कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर मुडा मामले को लेकर मुकदमा चलाए जाने की तैयारी चल रही है. प्रदेश गर्वनर ने इसकी इजाजत दे दी है. अगर आरोप सही साबित होता है तो वाजिब है कि दिल्ली और झारखंड की तरह एक ओर राज्य के मुख्यमंत्री तिहाड़ जेल की हवा खाने को तैयारी करें. इस मामले में सभी कांग्रेस नेताओं को मुंह बंद करने की सलाह दी गयी है. हालांकि सियासी गलियारों में से होकर एक दबी हुई खबर भी आ रही है. वो यह कि सिद्दारमैया पर हो बड़ी कार्रवाई के पीछे डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का हाथ हो सकता है. एक प्रसिद्ध समाचार प्रकाशक के वरिष्ठ पत्रकार ने भी इस संदेह को हवा देने का काम किया है.
दरअसल, कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से पहले ही सिद्दारमैया और डीके शिवकुमार के बीच मनभेद चल रहे थे. सिद्दारमैया 2013-2018 में मुख्यमंत्री रह चुके हैं. पिछली बार कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार में कुमारास्वामी सीएम बने लेकिन यह सरकार केवल 15 महीने में ही गिर गयी. उसके बाद सत्ता वापसी के लिए शिवकुमार की मेहनत को कोई भुला नहीं सकता, लेकिन जब बात आई कुर्सी की तो वहां वरिष्ठता के आधार पर सिद्दारमैया को तरजीह मिली. हालांकि वजह यह भी बताई गई कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुद्दे को भुनाते हुए सत्ता में आई थी लेकिन डीके पर पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे हुए थे. ऐसे में अगर कुर्सी डीके को मिलती तो जनता के बीच नेगेटिव संदेश जाता.
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कर्नाटक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके ने आलाकमान की बात का मान रखते हुए डिप्टी सीएम का पद स्वीकार कर लिया. हालांकि बताया जा रहा है कि सत्ता हासिल करने की मंशा कहीं न कहीं डीके शिवकुमार के मन में अभी भी बसी हुई है. ऐसे में संदेश यही जा रहा है कि सिद्दारमैया पर मुडा मामले को उठाने के पीछे भी डीके का ही षडयंत्र है. एक मीडिया प्रकाशन के वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल ने इसका संकेत किया है. आदेश ने अनेक टवीट में लिखा है, ‘कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के खिलाफ हाल ही में भ्रष्टाचार को लेकर कई कहानी मीडिया में प्रकाशित हुई है.जिससे कर्नाटक की राजनीति काफ़ी गर्म है. कांग्रेस नेतृत्व के पास जानकारी है कि इन कहानियों के पीछे कांग्रेस के ही नेता का हाथ है. उस नेता की नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है.’ संकेत स्पष्ट है कि इशारा किसकी ओर किया जा रहा है.
इससे पहले उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने इस मामले पर बयान देते हुए कहा था कि हम सीएम सिद्दारमैया के साथ खड़े हैं, पार्टी, हाईकमान, पूरा राज्य और कैबिनेट उनके साथ खड़ा है, हम कानूनी रूप से लड़ेंगे और हम राजनीतिक रूप से भी लड़ेंगे, जो भी नोटिस और मंजूरी दी गई है, वह कानून के खिलाफ है. हमने कानूनी रूप से लड़ने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर ली है. साथ ही साथ पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयान नहीं देने की नसीयत भी दी थी.
अब इन संदेह जनक घटनाओं में डीके शिवकुमार का हाथ है या नहीं, यह तो अभी जांच का विषय है लेकिन दोनों नेताओं के बीच कुर्सी की जंग सभी ने देखी है. विस चुनाव के दौरान आलाकमान ने राज्य के सियासी समीकरणों को देखते हुए दोनों नेताओं को अलग अलग इलाकों की जिम्मेदारियां सौंपी दी. डीके ने आधा और सिद्दारमैया ने शेष बचे कर्नाटक में चुनावी दौरे किए और सत्ता वापसी की राह को प्रशस्त किया. फिलहाल सिद्दारमैया पर मुकदमा जल्दी चलाए जाने की सिफारिश की गयी है. अब देखना ये है कि उनकी मुसीबतें कम होती हैं या फिर नहीं.