दलाई लामा मानते हैं जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) का विशेष दर्जा समाप्त होने और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद एक अखबार ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा (Dalai Lama) का इंटरव्यू छापा है, जिसमें दलाई लामा की प्रतिक्रिया यह है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख (Ladakh) की छोड़िए, मैं तो भारत-पाकिस्तान (Pakistan) के विभाजन को ही गलत मानता हूं. उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिए हैं, यह सही है या नहीं, यह जटिल सवाल है. मेरा मानना यह है कि देश का विभाजन ही गलत हुआ. महात्मा गांधी भी इसके खिलाफ थे.

दलाई लामा ने कहा कि देश के विभाजन का कोई कारण बनता ही नहीं था. आज की तरह 1947 में भी पाकिस्तान से ज्यादा मुसलमान भारत में थे. पाकिस्तान की तरफ का कश्मीर आज भारत के कश्मीर से बहुत कम विकसित है. पाकिस्तान की हालत खस्ता है. इमरान खान भाषण में भावुक हो रहे हैं. लेकिन सच तो यह है कि अगर युद्ध हुआ तो पाकिस्तान भारत को हरा नहीं सकता. बेहतर होगा कि पाकिस्तान भारत से सौहार्द्रपूर्ण संबंध ही रखे.

दलाई लामा ने देश के विभिन्न प्रधानमंत्रियों के साथ अपने अनुभव भी साझा किए. पहली बार 1954 में जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात हुई थी. उन्होंने ही भारत के मेहमान का दर्जा दिया था. उसके बाद से अब तक भारत का तिब्बत के प्रति समर्थन बरकरार है. नेहरू के बाद लालबहादुर शास्त्री से मुलाकात हुई थी. वह चीन से मुकाबला करने का विचार कर रहे थे. इंदिराजी ने एक बार दूत भेजकर अनुरोध किया था कि मैं तिब्बत में विद्रोह की सालगिरह पर संदेश न दूं, लेकिन मैंने यह अनुरोध स्वीकार नहीं किया और बाद में वह भी मान गईं. राजीव गांधी के समय भारत के पास चीन से बेहतर हथियार हो गए थे. उन्होंने कहा कि कोई गड़बड़ होगी तो चीन से मुकाबला करेंगे. अटलजी से भी मुलाकात हुई थी. मोदीजी भी दुनिया का दौरा कर भारत का नाम ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं.

दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि भारत को राजनीतिक या आर्थिक ताकत की बजाय शिक्षा के जरिए वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ना चाहिए. चीन भी अब सत्तर साल से चली आ रही शिक्षा नीति को बदल रहा है. चीन और उसके थिंक टैंक समझ चुके हैं कि सत्तर साल से चली आ रही उनकी बल नीति अब सफल नहीं होगी. चीन जिस तिब्बती परंपरा को अब तक अपना बता रहा था, उसे भारत के नालंदा से आई परंपरा बताने लगा है. ऐसे में चीन और भारत के बीच दोस्ताना संबंध जरूरी हैं. उन्होंने कहा, मेरे पास धर्मशाला में हर हफ्ते चीनी आते हैं और भावुक होकर रोने लगते हैं.

भारत में रहने का अनुभव कैसा है, इस सवाल पर दलाई लामा ने कहा कि किसी ने मुझसे वापस जाने को नहीं कहा. अक्सर मैं अधिकारियों से मजाक में कहता हूं कि अगर भारत मुझसे कहे कि आप हमारे मेहमान नहीं रहे तो मेरे सामने संकट आ सकता है. शायद स्विटजरलैंड भागने के बारे में सोचना पड़े. उससे पहले तक मुझे कहीं नहीं जाना. तिब्बत में मुझे कई औपचारिकताएं माननी पड़ती थीं. परेशान रहता था. 1959 में तिब्बत छूट गया. मैं भले ही शारीरिक रूप से भारतीय नहीं हूं, लेकिन दिमागी तौर पर आधुनिक भारतीयों से ज्यादा भारतीय हूं. मैं सन ऑफ इंडिया हूं.

चीन के बारे में विचार व्यक्त करते हुए दलाई लामा ने कहा कि चीनी अधिकारी मुझसे वापस आने का आग्रह करते हैं. मैं कहता हूं, मुझे जल्दी नहीं है. कई चीनी यह कहते हैं कि मैं भारत में ही रहूं, क्योंकि वह विश्व का महानतम लोकतंत्र है. चीन में पाबंदियां लग जाएंगे. उन्होंने बताया कि भारत में पुलिस बाहरी खतरों से सुरक्षा के लिए हमेशा मेरे पास होती है. चीन की पुलिस सुरक्षा कम, निगरानी ज्यादा करती है. भारत सच में स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है, इसलिए मैं चीन की तुलना में भारत को प्राथमिकता देता हूं.

दलाई लामा का मौजूदा संकल्प है, आधुनिक शिक्षा को मन को शांति देने वाले प्राचीन भारतीय ज्ञान से जोड़ना. केजी से विश्वविद्यालय तक स्तर तक छात्रों को शारीरिक स्वच्छता के साथ ही भावनात्मक स्वच्छता के बारे में भी सिखाया जाना चाहिए, जिससे धर्म को मानने या न मानने वाले, दोनों तरह के लोग हर परिस्थिति में भावनाओं पर काबू रखना सीख सकें. उन्होंने बताया, हम कर्नाटक में तिब्बती बौद्ध मठ संस्था पुनर्स्थापित कर रहे हैं.
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