‘अगर भाजपा पूरा करती अपना वादा तो शिंदे को तभी मुख्यमंत्री बना देती ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना’

ऐसा क्यों है कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में केवल विपक्ष के लोगों को ही किया गया है नामजद, भाजपा के उन नेताओं या उन राज्यों में कोई क्यों नहीं है जहां भाजपा ने बनाई है अपनी सरकार, मुझे तो जेल में डाला गया और तीन महीने तक मैं जेल में रहा, वह भी बिना किसी कारण के बावजूद इसके मैंने अपनी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा, लेकिन गजानन कीर्तिकर को सबकुछ दिया वो चले गए, एक दिन जनता भी उन्हें भूल जाएगी- संजय राउत

‘मैं जेल गया फिर भी पार्टी नहीं छोड़ी, लेकिन...’
‘मैं जेल गया फिर भी पार्टी नहीं छोड़ी, लेकिन...’

Sanjay Raut on ED and BJP. पात्रा चोल घोटाला मामले में कथित रूप से लगभग तीन महीने जेल में बंद शिवसेना के दिग्गज नेता संजय राउत 102 दिन बाद 9 नवंबर को जमानत पर रिहा होकर जेल से बाहर आ गए हैं. जेल से बाहर आने के बाद राउत का शिवसेना कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों ने जोरदार स्वागत किया लेकिन जेल से बाहर आए संजय राउत कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे थे. पहले दो दिन तो उन्होंने बड़े ही सधे हुए अंदाज में बयान दिए लेकिन अब वे धीरे धीरे अपने पुराने अंदाज में नजर आने लगे हैं. हालांकि राउत ने अपने व्यक्तित्व के विपरीत अपने बयान देने के लहजे में भी काफी परिवर्तन किया है. फिलहाल संजय राउत का ये परिवर्तन सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है लेकिन शुक्रवार को उन्होंने बड़ा बयान देते हुए कहा कि, ‘2019 में जब हमने भाजपा के साथ एलायंस किया था तो उस वक्त हम खुद एकनाथ शिंदे को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे लेकिन, उस वक्त भाजपा के लिए यह स्वीकार्य नहीं था.’ वहीं सांसद गजानन कीर्तिकर के शिंदे गुट में जाने को लेकर भी राउत ने निशाना साधा और कहा कि, ‘मैं तो जेल जाकर भी आ गया लेकिन पार्टी नहीं छोड़ी.’

शिवसेना के राज्यसभा सांसद एवं उद्धव ठाकरे के करीबी संजय राउत पात्रा चॉल घोटाला से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत पर बाहर आने का बाद अब फिर से अपने पुराने अंदाज में नजर आने लगे हैं. हालांकि बीजेपी पर उनके प्रहार थोड़े नर्म जरूर हुए हैं लेकिन एकनाथ शिंदे गुट पर वे अब भी हमलावर हैं. शुक्रवार को आजतक से बात करते हुए संजय राउत ने कहा कि, ‘महाराष्ट्र चुनाव से पहले, हमने भाजपा के साथ गठबंधन किया था. हम दोनों दलों के बीच समझौता था कि सत्ता 50:50 के आधार पर साझा की जाएगी. हम हिंदुत्व को आगे ले जाना चाहते थे, जो कि दोनों दलों की मूल विचारधारा भी है. ऐसे में जब चुनावी नतीजे सामने आए तब हमने भाजपा के साथ गठबंधन किया तो उद्धव ठाकरे सीएम नहीं बनना चाहते थे.’

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इस दौरान संजय राउत ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि, ‘विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी ने यह फैसला लिया था कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाए. अगर उस वक्त भाजपा अपना वादा पूरा करती, तो एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया जाता. उस वक्त शिंदे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट के प्रति अपनी निष्ठा रखते थे. लेकिन भाजपा ने शिवसेना का नाम और चिह्न सबकुछ तोड़कर ऐसा किया. इससे पता लगता है कि भाजपा क्या चाहती थी?’ वहीं जब सवाल पुछा गया कि ‘अगर शिंदे को शिवसेना मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी तो फिर उद्धव ठाकरे राज्य के मुखिया कैसे बने?’ संजय राउत ने कहा कि, ‘उद्धव ठाकरे अलग-अलग परिस्थितियों में सीएम बने. शिवसेना ने शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है, इसलिए उस वक्त की परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उद्धव ठाकरे को 2019 में महाराष्ट्र में सरकार बनानी पड़ी.’

वहीं पात्रा चॉल घोटाले में लगे मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों को लेकर संजय राउत ने कहा कि, ‘ऐसा क्यों है कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में केवल विपक्ष के लोगों को ही नामजद किया गया है और भाजपा के उन नेताओं या उन राज्यों में कोई क्यों नहीं है जहां भाजपा ने अपनी सरकार बनाई है. नेशनल हेराल्ड मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, राहुल और सोनिया गांधी जैसे कुछ लोगों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले दर्ज किए. मुझपर जो मामला दर्ज किया गया है वह झूठा है. मैं जानता हूं कि बार-बार मेरे खिलाफ इस तरह के झूठे मामले दर्ज किए जाएंगे. लेकिन हमें इसमें एक साथ रहना होगा और इससे लड़ना होगा.’ बीजेपी पर निशाना साधते हुए संजय राउत ने कहा कि, ‘पार्टी को विपक्षी नेताओं के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने की प्रवृत्ति को रोकना चाहिए. अगर मैंने कुछ गलत किया है, तो आप मेरे साथ लड़ें. लेकिन मेरे पीछे न आएं क्योंकि मैं एक लेखक हूं, एक संपादक हूं और मैं लोगों के सामने वास्तविक मुद्दे लाता हूं.’

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इसके साथ ही सांसद गजानन कीर्तिकर के एकनाथ शिंदे गुट में जाने के बाद संजय राउत ने उनपर निशाना साधा. संजय राउत ने कहा कि, ‘जब कोई व्यक्ति किसी पार्टी के सारे महत्वपूर्ण पद और लाभ लेने के बाद निकल जाता है तब उसकी तो पार्टी के प्रति उसकी निष्ठा का सवाल पैदा होता है. पांच बार वह विधायक रहे, दो बार सांसद रहे, मंत्री पद भी उन्हें दिया गया था. ऐसे में और किस चीज की लालसा थी उन्हें. उम्र के इस पड़ाव पर उनका पार्टी छोड़ कर जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. मुझे तो जेल में डाला गया तीन महीने तक मैं जेल में रहा, वह भी बिना किसी कारण के बावजूद इसके मैंने अपनी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा. संकट के समय जो अपनी पार्टी और अपने परिवार के साथ खड़ा रहता है वही सच्चा निष्ठावान होता है. गजानन कीर्तिकर को कुछ दिनों में लोग भूल जाएंगे.’

संजय राउत ने आगे कहा कि, ‘गजानन कीर्तिकर ने भले ही उद्धव ठाकरे गुट को छोड़ दिया है लेकिन उनके बेटे अमोल कीर्तिकर आज भी हमारे साथ हैं. अमोल ने अपने पिता को भी समझाने का काफी प्रयास भी किया था लेकिन वह कुछ भी समझने को तैयार नहीं थे. गजानन कीर्तिकर दोबारा चुनाव जीतकर नहीं आएंगे.’

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