धरियावद-वल्लभनगर में सीट और लाज बचाना चुनौती, परिवारवाद के बीच टिकट वितरण खांडे की धार

धरियावाद और वल्लभनगर में बजी चुनावी रणभेरी, 30 अक्टूबर को मतदान, 2 नवंबर को नतीजे, कांग्रेस-भाजपा खेल सकती है सहानुभूति कार्ड, परिवारवाद हावी रहना तय, लेकिन टिकट फाइनल करने में दोनों ही दलों को छूट सकते हैं पसीने, बावजूद इसके कम नहीं है चुनौती, हालांकि डोटासरा और पूनियां कर रहे हैं जीत का दावा

कांग्रेस-भाजपा के लिए 'खांडे की धार'
कांग्रेस-भाजपा के लिए 'खांडे की धार'

Politalks.News/Rajasthan. प्रदेश की दो विधानसभा सीटों पर उप चुनाव की घोषणा हो गई है. राजस्थान की वल्लभनगर और धरियावद विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं. केन्द्रीय निर्वाचन आयोग ने आज इनकी तारीखों का एलान कर दिया. आयोग के अनुसार 30 अक्टूबर को मतदान कराया जाएगा और 2 नवंबर को नतीजे आएंगे. इससे पहले एक अक्टूबर को उपचुनाव की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी. इधर, दोनों ही सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के लिए लाज बचाना चुनौती होगा. पिछले उपचुनाव की तरह इन दोनों सीटों पर भी परिवारवाद की छाया रहना तय है. लेकिन टिकट देने में जरा सी चूक दिखा सकती है किसी को भी हार का चेहरा!

ये रहेगा चुनाव कार्यक्रम
निर्वाचन आयोग के मुताबिक, एक अक्टूबर को उपचुनाव की अधिसूचना जारी कर दी जाएगी. 8 अक्टूबर तक नामांकन भरे जा सकेंगे. 11 अक्टूबर को नामांकन की जांच की जाएगी. 13 अक्टूबर तक नाम वापस लिए जा सकेंगे. इसके बाद 30 को वोट डाले जाएंगे और 2 नवंबर को प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला हो जाएगा.

गजेन्द्र शक्तावत और गौत्तम लाल मीणा के निधन से खाली हुई सीटें

वल्लभनगर सीट इस साल जनवरी में कांग्रेस विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन की वजह से खाली हुई है. धरियावद सीट बीजेपी विधायक गौतमलाल मीणा के कोरोना से मई में निधन की वजह से खाली हुई है. दोनों ही सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के सामने प्रतिष्ठा बचाने का सवाल है. उपचुनाव के नतीजों से सरकार के कामकाज का आकलन होगा. मेवाड़ और बागड़ में पकड़ का भी टेस्ट होगा. दोनों सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी ने चुनावी टीमों को तैनात कर रखा है. कांग्रेस ने काफी पहले कमेटियां बनाकर नेताओं को जिम्मा दे दिया था.

टिकट देना पार्टियों के लिए खांडे की धार!

दोनों सीटों में से वल्लभनगर में कांग्रेस और भाजपा के लिए उम्मीदवार का चयन करना एक चुनौती है. दोनों दलों में गुटबाजी के चलते पार्टी को उम्मीदवारी को लेकर गहन मशक्कत करनी पड़ेगी क्यों कि भीतरघात का खतरा बना रहेगा और चुनाव जीतना दोनों के लिए अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बन जाएगा. ऐसे में कांग्रेस और भाजपा फूंक फूंक कर कदम उठा रहे है.

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परिवार में विवाद से कांग्रेस संकट
में

वल्लभनगर सीट पर दिवंगत विधायक गजेन्द्र शक्तावत की पत्नी प्रीति शक्तावत कांग्रेस से टिकट मांग रही है. पायलट कैंप के विधायक रहे गजेन्द्र शक्तावत की पत्नी प्रीति सीएम गहलोत से मुलाकात कर चुकी हैं. प्रीति ने भावुक भाषण देते हुए कहा था कि वो गजेन्द्र के सपनों को पूरा करने के लिए राजनीति में उतर रहीं हैं. वहीं गजेन्द्र सिंह के बड़े भाई देवेन्द्र शक्तावत भी टिकट के लिए अपनी दावेदारी जता रहे है. देवेन्द्र तो धमकी देते हुए एलान भी कर चुके हैं कि यदि कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय ही मैदान में उतर जाएंगे. शक्तावत ने पिछले दिनों अपने आरोप भी लगाए कि, ‘साल 2020 के पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 6 जिला परिषद सदस्य में से 5 पर हार देखनी पड़ी’ इसी तरह वल्लभनगर विधानसभा क्षेत्र स्थित 3 पंचायत समितियों वल्लभनगर, कुराबड़, भींडर में से एक पर भी कांग्रेस का प्रधान नहीं बन सका. निकाय चुनाव में भींडर नगरपालिका में गलत टिकट वितरण के चलते पार्टी हारी. यहीं नहीं लोकसभा चुनाव में वल्लभनगर विधानसभा में कांग्रेस 80 हजार वोटों से पीछे रही थी इसलिए कांग्रेस को अपना उम्मीदवार उन्हें बनाना चाहिए.

कांग्रेस वल्लभनगर में खेलेगी सहानुभूति कार्ड

कांग्रेस विधायक रहे गजेन्द्र शक्तावत कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता रहे गुलाब सिंह शक्तावत के पुत्र है. गुलाब सिंह शक्तावत का इस क्षेत्र में काफी दबदबा रहा था. उनके निधन के बाद छोटे बेटे गजेन्द्र सिंह शक्तावत को साल 2008 में टिकट दिया गया और वे विधायक बने. इसके बाद 2013 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. पिछले विधानसभा चुनाव में वे एक बार फिर से विधायक बने थे. कोरोना के चलते उनका निधन हो गया था. सूत्रों का दावा हैं कि वल्लभनगर से शक्तावत के परिवार में से किसी को टिकट दिया जा सकता है.

