत हो गया था. इस दौरान गांव के लोगों ने आनंद गिरि का काफी सत्कार किया था.
आनंदगिरि का भाई आज भी लगाता सब्जी का ठेला
आनंद गिरि के परिवार के लोगों ने बताया कि आनंद गिरि जब सातवीं कक्षा में पढ़ता था, तब ही गांव छोड़ हरिद्वार चला गया था. वह ब्राह्मण परिवार से है. पिता गांव में ही खेती करते हैं. आनंद गिरि परिवार में सबसे छोटा है. तीन भाइयों में से एक भाई आज भी सब्जी का ठेला लगाता है. दो भाई का सूरत में कबाड़ का काम है. सरेरी गांव आनंद गिरि को एक अच्छे संत के रूप में जाना जानता है. उन्हें शांत और शालीन स्वभाव का बताया जाता है.