गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का बड़ा सियासी दांव, नैया लगेगी पार? विपक्ष हुआ हमलावर

गुजरात में भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी चरम पर, इससे निजात पाने के लिए बीजेपी ने छोड़ा समान नागरिक संहिता लागू करने नया शिगूफा, बोला विपक्ष- बीजेपी इसकी चर्चा इसलिए कर रही है क्योंकि चुनाव नजदीक है लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ेगा जनता पर

भाजपा के नए सियासी पैंतरे पर तिलमिलाया विपक्ष
भाजपा के नए सियासी पैंतरे पर तिलमिलाया विपक्ष

Politalks.News/Gujarat. 2 नवंबर के बाद कभी भी चुनाव आयोग विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर सकता है. ऐसे में सभी सियासी दल उसी आधार पर अपनी आगे की चुनावी रणनीति बनाने में जुट गए हैं. प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी चरम पर है और उसे लेकर विपक्ष दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी बीजेपी पर हमलावर है. लेकिन इन सब से निजात पाने के लिए बीजेपी ने बड़ा सियासी दांव खेला है. शनिवार को गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में बड़ा फैसला लेते हुए यूनिफार्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए समिति के गठन को हरी झंडी दे दी है. इसके बाद से प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है. गुजरात सरकार के इस फैसले का कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित AIMIM भी अपना विरोध दर्ज करा रही है. विपक्षी दलों का कहना है कि, ‘ये बीजेपी की एक चाल है. जब भी किसी राज्य के चुनाव पास आते हैं ये लोग इस तरह के काम में जुट जाते हैं.’

गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने प्रदेश यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं. शनिवार को हुई कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने गुजरात में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए समिति के गठन को हरी झंडी दे दी है. इसके लिए सभी पहलुओं का मूल्यांकन करने के लिए उत्तराखंड की तरह एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तहत एक समिति गठित होगी. केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि, ‘समिति सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में होगी और इसमें तीन से चार सदस्य होंगे.’ बीजेपी जहां अपने इस दांव के साथ चुनावी जीत का दम भर रही है तो वहीं उसे ये भी पता है कि उसका ये दांव उसपर उल्टा भी पड़ सकता है.

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यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने बीजेपी पर हमला बोला है. हालांकि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए या नहीं? इस सवाल के जवाब से दोनों ही पार्टी बचती नजर आ रही है. कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा, ‘संविधान के अनुसार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है ही नहीं. ये केंद्र सरकार का अधिकार है. असली मुद्दों पर बीजेपी बात कर नहीं रही है. बेरोजगारी, एजुकेशन, महंगाई पर बीजेपी चर्चा नहीं करती है.’ वहीं आम आदमी पार्टी का कहना है कि, ‘चुनाव से पहले बीजेपी कुछ भी कर लें, इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. गुजरात की जनता ने इस बार बदलाव लाने की ठान ली है. बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा इसलिए कर रही है क्योंकि चुनाव नजदीक है लेकिन इसका कोई असर जनता पर नहीं पड़ेगा.’

इसी कड़ी में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की भी इस मामले में प्रतिक्रिया सामने आई है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि, ‘जैसे ही चुनाव करीब आते है बीजेपी ऐसे मुद्दों को उठाना शुरू कर देती है. ये बीजेपी की पुरानी आदत है. उसी आदत को उन्होंने दोहराया है. अमित शाह ने कहा था कि कोविड काल में रुपानी ने अच्छा काम किया, फिर उनको हटा क्यों दिया? महंगाई, बेरोजगारी एक मुद्दा है. उन पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लाइए. भारत में जो राजनीतिक दल खुद को सेक्युलर कहते है वो मुसलमान का नाम लेने से कतराते हैं और इसका क्रेडिट मैं भारत के प्रधानमंत्री को देना चाहता हूं.’ वहीं बिलकिस बानो मामले का जिक्र करते हुए ओवैसी ने कहा कि, ‘अगर आज बिलकिस बानो की बेटी जिंदा होती तो वह स्कूल जाती. इन मुद्दों पर लाइए सिविल कोड.’

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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि आखिर ये यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या? यूनिफार्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का मतलब है कि सभी नागरिकों के लिए एक समान नियम. यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, फिर वह चाहे किसी भी धर्म या जाति का हो. इसके लागू होने पर शादी, तलाक, जमीन जायदाद के बंटवारे सभी में एक समान ही कानून लागू होगा, जिसका पालन सभी धर्मों के लोगों को करना अनिवार्य होगा.

दरअसल, देश के संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा है और इसकी मूल भावना समानता की है. देश का कानून सब पर समान रूप से लागू होता है. लेकिन अभी भी धर्म के मामलों में रियायतें मिली हुई हैं. जिसके चलते कुछ मामलों में देश का कानून प्रभावी नहीं रह पाता है और धर्म के आधार पर मिली हुई रियायतें समानता और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को चोट पहुंचाती हैं. यही वजह है कि वर्ष 1986 में शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कही थी.

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