कांग्रेस के इकलौते राजकुमार राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद जब से पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है, वे ईद का चांद हो गए. वे न केवल लोकसभा चुनाव हारे बल्कि अपनी परंपरागत सीट अमेटी से भी स्मृति ईरानी से हार बैठे. उनकी लाज तो केरल की वायनाड सीट से कैसे तैसे बच गई लेकिन शायद इस हार के गम को वे अब तक नहीं भुला पाए. यही वजह रही कि वे लोकसभा सत्र में भी ‘मिस्टर इंडिया’ ही बने रहे. अब जब से हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों की तिथियों की घोषणा हुई है, स्टार प्रचारक होने के बावजूद वे अब तक चुनाव दंगल से गायब हैं. ऐसे में भाजपा सहित उनकी खुद की पार्टी के नेताओं ने उन्हें ‘रणछोड़ दास’ की पदवी से नवाजा है.
अब उनकी दी गई ये पदवी सही है या नहीं, ये तो पता नहीं लेकिन उनके करतबों से तो ये भी सही लग रही है. महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव से ठीक पहले उनका विदेश दौरे पर जाना एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन रहा है. भाजपा ने तो इसे भी अपने सोशल मीडिया के प्रचार का हथियार ही बना लिया. भाजपा का प्रचार है कि कांग्रेस दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में है ही नहीं इसलिए राहुल गांधी (Rahul Gandhi) प्रचार से पहले ही मैदान छोड़कर विदेश भाग गए हैं. यहां तक की कांग्रेस के कई नेता सामने न आने की शर्त पर अपनी पीड़ा बयां करते हुए दबी जुबान में कह रहे हैं कि एक प्रमुख नेता और स्टार प्रचारक को इस तरह चुनावी सरगर्मियों के बीच विदेश नहीं जाना चाहिए.
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हालांकि कांग्रेस का कहना है कि वे दो या तीन दिन के लिए ही बैंकाक गए थे और अब वापिस भी लौट आए. शुक्रवार को सूरत में उनकी एक केस को लेकर अदालत में पेशी भी थी. अब मुद्दा ये है कि आखिर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सच में रण छोड़ कर भाग गए है कि नहीं. जिस तरह से वे चुनावी प्रचार में नहीं उतर रहे, उससे तो यही साबित हो रहा है कि वे न केवल चुनावी माहौल से बल्कि राजनीति से भी पूरी तरह मुखर होते जा रहे हैं. बेहद अहम मुद्दों पर उनकी चुप्पी और CWC की बैठकों में उनकी गैर मौजुदगी इस बात को साबित करती है.
दोनों अहम राज्यों में 21 तारीफ को होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन हांफती और दम तोड़ती पार्टी के लिए पावर बूस्टर का काम कर सकते हैं. आगामी महीनों में झारखंड और दिल्ली में होने वाले वि.स. चुनावों में भी मौजूदा कांग्रेस की परफॉर्मेंशन का असर पड़ना निश्चित है. ऐसे में राहुल गांधी की असक्रियता पार्टी के साथ साथ उनके राजनीतिक करियर को भी बर्बादी के मुकाम पर लाकर खड़ा करती दिख रही है.
कांग्रेस से इस मुद्दे पर बात करते हुए साफ दिख रहा है कि सीनियर नेता भी इस बात पर मुंह छुपाते फिर रहे हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने तो हाल के बयान में इस बात का मुद्दा पूरजोर से उठाया है. राफेल मुद्दे पर पार्टी नेताओं के बेफिजूल बयानों पर भी राहुल गांधी की चुप्पी समझ से बाहर है.
खैर जो भी हो, कांग्रेस के लिए राहत देने वाली खबर ये है कि कुछ पार्टी नेताओं के अनुसार, राहुल जल्दी ही चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरेंगे. उनके देरी से प्रचार में उतरने की वजह हर बार की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. पीएम मोदी के दोनों प्रदेशों में चुनावी रैलियां मतदान के दो या चार दिन पहले रखी गई हैं और राहुल गांधी भी इसी रणनीति पर काम कर रहे हैं. मानना है कि अंतिम क्षणों में जनता के समक्ष किए गए वायदें उन्हें जीत की राह पर धकेल सकते हैं. इसका नजारा पिछले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में देखा जा चुका है जहां अंतिम समय में राहुल की चुनावी सभाओं में उनका जलवा जनता के सिर चढ़ गया और तीनों राज्यों में कांग्रेस सत्ता में आ गई.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लोकसभा चुनाव की हार का दंश भूल फिर से जीत की रणनीति बनाने में जुट गए हैं, इस बात से खुशी हुई कि कांग्रेस की राजनीति अभी तक जिंदा है. अगर राहुल जल्द ही चुनावी दंगल में नरेंद्र मोदी और अमित शाह से दो दो हाथ करने उतरते हैं तो उनपर लगा रणछोड़ दास का टैंग तो कम से कम हट ही जाएगा.