Loksabha Election: दौसा लोकसभा एक आरक्षित सीट है जहां मीणा समुदाय बहुसंख्या में मौजूद है. यहां से मीणा समुदाय ही किसी भी प्रतियाशी की हार जीत तय करता है. इस सीट पर मीणा वोटर्स की संख्या करीब 7 लाख है. यह सीट पिछले दो बार से बीजेपी के खाते में आ रही है. दौसा से मौजूदा सांसद जसकौर मीणा का टिकट काट बीजेपी ने कन्हैया लाल मीणा को मैदान में उतारा है. बीजेपी की हैट्रिक रोकने के लिए कांग्रेस ने मुरारीलाल मीणा पर दांव खेला है. बीएसपी की ओर से सोनू धानक्या दोनों को चुनौती दे रहे हैं. इसके बावजूद यहां असली दंगल भजन सरकार में मंत्री किरोड़ीलाल मीणा और कांग्रेस के सचिन पायलट में हो रहा है.
दौसा में पायलट परिवार का दबदबा
दरअसल, दौसा सीट पर कांग्रेस के लीडर राजेश पायलट फैमिली का दबदबा रहा है. कांग्रेस की ओर से इस परिवार सात बार सांसद दिए हैं. राजेश पायलट खुद इस सीट से 5 बार सांसद चुने गए. पहली बार साल 1984 आम चुनाव में राजेश पायलट कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए थे. उसके बाद 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में भी राजेश पायलट ने जीत दर्ज की.
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उनके निधन के बाद राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट ने उपचुनावों में यहां से जीत दर्ज की. 2004 में सचिन पायलट यहीं से जीत संसद पहुंचे. उसके बाद दौसा सीट आरक्षित हो गयी और 2009 में किरोड़ीलाल मीणा ने यहां से जीत दर्ज की. उसके बाद से बीजेपी को यहां से जीत मिल रही है. कांग्रेस को यहां से 12 और बीजेपी को तीन बार दौसा सीट से जीत मिली है.
दौसा का जातिगत गणित
दौसा लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख मतदाता हैं. इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा मीणा वोटर्स की संख्या है. मीणा मतदाताओं की संख्या करीब 7 लाख है. जबकि ब्राह्मण समुदाय के वोटर्स की संख्या 4 लाख है. इनके अलावा गुर्जर और माली ढाई-ढाई लाख हैं. इस सीट पर अनुसूचित जाति (SC) की आबादी 21.08 फीसदी है. जबकि अनुसूचित जाति (SC) की आबादी 21.08 फीसदी है. जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी 25.98 फीसदी है.
किरोड़ी-पायलट में जंग
किरोड़ी मीणा समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं और बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं. युवाओं सहित मीणा जाति के सभी छोटे बड़े नेताओं का समर्थन किरोड़ी को प्राप्त है. हालांकि मीणा वोटर्स का बीजेपी और कांग्रेस में बंटना तय है. वहीं सचिन पायलट राजस्थान में गुर्जरों के सबसे बड़े नेता हैं. उन्हें लामबंद करना पायलट का काम है. चूंकि पायलट परिवार और स्वयं सचिन पायलट का दौसा में रसूख है, इसके चलते गुर्जर वोट बैंक को कांग्रेस के पक्ष में करना उनके लिए बड़ा टास्क है. माली समुदाय और अनुसूचित जाति, जनजाति हमेशा से कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है. दौसा किरोड़ी और पायलट दोनों की नाक और प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी है. ऐसे में मुकाबला काफी कड़ा होने की उम्मीद है.
8 विधानसभा सीटों का गणित
दौसा लोकसभा सीट के तहत 8 विधानसभाएं आती हैं. इसमें जयपुर की बस्सी और चाकसू सीट के अलावा अलवर की थानागाजी विधानसभा सीट शामिल शामिल है. इसके अलावा दौसा जिले की बांदीकुई, महुवा, सिकराय, दौसा और लालसोट सीटें शामिल हैं. इनमें से 5 सीटों बीजेपी और कांग्रेस को 3 सीटों पर जीत मिली है. कांग्रेस को बस्सी, थानागाजी और दौसा में जीत मिली है. बाकी सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. बस्सी से लक्ष्मण मीणा, चाकसू से रामावतार बैरवा, थानागाजी से कांति प्रसाद मीणा, बांदीकुई से भागचंद टांकड़ा, महुवा से राजेंद्र मीणा, सिकराय से विक्रम बंशीवाल, दौसा से मुरारी लाल मीणा और लालसोट से रामबिलास मीणा विधायक हैं.
दौसा का सियासी समीकरण
बीते आम चुनावों की बात करें तो यहां 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. जसकौर मीणा ने कांग्रेसी उम्मीदवार सविता मीणा को 78 हजार वोटों के अंतर से हराया था. 2014 में बीजेपी के हरीश मीणा यहां से विजयी हुए थे. इस बार दौसा से बीजेपी ने कन्हैया लाल मीणा और कांग्रेस ने मुरारीलाल मीणा को उतारा है. बीएसपी की ओर से सोनू धानक्या और मोहनलाल मीणा एवं डॉ.रामस्वरूप मीणा बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं. हालांकि मुकाबला कन्हैयालाल और मुरारीलाल मीणा से अधिक किरोड़ी बनाम पायलट में होता नजर आ रहा है. अब देखना रोचक रहेगा कि मीणा समुदाय किरोड़ी को यहां से जीत दिलाते हैं या पायलट परिवार को सर्वेसर्वा बनाते हुए जीत का सेहरा बांधते हैं.