येन-केन-प्रकारेण दिल्ली सरकार अब केंद्र की मुट्ठी में, LG की बिना अनुमति के आगे नहीं बढ़ सकेंगे केजरीवाल

केंद्र के द्वारा नियुक्त किए जाते उपराज्यपालों (एलजी) पर मुख्यमंत्री केजरीवाल काफी समय से 'दमनकारी' नीति का आरोप लगाते रहे हैं, जिसकी वजह से दोनों का टकराव कई बार खुलकर सामने भी आया है, लेकिन अब भाजपा की मोदी सरकार ने रोज-रोज का टकराव ही खत्म कर दिया है. अब दिल्ली का 'सरदार' मुख्यमंत्री नहीं बल्कि उपराज्यपाल होंगे

दिल्ली की सरकार अब केंद्र की मुट्ठी में
दिल्ली की सरकार अब केंद्र की मुट्ठी में

Politalks.News/Delhi/PowerofLG. देश में राजधानी दिल्ली को राजनीति का सबसे ‘बड़ा सियासी बाजार’ माना जाता है. आज से नहीं बल्कि रियासतकाल से दिल्ली की गद्दी पर बैठना बहुत ही सुखद अहसास कराता है. सियासत के महत्वपूर्ण फैसलों के साथ विकास योजनाएं और नीति निर्धारण यहीं से तय किए जाते हैं. राजधानी के दो करोड़़ मतदाताओं के लिए कई जन विकास योजनाओं को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रहती है. केंद्र कई बार कहता रहा है कि हमारे विकास कार्यों को दिल्ली सरकार जनता के बीच अपना बता रही है. वहीं दूसरी ओर दिल्ली सरकार भी अपनी कई योजनाओं को लागू न कर पाने के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराती रही है. जिसकी वजह से दोनों सरकारों का टकराव भी बना रहता है. इसका बड़ा कारण यह है कि राजधानी को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार आपस में सामंजस्य नहीं बैठा पाती. लेकिन हमेशा केंद्र का पलड़ा भारी रहा है.

अब बात करेंगे मौजूदा दिल्ली की केजरीवाल सरकार की, तो तीन बार से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सत्ता संभाले हुए हैं. अपने कामों में हस्तक्षेप, शक्तियों और अधिकारों को कम करने के लिए केजरीवाल शुरू से ही केंद्र पर आरोप लगाते रहे हैं कि हमें काम करने नहीं दिया जा रहा है. केंद्र के द्वारा नियुक्त किए जाते उपराज्यपालों (एलजी) पर मुख्यमंत्री केजरीवाल काफी समय से ‘दमनकारी‘ नीति का आरोप लगाते रहे हैं. जिसकी वजह से दोनों का टकराव कई बार खुलकर सामने भी आया है. लेकिन अब भाजपा की मोदी सरकार ने रोज-रोज का टकराव ही खत्म कर दिया है. अब दिल्ली का ‘सरदार’ मुख्यमंत्री नहीं बल्कि उपराज्यपाल होंगे. आइए आपको बताते हैं केंद्र की भाजपा सरकार का यह नया ‘सियासी विधेयक‘ क्या है. जिसको लोकसभा और राज्यसभा में पास कराने के लिए भाजपा कई दिनों से छटपटा रही थी.

यह भी पढ़ें: प्रथम चरण के मतदान का शोर थमने से पहले भारत में 4 पाकिस्तान वाले TMC नेता के बयान पर BJP का बवाल

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक (NCT Act) यह एक ऐसा कानून है जिसको बनाने के लिए मोदी सरकार ने वही ‘फॉर्मूला’ अपनाया जो पिछले वर्ष कृषि कानून को दोनों सदनों में पारित कराने के लिए संविधान के सभी नियम किनारे कर दिए गए थे. यानी विपक्ष के विरोध के बावजूद भी यह NCT एक्ट ध्वनि मत से ही पारित करा लिया गया. जबकि इस विधेयक को लेकर सत्तारूढ़ केंद्र सरकार ने विपक्षी सांसदों को दोनों सदनों में चर्चा का मौका भी नहीं दिया. इस बिल के खिलाफ केजरीवाल सरकार ने संविधान और लोकतंत्र की तमाम दुहाई दी लेकिन भाजपा सरकार इसे कानून बनाने में अड़ी हुई है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक पहले केंद्र ने 22 मार्च सोमवार को लोकसभा से पास कराया, उसके बाद विपक्षी दलों के विरोध के बाद भी बुधवार को इसे राज्यसभा से भी पास करा लिया गया. अब राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ ही यह बिल कानून बन जाएगा.

