Politalks.News/BJP/NitinGadkari. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज अपने अब तक सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है. कभी देश के हर राज्य में राज करने वाली कांग्रेस आज न केवल सिर्फ दो राज्यों में सिमट कर रह गई है, बल्कि अपनी राष्ट्रीय पार्टी की छवि को बचाने की जुगत में लगी हुई है. कांग्रेस के ऐसे बुरे दौर में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने न सिर्फ कांग्रेस का हौसला बढ़ाया है अपितु कांग्रेसियों को पार्टी छोड़ने के बजाए पार्टी के साथ खड़े रहने की सलाह भी दी है. ऐसे में अब नितिन गडकरी द्वारा कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने के लिए दिए गए बयान और उदाहरणों की देशभर के सियासी गलियारों में जबरदस्त चर्चा है. इस दौरान गडकरी ने राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती भागीदारी और महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर भी चर्चा की. आपको बता दें, हाल ही में पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की सभी जगहों पर करारी हार हुई है.
शनिवार को पुणे में एक प्रमुख अखबार की ओर से आयोजित जर्नलिज्म अवार्ड कार्यक्रम के दौरान केंद्रीय सड़क परिवहन और हाइवे मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि, ‘लोकतंत्र दो पहियों पर चलता है- सत्ता पक्ष और विपक्ष, एक मजबूत विपक्ष लोकतंत्र की जरूरत है. इसलिए मेरी इच्छा है कि कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए. साथ ही कांग्रेस के कमजोर होने से उसकी जगह क्षेत्रीय दलों ने ले ली है, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है. क्षेत्रीय दलों को विपक्ष की भूमिका पर कब्जा करने से रोकने के लिए यह आवश्यक है कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत हो .’
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यही नहीं दिग्गज बीजेपी नेता नितिन गडकरी ने कांग्रेसियों के गिरते मनोबल को बढ़ाने के किए एक उदाहरण देते हुए कहा कि, ‘जब अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा चुनाव (1950 के दशक में) हार गए थे, लेकिन फिर भी पंडित जवाहर लाल नेहरू से उन्हें सम्मान मिलता था. इसलिए लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. मेरी दिल से इच्छा है कि कांग्रेस मजबूत बनी रहे. आज जो कांग्रेस में हैं वो निश्चित रूप से अपना विश्वास बनाए रखें और कांग्रेस में बने रहें. वो काम करना जारी रखें और उन्हें हार से निराश नहीं होना चाहिए. हर पार्टी का समय आता है, लेकिन जरूरी है कि काम करते रहना चाहिए.’
नितिन गड़करी ने आगे एक और उदाहरण देते हुए कहा कि, ‘जो भी कांग्रेस विचारधारा का पालन करते हैं, उन्हें पार्टी में रहना चाहिए और अपने सिद्धांतों पर भरोसा करना चाहिए. 1978-80 में मैं भाजपा में शामिल हुआ और पार्टी अधिवेशन में भाग लेने के लिए पुणे आया था, जब मैं कंधों पर प्रचार सामग्री लेकर रेलवे स्टेशन पर उतरा, तो श्रीकांत जिचकर से टकरा गया, जिन्होंने मुझे सलाह दी कि मुझे ‘अच्छी पार्टी’ में जाना चाहिए, जो मुझे भविष्य दे. लेकिन मैंने उन्हें बताया कि मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगा, लेकिन अपनी विचारधारा नहीं छोड़ूंगा. उस समय लोकसभा में भाजपा के केवल दो सांसद थे. लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के प्रयासों से समय बदला और हमें प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी मिले, तो व्यक्ति को निराशा के समय में अपनी विचारधारा नहीं छोड़नी चाहिए.’
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वहीं महाराष्ट्र की राजनीति के स्तर में हाल में आई गिरावट पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि ‘महाराष्ट्र में यह परंपरा रही है कि विभिन्न विचारधाराओं और नजरिए के लोग सह-अस्तित्व में रहते हैं. इस तरह (दुर्भावना) की राजनीति महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति में स्वीकार्य नहीं है. आज अलग-अलग दृष्टिकोणों या विचारधाराओं के बजाय…. समस्या कोई विचारधारा नहीं है, बल्कि अवसरवाद है.’ कार्यक्रम में पूछे गए एक सवाल के जवाब में नितिन गडकरी के कहा, ‘मैं एक राष्ट्रीय राजनेता हूं और इस समय महाराष्ट्र (प्रदेश की राजनीति) में लौटने का इच्छुक नहीं हूं. एक समय की बात है कि मैं खासकर केंद्र में जाने का इच्छुक नहीं था, लेकिन अब मैं वहां खुश हूं. मैं दृढ़ विश्वास से काम करने वाला राजनेता हूं और खासकर महत्वाकांक्षी नहीं हूं.’ इस दौरान गडकरी ने जोर देकर यह भी कहा है कि वे प्रधानमंत्री पद की ‘रेस में नहीं‘ थे.