पहले राजनाथ और बाद में गडकरी ने कह दी मन की बात, क्या यह है जलवायु परिवर्तन का संकेत?- रमेश

1962 के युद्ध की बात करते हुए कहा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीयत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, तो वहीं एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री गडकरी ने कहा कि महात्मा गांधी के समय की राजनीति और आज की राजनीति में बहुत बदलाव हुआ, कभी-कभी मन करता है कि राजनीति ही छोड़ दूं

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Politalks.News/Bharat/BJP/Congress. हाल ही में बीते रविवार को बीजेपी के दो दिग्गज नेताओं द्वारा दिए गए बयानों ने बीजेपी के साथ-साथ देशभर की सियासत में बवाल मचा हुआ है. पहले केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और बाद में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बयानों को लेकर अब सियासी अटकलों का दौर शुरू हो गया है. इसी बीच कांग्रेस नेता राज्यसभा सांसद जयराम रमेश के एक ट्वीट ने अटकलों को बढ़ावा दे दिया है. जयराम रमेश ने अपने ट्वीट में लिखा कि, ‘पहले राजनाथ सिंह जी ने और अब नितिन गडकरी जी ने अपने मन की बात कही है, क्या ये जलवायु परिवर्तन के संकेत हैं?’

पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीयत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता
दरअसल, बीती 24 जुलाई, रविवार को करगिल विजय दिवस से पहले जम्मू पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जिक्र कर सबको चौंका दिया, क्योंकि मोदी सरकार ने कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू या कांग्रेस के किसी भी प्रधानमंत्री की किसी भी उपलब्धि को स्वीकार ही नहीं किया है. खैर, राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में 1962 के युद्ध की बात करते हुए कहा कि, ‘1962 में चीन ने लद्दाख में हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया था, उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे. उनकी नीयत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, किसी प्रधानमंत्री की नीयत में खोट नहीं हो सकता, लेकिन यह बात नीतियों पर नहीं लागू होती है. हालांकि अब भारत दुनिया के ताकतवर देशों में है.’

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि रक्षा क्षेत्र में आज भारत आत्मनिर्भर हो रहा है. भारत जब बोलता है तो दुनिया सुनती है. सिंह ने आगे कहा, 1962 में हम लोगों को जो नुकसान हुआ उससे हम परिचित हैं. उस नुकसान की भरपाई आज तक नहीं हो पाई है. हालांकि अब देश मजबूत है. राजनाथ ने पीओके को लेकर भी कहा कि भारत की संसद में इसको लेकर प्रस्ताव पारित हुआ था. यह क्षेत्र भारत का था और भारत का ही रहेगा. ऐसा नहीं हो सकता कि बाबा अमरनाथ हमारे यहां हों और मां शारदा सीमा के उस पार हों.

कभी-कभी राजनीति छोड़ने का करता है मन: गडकरी
इसी के साथ अक्सर अपने सधे हुए बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले और सत्ता में रहने के बावजूद भी अपनी साफगोई के लिए मशहूर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि कभी-कभी मन करता है कि राजनीति ही छोड़ दूं. दरअसल, रविवार को सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश गांधी के सम्मान में आयोजित एक समारोह को सम्बोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि महात्मा गांधी के समय की राजनीति और आज की राजनीति में बहुत बदलाव हुआ है. बापू के समय में राजनीति देश, समाज, विकास के लिए होती थी, लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है. हमें समझना होगा कि राजनीति का क्या मतलब है? क्या यह समाज, देश के कल्याण के लिए है या सरकार में रहने के लिए है?

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कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि राजनीति गांधी के युग से ही सामाजिक आंदोलन का हिस्सा रही है. उस समय राजनीति का इस्तेमाल देश के विकास के लिए होता था. आज की राजनीति के स्तर को देखें तो चिंता होती है. आज की राजनीति पूरी तरह से सत्ता केंद्रित है. नितिन गडकरी ने कहा कि, ‘कई बार मुझे ऐसा लगता है कि मैं राजनीति कब छोड़ूं और कब नहीं, क्योंकि जीवन में राजनीति के अलावा भी कई ऐसी चीजें हैं जो कि करने लायक हैं. हमें ये समझना चाहिए कि राजनीति आखिर है क्या. अगर बारीकी से देखें तो राजनीति समाज के लिए है और समाज का विकास करने के लिए है. लेकिन वर्तमान में राजनीति 100 फीसदी सत्ता नीति (सत्ता के लिए) होकर रह गई है. मुझे कभी-कभी तो लगता है कि मैं राजनीति कब छोड़ दूं.’ नितिन गडकरी ने कहा कि मेरा मानना है कि राजनीति सामाजिक-आर्थिक सुधार का एक सच्चा साधन है. इसलिए नेताओं को समाज में शिक्षा, कला आदि के विकास के लिए काम करना चाहिए.

इस तरह पहले केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और बाद में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बयानों को लेकर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि क्या यह जलवायु परिवर्तन के संकेत हैं.

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