छत्तीसगढ़ सरकार की समिति छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने अजीत जोगी (Ajit Jogi) का आदिवासी का दर्जा समाप्त कर दिया है. सरकारी की ओर से गठित एक उच्च स्तरीय समिति ने जांच-पड़ताल के बाद घोषणा की है कि अजीत जोगी आदिवासी नहीं हैं और आदेश दिया है कि उनके आदिवासी होने के जितने भी प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं, वे सब वापस ले लिए जाएं. इसका मतलब यह है कि अजीत जोगी का विधायक का दर्जा समाप्त हो सकता है. वह मरवाही से विधानसभा सदस्य चुने गए हैं, जो कि आदिवासी (Tribal) के लिए आरक्षित सीट है.

जोगी परिवार ने सरकार की उच्च स्तरीय समिति के फैसले को पक्षपातपूर्ण बताते हुए इसके खिलाफ हाईकोर्ट में और जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कही है. अजीत जोगी के आदिवासी होने पर 18 साल पहले भाजपा के आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने सवाल उठाया था. अजीत जोगी और उनके परिजनों ने खुद को कंवर जनजाति से संबद्ध बताते हुए आदिवासी के लिए सुरक्षित सीटों से चुनाव लड़े थे. नंदकुमार ने अदालत में चुनौती दी थी. दस साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को उच्च स्तरीय समिति का गठन करते हुए यह तय करने का आदेश दिया था कि जोगी आदिवासी हैं या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) सरकार ने रीना बाबा साहेब कांगले (Reena Baba Saheb Kangle) की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसने 2017 में रिपोर्ट सौंपी थी. समति ने जांच-पड़ताल के बाद पाया कि अजीत जोगी आदिवासी नहीं हैं. इसके बाद समिति की रिपोर्ट को जोगी ने अदालत में चुनौती दी थी. जोगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने सात सदस्यों की समिति बनाने के लिए कहा था, जबकि इस समिति में चार सदस्य थे, जो विभिन्न पद संभाल रहे थे. यह सरकार की तरफ से नियमों का उल्लंघन है.

जोगी ने बताया कि विजिलेंस टीम हमारे पुश्तैनी घर पहुंची थी, जिसने हमें आदिवासी माना था. उच्च स्तरीय समिति ने विजिलेंस टीम की रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया. हम समिति के फैसले को चुनौती देंगे. अगर समिति हमें आदिवासी नहीं मानती तो क्या मानती है, समिति को स्पष्ट करना चाहिए. जब मेरे पिता आईएएस अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे, तब यह सवाल क्यों नहीं उठा? जोगी की आपत्तियों के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High court) ने फरवरी 2018 में सरकार को फिर से उच्च स्तरीय समिति गठित करने के निर्देश दिए थे. इस बार सरकार ने सचिव डीडी सिंह के नेतृत्व में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था, जिसने 21 अगस्त को सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है.

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रिपोर्ट पर जांच समिति के सदस्य के रूप में छह विभिन्न सरकारी अधिकारियों के दस्तखत हैं, जिसमें स्वष्ट रूप से कहा गया है कि जोगी अपने आदिवासी कंवर समुदाय से संबद्ध होने के साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सके. इस समिति ने बिलासपुर के जिला मजिस्ट्रेट से छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग नियम, 2013 के तहत कार्रवाई करने के लिए कहा है और निर्देश दिए हैं कि डीएसपी स्तर के अधिकारी को जोगी के नाम जारी सभी आदिवासी होने के प्रमाण पत्र उनसे वापस लेने की जिम्मेदारी सौंपी जाए.

गौरतलब है की अजीत जोगी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से इस्तीफा देकर अर्जुन सिंह के कहने से राजनीति में आ गए थे. मध्य प्रदेश से अलग होकर बने छत्तीसगढ़ राज्य के वह पहले मुख्यमंत्री थे. 2016 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ककर अपनी अलग छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस पार्टी बना ली थी. तब उनकी पार्टी ने विधानसभा की पांच सीटें जीती थीं. उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी मुझे आदिवासी ही मानते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुझे आदिवासी नहीं मानते हैं. उन्हीं की सरकार ने उच्च स्तरीय समिति बनाई है, जिसने मेरे आदिवासी होने पर सवाल उठाए हैं. मेरे पुत्र अमित को कंवर बताते हुए मुकदमा दर्ज हुआ है और मैं आदिवासी नहीं हूं.

अमित जोगी ने कहा कि उन्हें अदालत पर पूरा भरोसा है, वह अन्याय नहीं होने देगी. उन्होंने कहा, हम सिर्फ सबूत मांग रहे हैं कि किस आधार पर हमें आदिवासी नहीं माना जा रहा है, जिससे कि हम भी जवाब दे सकें. वे ग्राम सभा में हमारे पक्ष में पारित प्रस्ताव को नहीं मानते हैं. वे हाईकोर्ट का वह आदेश भी मानने को तैयार नहीं है, जिसमें मुझे कंवर जनजाति से संबंधित बताया गया है. यह सरकार का एकतरफा फैसला है, जिसे हम छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे. हमें पूरा भरोसा है कि अदालत हमारे साथ न्याय करेगी.
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