बीजेपी नेता अश्विनी वैष्णव को राज्यसभा भेजने के बाद एकबारगी लगने लगा था कि अब ओडिशा में बीजेपी और बीजद के बीच गठबंधन हो गया है. हालांकि लोकसभा चुनाव को देखते हुए सभी समीकरण फिर से बदलते हुए नजर आ रहे हैं. यह भी लगने लगा है कि आम चुनाव को लेकर नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजेडी और बीजेपी के बीच गठबंधन पर मुहर नहीं लग पायी है. सीट बंटवारे को लेकर बातचीत अभी भी लटकी हुई है. खासतौर पर विधानसभा सीटों पर भी, क्योंकि राज्य में लोकसभा के साथ साथ विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. हालांकि लोकसभा में बीजेपी के दो तिहाई सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति है. यानी सीधे तौर पर कहा जाए तो लोकसभा में बीजद और बीजेपी दोस्ती यारी निभा रहे हैं लेकिन विधानसभा में एक दूसरे के सामने खड़े होने में भी परहेज नहीं कर रहे हैं.
अंदरखाने से खबर आ रही है कि नवीन पटनायक वाली सत्ताधारी बीजद विधानसभा की 147 में से 100 सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही है. वहीं बीजेपी पटनायक की ओर से इतनी बड़ी हिस्सेदारी पर सहमत नहीं हो रही है. इसके बजाए दोनों दलों के बीच वही हिस्सेदारी चाह रही है जो 2000-09 में थी. उस वक्त बीजेपी और बीजद में 63-84 की भागीदारी थी. खास बात ये भी है कि ओडिशा में प्रमुख मुख्य पार्टी भी बीजेपी ही है.
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इधर बीजेपी नवीन पटनायक को यह समझाने का प्रत्यन्न कर रही है कि प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजद के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर बह रही है जिसके चलते बीजेपी यहां बेहतर प्रदर्शन करेगी. ऐसे में गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ना और उसके बाद विधानसभा चुनाव में 50 सीटों से नीचे चुनावी मैदान में उतरना पार्टी के लिए बिलकुल भी तर्क संगत नहीं है. वहीं बीजेपी की ओडिशा इकाई की मानें तो यहां पार्टी अगर अकेले मैदान में आएगी तो निश्चित तौर पर ओडिशा में कमल खिलाने में कामयाब होगी.
वहीं बात करें लोकसभा चुनाव की तो दोनों दल एक तिहाई सीट पर लड़ने को तैयार हैं. कुल 21 में से बीजेपी 14 सीटों पर तो बीजद 7 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. वहीं बीजद भुवनेश्वर और पुरी सीट चाहती है तो इसका सुलझाड़ा आसानी से किया जा सकता है. 2009 की बात करें तो बीजद ने यहां 21 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी. बीजेपी ने 8 और कांग्रेस के हिस्से एक सीट आयी थी. वहीं 2019 में अकेले लड़ते हुए नवीन पटनायक की बीजद ने 146 में से 112 सीटों पर जीत हासिल की थी.
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इधर, बीजद के सियासी समीकरणों की मानें तो पिछले विधानसभा चुनावों में 112 सीटों पर जीत हासिल करने वाली पार्टी 100 से कम सीटों पर चुनाव लड़ती है तो उसके लिए अपने नेताओं को मैनेज करना मुश्किल होगा. जहां जहां विद्रोही उम्मीदवार मैदान में होंगे, उन सभी जगहों पर पार्टी को इसकी कीमत चुकानी होगी. ऐसे में नवीन पटनायक का एकतरफा राज समाप्त होगा और बीजद का जनाधार और वैल्यु भी कम होगी. अब देखना ये होगा कि लोकसभा चुनाव के दोस्त ओडिशा विधानसभा चुनाव में अपनी यारी निभा पाते हैं या फिर एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटते हैं.