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शक्तावत के भांजे भी कर रहे दावेदारी

दूसरी ओर कांग्रेस में प्रीति शक्तावत या देवेन्द्र सिंह शक्तावत, जिसका भी टिकट कटा, बीजेपी उसे भी टिकट दे सकती है. इन दोनों बड़े दावेदारों के अलावा गजेन्द्र सिंह शक्तावत के ही भांजे राज सिंह झाला ने भी अपनी दावेदारी पेश की है. राज सिंह सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं. परिवार के बाहर से दावेदारी की बात करें तो पीसीसी सदस्य रह चुके भीम सिंह चूंड़ावत और कांग्रेस नेता ओंकारलाल मेनारिया भी टिकट मांग रहे हैं.

भाजपा में भी कम नहीं संकट, भिंडर पर सबकी नजरें

ऐसा नहीं हैं कि ये टिकट को लेकर घमासान कांग्रेस में ही है, भाजपा में भी इतना ही बड़ा विवाद है. भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया ने पहले ही कह दिया हैं कि वे जनता सेना के रणधीर सिंह भींडर को भाजपा का टिकट नहीं लेने देंगे. वहीं रणधीर सिंह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खास सिपहसालार हैं. भिंडर मैडम राजे से मुलाकात कर भी चुके हैं. इस मुलाकात पर कटारिया ने बयान दिया था कि अगर भिंडर को भाजपा का टिकट देना है तो पहले मुझे पार्टी से बाहर करो. इधर रणधीर सिंह भिंडर कह चुके हैं कि वे निर्दलीय ही चुनाव लडेंगे. ऐसे में भाजपा के सामने ये संकट हैं कि भींडर चुनाव लडते हैं तो भाजपा उम्मीदवार को दिक्कत हो जाएगी. पिछले चुनाव में भाजपा उम्मीदवार तीसरे स्थान पर था. वहीं भींडर सिर्फ ढाई हजार वोट से चुनाव हारे थे. भिंडर को छोड़ दे तो बीजेपी की ओर से टिकट के प्रबल दावेदार उदयलाल डांगी हैं. इनके खिलाफ धनराज अहीर, ललित मेनारिया, महावीर वया और आकाश वागरेचा ने मोर्चा खोल रखा है. बीजेपी के पूर्व प्रत्याशी रहे उदयलाल डांगी सक्रिय तौर पर क्षेत्र में जनसंपर्क में जुटे हैं. डांगी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 46 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे. डांगी नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया की भी पहली पसंद बताए जाते हैं.

धरियावाद में भाजपा का चलेगा ‘परिवारवाद’

धरियावाद की सीट बीजेपी विधायक गौतमलाल मीणा के निधन से खाली हुई है. आदिवासी बहुल धरियावाद सीट के भाजपा विधायक गौतमलाल के निधन के बाद भाजपा उनके परिवार में से किसी को उम्मीदवार बना सकती है.ऐसे में सहानुभूति फैक्टर के बूते बीजेपी यहां मजबूती से ताल ठोकती नजर आ रही है. गौतमलाल मीणा के बेटे कन्हैया लाल मीणा यहां टिकट के सबसे मजबूत दावेदार हैं. कन्हैयालाल मीणा पर बीजेपी में पूर्व सीएम रहीं वसुंधरा राजे का भी आशीर्वाद माना जाता है. इसके अलावा पंचायत समिति सदस्य रहे कुलदीप सिंह मीणा और खेत सिंह मीणा ने भी दावेदारी जताई है.

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कांग्रेस के पास ‘नगराज’ लेकिन राह नहीं है आसान

धरियावद में कांग्रेस से पूर्व विधायक नगराज मीणा अबकी बार प्रबल दावेदार हैं. मीणा पूर्व में यहां से तीन बार हार और दो बार चुनाव जीत चुके हैं. दो बार के चुनावों में उनकी लगातार हार हो रही है. ऐसे में अगर पार्टी ने दो बार चुनाव हार चुके नेता को टिकट नहीं देने के फॉर्मूले पर अमल किया तो मीणा के लिए मुश्किल हो सकती है. इनके अलावा नाथूलाल मीणा, केसर भाई उर्फ केबी मीणा और रूपलाल मीणा की भी दावेदारी है. केबी मीणा धरियावद से 2 बार के सरपंच हैं. जबकि रूपलाल मीणा लसाड़िया से 4 बार के सरपंच हैं. हाल ही में प्रतापगढ नगर परिषद की सभापति राम कन्या गुर्जर ने भाजपा को झटका देते हुए कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी इससे भाजपा पहले ही नुकसान उठा चुकी है.

अप्रैल में हुए तीन उपचुनावों में परिवारजन की हुई थी जीत

अप्रैल में प्रदेश की सहाड़ा, सुजानगढ और राजसमंद सीट के उपचुनावों में सहानुभूति कार्ड चला था. सहाड़ा में दिवंगत कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री त्रिवेदी, सुजानगढ में दिवंगत विधायक मास्टर भंवरलाल मेघवाल के बेटे मनोज कुमार और राजसमंद से दिवंगत बीजेपी विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी दीप्ति माहेश्वरी उपचुनाव में जीतीं. तीनों उपचुनाव में कई दशक का रिकॉर्ड टूटा था.

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