Pratap Singh Khachariyawas on OBC Reservation. प्रदेश में लंबे समय से ओबीसी आरक्षण की विसंगति को लेकर चल रहा मामला फिर से तूल पकड़ने लगा है. सरकार से वार्ता के बाद भी राज्य में ओबीसी वर्ग को 21 फीसदी आरक्षण का लाभ नहीं मिलने पर राजस्थान में सियासी बयानबाजी चरम पर पहुंच गई है. मिली जानकारी के अनुसार बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे को उठाया गया था लेकिन आरोप लगाया जा रहा है कि खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खचारियावास द्वारा आपत्ति उठाए जाने के बाद इस मुद्दे पर फैसला नहीं हो पाया. ऐसे में अब खुद पर लगे आरोपों को मंत्री खाचरियावास ने बेबुनियाद बताया और कहा कि, ‘इस मुद्दे के जरिये मेरे खिलाफ साजिश रची जा रही है. इस मामले के डेफर होने में मेरा कोई योगदान नहीं है, पता नहीं क्यों सोशल मीडिया पर मुझे बदनाम किया जा रहा है. मैं कोई मुख्यमंत्री से ज्यादा पावरफुल थोड़े ही हूं.‘
आपको बता दें कि एक तरफ राजस्थान की गहलोत सरकार जल्द ही चुनावी साल में प्रवेश करने जा रही है लेकिन आंतरिक गुटबाजी के साथ ही OBC आरक्षण का मुद्दा उसके लिए बड़ी मुसीबत बनता नजर आ रहा है. बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में OBC आरक्षण में व्याप्त विसंगितयों को दूर करने के लिए कोई भी फैसला नहीं लिया गया, जिसके बाद से पार्टी विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने जहां इस मुद्दे को सुलझाने में लग रहे समय के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को जिम्मेदार बताया है तो वहीं ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा ने सीएम गहलोत को पत्र लिख अपनी आवाज उठाई है. तो वहीं सचिन पायलट गुट के नेता भी अब इस मुद्दे पर सवाल उठाने लगे हैं. लेकिन इन सबके बीच सोशल मीडिया पर इस मुद्दे के सुलटारे में हो रही देरी को लेकर निशाने पर खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास आ गए हैं. वहीं खुद पर लगे रहे आरोपों को मंत्री खाचरियावास ने बेबुनियाद बताया.
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प्रताप सिंह खाचरियावास ने शनिवार को एक पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि, मैंने न कभी ओबीसी आरक्षण का विरोध किया है न करूंगा. एक बार दुबारा कहना चाहूंगा कि यह सिर्फ मुझे बदनाम करने की साजिश है. मैं तो खुद मुख्यमंत्री जी से यह अपील कर चुका हूं कि जल्द से जल्द ओबीसी आरक्षण विसंगतियो को दूर किया जाना चाहिए. इस मामले के डेफर होने में मेरा कोई योगदान नहीं है. अगर मेरे कहने से ही कैबिनेट में कोई मदद डेफर हो सकता है, अगर मेरे कहने से ही कैबिनेट चल रही है तो फिर तो मैं राजस्थान का सबसे पावरफुल मंत्री हुआ. मेरे सारे काम हो भी रहे हैं और मैं अपने सारे काम करवा भी सकता हूं. सोशल मीडिया पर मुझे बदनाम करने और इस मुद्दे को चलने वालों को थोड़ा समझदार होना चाहिए. यह मुद्दा आपसे में टकराव का नहीं है. आपसी विचार विमर्श के बाद सॉल्व करने का है.’
प्रताप सिंह खाचरियावास ने आगे कहा कि, ‘मैं ACR का मुद्दा तो लागू करवा नहीं पाया और मुझ पर इस मुद्दे को डेफर करने का आरोप लगाया जा रहा है, जिसका कोई अंत नहीं है और मैं अब किसको सफाई दूँ. मेरे खिलाफ ये अभियान चालय जा रहा है कि मैंने कैबिनेट की बैठक में OBC आर्कषण के मुद्दे का विरोध किया था. मैं इस मुद्दे का विरोध करने वाला होता कौन हूं? कैबिनेट के निर्णय सामूहिक जिम्मेदारी है. मुख्यमंत्री कैबिनेट के मुखियां हैं इसलिए वे कुछ भी जिम्मेदारी ले सकते हैं. मुख्यमंत्री को जिस दिन इस मुद्दे पर फैसला लेना होगा वो उस दिन ना हरीश चौधरी से पूछेंगे, ना प्रताप सिंह खाचरियावास से पूछेंगे और ना ही किसी मंत्री से राय लेंगे.’
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इससे पहले रुवार को बायतु विधायक एवं पूर्व राजस्व मंत्री और पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी ने ट्वीट कर खुली बगावत के संकेत दिए थे. यही नहीं उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था कि, ‘OBC आरक्षण मामला कल कैबिनेट बैठक में रखने के बावजूद एक विचारधारा विशेष के द्वारा इसका विरोध चौंकाने वाला है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी मैं स्तब्ध हूं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी मैं स्तब्ध हूं, आखिर क्या चाहते है आप? मैं OBC वर्ग को विश्वास दिलाता हूं कि इस मामले को लेकर जो लड़ाई लड़नी पड़ेगी, लडूंगा.’ चौधरी के इस ट़्वीट के बाद से ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूजर्स ने मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास के खिलाफ ट्रेडिंग शुरू कर दी. यूजर्स ने लिखा कि प्रतापसिंह खाचरिवास ने खुलकर ओबीसी का विरोध किया.
वहीं शुक्रवार को पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा था कि, ‘ओबीसी आरक्षण की विसंगति दूर करने का एजेंडा डेफर होना बहुत दुर्भाग्यूपर्ण है. आज तक मेरे समझ नहीं आया कि मुख्यमंत्री ने इसे डेफर क्यों किया? यह एजेंडा डेफर होने के लिए केवल सीएम जिम्मेदार हैं. मैंने मुख्यमंत्री से सवाल किया है, इसमें नौकरशाही का कोई रोल नहीं है. ओबीसी आरक्षण का एजेंडा डेफर होने पर मैं बहुत दुखी था और मैंने ट्वीट करके मेरी भावनाएं रखी. अभी तक समझ नहीं आ रहा कि सीएम ने इसे डेफर क्यों किया? एजेंडा डेफर करने का अधिकार या तो कैबिनेट का है या सीएम को है. कोई मंत्री अगर असहमत है तो वह ज्यादा से ज्यादा डिसेंट नोट लगा सकता है. मुख्यमंत्री की सैद्धांतिक स्वीकृति के बाद लीगल, RPSC व कार्मिक विभाग से स्वीकृति के बावजूद कैबिनेट बैठक में नियम डेफ़र होना दुर्भाग्यपूर्ण है. केंद्र, उत्तराखंड, पंजाब, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में इसके लिए इसी तर्ज़ पर नियम बने हुए हैं.