इसके तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त शक्तियां मिलेंगी. सरल शब्दों में समझें तो इस कानून के बाद दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना कुछ नहीं कर पाएगी. कानून बन जानेेे के बाद दिल्ली सरकार को विधायिका से जुड़े फैसलों पर एलजी से 15 दिन पहले और प्रशासनिक मामलों पर करीब 7 दिन पहले मंजूरी लेनी होगी. सबसे बड़ी बात यह रही कि इस बिल के पास होने के दौरान इन दोनों दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कूटनीतिक रूप से सदन में मौजूद न होकर पश्चिम बंगाल-असम की चुनावी रैली में मशगूल रहे. लेकिन इस बिल की रूपरेखा पीएम मोदी और अमित शाह ने ही बनाई.

राज्यसभा से बिल को मंजूरी मिलने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के लिए ‘दुखद दिन’ है. वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज का दिन लोकतंत्र के लिए ‘काला दिन‘ है. सिसोदिया ने कहा कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के अधिकारों को छीन कर एलजी के हाथ में सौंप दिया गया है. आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बिल को ‘अलोकतांत्रिक‘ बताया. संजय सिंह ने कहा कि इस बिल से साबित हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से डरते हैं. इस बिल का सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, कांग्रेस बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी समेत लगभग सभी दलों ने विरोध किया है.

यह भी पढ़ें:- बरमूडा वाले दिलीप घोष के बयान पर ममता का पलटवार, BJP के साथ AIMIM और कांग्रेस को लिया आड़े हाथ

केजरीवाल सरकार कई अहम मुद्दों पर हाथ खड़ा कर देती थी तभी हमें यह बिल लाना पड़ा

अपनी सफाई में भाजपा ने कहा कि केजरीवाल सरकार कई अहम मुद्दों पर हाथ खड़ा कर देती थी तभी हमें यह बिल लगा पड़ा. भाजपा सांसद भूपेन्द्र यादव ने कहा कि कोरोना को लेकर दिल्ली सरकार ने जब हाथ खड़े कर दिए तब हमारे गृहमंत्री अमित शाह ने आगे आकर मोर्चा संभाला. यादव ने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण जब फैला तो हमने उसका समाधान किया. भाजपा सांसद भूपेंद्र ने कहा कि ‘सीएए‘ के दंगे आम आदमी पार्टी सरकार जब सुलझा नहीं पाई तब मोदी सरकार की मदद ली. भूपेंद्र यादव ने कहा कि हम दिल्ली को आगे बढ़ाना चाहते हैं और नागरिकों की मदद करना चाहते हैं. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने इस बिल को पेश किया. विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए किशन रेड्डी ने कहा कि संविधान के अनुसार सीमित अधिकारों वाली दिल्ली विधानसभा से युक्त एक केंद्रशासित राज्य है. रेड्डी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि यह केंद्र शासित राज्य है, सभी संशोधन न्यायालय के निर्णय के अनुरूप हैं, ये बिल लाना जरूरी हो गया था. गृह राज्य मंत्री ने कहा कि दिल्ली सरकार का स्टैंड कई मुद्दों पर स्पष्ट नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि इसे राजनीतिक विधेयक नहीं कहना चाहिए. दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है. इस बिल से प्रशासन के कामकाज का तरीका बेहतर होगा.

यह भी पढ़ें: प्रत्याशी चयन में नहीं दिखा सियासी खींचतान का असर, सर्वसम्मति से लगी तीनों BJP प्रत्याशियों पर मुहर!

किशन रेड्डी ने आगे कहा कि 1996 से केंद्र और दिल्ली की सरकारों के बीच अच्छे संबंध रहे हैं, सभी मतभेदों को बातचीत के जरिए हल किया गया. गृह राज्य मंत्री ने कहा कि 2015 के बाद से कुछ मुद्दे सामने आए हैं. कोर्ट ने यह भी फैसला दिया है कि सिटी गवर्नमेंट के एग्जीक्यूटिव इश्यू पर उपराज्यपाल को सूचना दी जानी चाहिए. यहां हम आपको बता देंं कि बिल में प्रावधान है कि दिल्ली आम आदमी पार्टी की राज्य कैबिनेट या सरकार किसी भी फैसले को लागू करने से पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर की ‘राय’ लेगी. साफ है कि बिल के कानून बन जाने के बाद दिल्ली के एलजी के अधिकार काफी बढ़ जाएंगे. हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि इस बिल को सिर्फ एलजी और दिल्ली सरकार की भूमिकाओं और शक्तियों को स्पष्ट करने के लिए लाया गया है ताकि गतिरोध न हो. अब एनसीटी बिल को संसद की मंजूरी मिलने के साथ साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में एक बार फिर एलजी बनाम मुख्यमंत्री की नई जंग और कानूनी लड़ाइयों का सिलसिला देखने को मिल सकता है.

Google search engine