Politalks.News/AamAadmiParty. देश के सियासी गलियारों में इस बात पर चौतरफा बहस छिड़ी है कि आखिर आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार ने कैसे महात्मा गांधी की तस्वीरें सरकारी कार्यालयों से उतरवा दीं और उनकी जगह भगत सिंह और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की तस्वीरें लगा दीं? आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी ने यह काम दिल्ली सरकार में भी किया है. पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान ही पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि सरकारी कार्यालयों में अब सिर्फ भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरें ही लगेंगी. इसका तात्कालिक मकसद पंजाब के युवाओं और दलित मतदाताओं को अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करना था, जिसमें उनको कामयाबी भी मिली. सियासी जानकार बताते हैं कि गांधी के नाम पर अपनी राजनीति शुरू करने वाले अरविंद केजरीवाल उनके आदर्शों पर चलकर सरकार नहीं चला सकते हैं इसलिए उन्होंने जल्द ही गांधी जी से पल्ला झाड़ लिया.
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर सरकार के सभी दफ्तरों में से महात्मा गांधी की तस्वीरें उतार दी गईं और उनकी जगह भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरें लग गईं हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि अब इस बदलाव के जरिए केजरीवाल और उनकी पार्टी ने बड़े राजनीतिक मकसद को साधने का मन बना लिया है. तभी उन्होंने सिर्फ भगत सिंह की तस्वीर नहीं लगाई, बल्कि पंजाब की जीत को इन्कलाब कहना शुरू किया. आपको बता दें कि आजादी की लड़ाई में इन्कलाब भगत सिंह का नारा था. केजरीवाल को पता है कि देश के युवाओं में भगत सिंह का कैसा क्रेज है. शहीद-ए-आजम के प्रति युवाओं के लगाव और आकर्षण को केजरीवाल अपने वोट में बदलना चाहते हैं. इसलिए हैरानी नहीं होगी अगर थोड़े समय के बाद आम आदमी पार्टी के लोग भी इस दुष्प्रचार पर उतर जाएं कि गांधी ने भगत सिंह को फांसी से नहीं बचाया.
यह भी पढ़े: राहुल-प्रियंका से प्रशांत किशोर की मुलाकात, ‘मिशन गुजरात’ पर बनी बात! जल्द बिछेगी चुनावी बिसात
ऐसे ही उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने और मायावती की राजनीति के ढलान को भांप कर केजरीवाल ने अपनी पार्टी और सरकार को बाबा साहेब अंबेडकर से भी जोड़ना शुरू कर दिया है. इसी मकसद से पिछले कई दिनों से दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में बाबा साहेब अंबेडकर के जीवन पर संगीतमय नाटक चल रहा है. इसमें प्रवेश निःशुल्क है, यही नहीं आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने इसका व्यापक विज्ञापन भी कराया है.
भगत सिंह और बाबा साहब अंबेडकर के राजनीतिक इस्तेमाल पर सवाल उठाने के बीच एक सवाल जो सियासी गलियारों में गूंज रहा है वो ये है कि, ‘इन दोनों को आगे करने के लिए गांधी को हटाने की क्या जरूरत थी?’ इसको लेकर सियासी जानकारों का कहना है कि लोग भूल रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति की शुरुआत गांधी के नाम से ही की थी. केजरीवाल ने दूसरे गांधी के रूप में देश में जाने जाने वाले अन्ना हजारे को देश के सामने पेश किया था. अन्ना हजारे के गांधीवादी आदर्शों की ताकत थी, जिसके दम पर ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन‘ का आंदोलन सफल हुआ. 2015 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल उसी आंदोलन के दम पर सत्तारूढ़ हुए. इससे यह तो साफ जाहिर है कि गांधी के प्रयोग से आंदोलन सफल होते हैं और उनके नाम से वोट भी मिलते हैं, तो फिर क्यों केजरीवाल ने गांधी को छोड़ दिया है?
यह भी पढ़े: सियासी चर्चा: आम चुनाव तक सत्ता-संगठन को मथ देंगे मोदी, नए चेहरों के साथ उतरेंगे चुनावी रण में!
इसके जवाब में सियासी जानकारों का कहना है कि केजरीवाल ने गांधीजी को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसके बाद उनको लगने लगा कि वे जिस किस्म की राजनीति आगे भविष्य में करेंगे उसमें गांधी के आदर्श बाधा बनेंगे. तभी तो केजरीवाल भी गांधी के आदर्शों से दूर होते चले गए और उनकी राजनीति भी उनके मूल्यों से बहुत दूर हो गई. इसलिए केजरीवाल ने गांधी को छोड़ कर नए प्रतीक तलाशने शुरू कर दिए. जिस तरह से केजरीवाल ने 2011 में अन्ना हजारे को दूसरा गांधी बना कर पेश किया थी वैसे ही केजरीवाल अब भगवंत मान को दूसरा भगत सिंह बना कर पेश कर रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर सियासी गुढिजनों यह कहना है कि करीब 75 साल पहले किसी सिरफिरे ने गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी तब भी गांधी लोगों के मानस में जिंदा रहे तो अब उनकी तस्वीरें उतार देने या उनके लिए अपमानजनक बयान देने से तो गांधी को खत्म नहीं किया जा सकता है. उनके आदर्श, मूल्य, जीवन पद्धति और उनके प्रयोग अजर-अमर हैं. समय के साथ वे भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में ज्यादा प्रासंगिक होते जा रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका के प्रधानमंत्री रहे जैन स्मट्स ने 1942 में विंस्टन चर्चिल से कहा था कि ‘गांधी ईश्वर के आदमी हैं और हम-तुम तुच्छ प्राणी हैं‘. आज चर्चिल के अपने देश में उनकी मूर्तियां गिराई जा रही हैं और दूसरी ओर दुनिया के 180 से ज्यादा देशों के मुख्य चौराहों पर लगी गांधी की मूर्तियां इंसानों को सही रास्ता दिखा रही हैं. सो, रहती दुनिया तक गांधी रहेंगे और उनकी तस्वीर हटाने वालों को इतिहास के फुटनोट में भी जगह नहीं मिलेगी.