ब्राह्मणों के सामने झुकी धामी सरकार, देवस्थानम बोर्ड भंग, हरीश बोले- हार के डर से लिया फैसला

पुरोहितों के 'आक्रोश' के बाद धामी सरकार का बड़ा ऐलान, अंतत: देवस्थानम बोर्ड भंग, चुनाव से पहले धामी ने खेला 'ब्राह्मण कार्ड', चुनाव में नाराजगी नहीं झेलना चाहती थी भाजपा, तीर्थ पुरोहितों का वोट है देवभूमि में निर्णायक, कांग्रेस और आप के हाथ से निकला बड़ा मुद्दा!

चुनाव से पहले धामी ने खेला 'ब्राह्मण कार्ड'
चुनाव से पहले धामी ने खेला 'ब्राह्मण कार्ड'

Politalks.News/Uttrakhand. उत्तराखंड (Uttarakhand)की धामी सरकार ने आगामी चुनावों को देखते हुए बड़ा दांव चल दिया है. धामी सरकार ने ‘देवस्थानम बोर्ड एक्ट’(Devasthanam board) पर अपना फैसला सुना दिया. लंबे समय से गतिरोध के शिकार रहे इस बोर्ड को भंग कर दिया गया है. आपको बता दें कि त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कार्यकाल में देवस्थानम बोर्ड 2019 में बनाया गया था. सरकार के मंत्रियों की एक उप समिति ने इस विषय में अपनी रिपोर्ट सोमवार को ही मुख्यमंत्री पुष्कर धामी (pushkar Singh Dhami) को सौंपी थी. उत्तराखंड चुनाव में देवस्थानम सबसे बड़ा मुद्दा था. कांग्रेस और तीर्थ पुरोहित इसको लेकर आक्रामक थे. लेकिन अब धामी सरकार ने इसे भंग करने का फैसला लेकर कांग्रेस के हाथ से एक मुद्दा छीन लिया है. पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) ने कहा कि, ‘हार के डर से ये फैसला लिया गया है’. इधर सियासी जानकारों का मानना है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी साधु-संतों की नाराजगी की वजह से ही चली गई थी. अब चुनावों में भाजपा ब्राह्राणों की नाराजगी नहीं झेलना चाहती थी.

तीर्थ पुरोहित थे आक्रोशित, तीन दिन पहले देहरादून में निकाली थी बड़ी रैली
देवस्थानम बोर्ड के विरोध में तीन दिन पहले तीर्थ पुरोहितों ने अपने आंदोलन को तेज़ करते हुए देहरादून में आक्रोश रैली निकाली थी और घोषणा की थी अगर इस बोर्ड को भंग नहीं किया गया तो पुरोहित विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार का घेराव करेंगे. हालांकि युवा सीएम पुष्कर धामी पहले ही इसे भंग करने के संकेत दे चुके थे. अब मंगलवार को सरकार ने आधिकारिक तौर पर मुहर लगा दी. अब सरकार के फैसले को लेकर पुरोहितों ने खुशी जताई है और सीएम धामी का शुक्रिया अदा किया है

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फाइनल रिपोर्ट के बाद क्या हुआ?
आपको यह भी बता दें कि इस मामले में विचार करने के लिए पूर्व राज्यसभा सदस्य मनोहर कांत ध्यानी की अगुवाई में धामी सरकार ने एक समिति बनाई थी, जिसने बीते रविवार को अपनी फाइनल रिपोर्ट धामी को ऋषिकेश में सौंप दी थी. हालांकि ध्यानी ने इस बारे में ज़्यादा बात नहीं की थी, लेकिन बताया था कि, ‘इस मुद्दे को हल करने के लिए हमने कुछ सुझाव दिए हैं’. वहीं, कमेटी के सदस्य संजय शास्त्री ने पॉलिटॉक्स से बातचीत में साफ तौर पर उम्मीद जताई थी कि इस हफ्ते में सरकार इस पर कोई फैसला ले लेगी.

हार के डर से लिया फैसला- रावत
देवस्थानम बोर्ड पर सरकार के फैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की प्रतिक्रिया भी आई है. हरीश रावत ने कहा कि, ‘ विधानसभा चुनाव में हार के डर से फैसला लिया गया है, बोर्ड के गठन के समय सरकार अहंकार में थी, बाद में सरकार को अपनी हार दिखाई दी तो सरकार ने बोर्ड को भंग करने का फैसला लिया है’.

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क्यों हुआ था देवस्थानम बोर्ड का गठन
उत्तराखंड में बढ़ रही यात्रियों की संख्या और क्षेत्र को पर्यटन व तीर्थाटन की दृष्टि से मजबूत करने के उद्देश्य को लेकर त्रिवेंद्र सरकार ने चारधाम और मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने का फैसला किया. सरकार का मानना था कि सरकारी नियंत्रण में बोर्ड मंदिरों के रखरखाव और यात्रा के प्रबंधन का काम बेहतर तरीके से करेगा. इसी मद्देनजर त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2019 में उत्तराखंड के मंदिरों के प्रबंधन को अपने हाथ में लेने के लिए चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बनाने का फैसला किया. इसके दायरे में चारधाम बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री व इनसे जुड़े 43 मंदिरों समेत कुल 51 मंदिर शामिल किए हैं.

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