चुनाव विशेष: क्या पार्टी की इकलौती सीट को फिर से फतेह कर पाएंगे जीतनराम मांझी?

पिछले वि.स.चुनावों में 21 सीटों पर लड़ने वाली हिंदूस्तान आवाम मोर्चा (HAM) केवल एक सीट पर गई थी सिमट, विजेता सीट ने मांझी को बनाया बिहार का सबसे बड़ा दलित नेता, मुख्यमंत्री बनने वाला पहला दलित चेहरा हैं मांझी

Jitan Ram Manjhi (ham)
Jitan Ram Manjhi (ham)

Politalks.News/Bihar. हिंदूस्तान आवाम मोर्चा (HAM-S) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी इस बार भी चुनावी मैदान में अपनी और अपनी पार्टी की किस्मत आजमाएंगे. महादलित मुशहर समुदाय से आने वाले 75 वर्षीय जीतनराम मांझी (Jitin Ram Manjhi) बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री भी हैं. उन्होंने 2014 से 2015 के बीच बिहार के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था. मांझी पहले जदयू के नेता थे लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के कहने के बावजूद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा न देने के चलते मांझी को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. उसके बाद मांझी ने हम पार्टी का गठन कर 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई, हालांकि 21 सीटों पर लड़ने वाली हम केवल एक ही सीट पर जीत दर्ज कर पाई. ये सीट थी गया जिले की इमामगंज, जहां से जीतनराम मांझी जीतकर सदन में पहुंचे.

इमामगंज से जदयू के उदय नारायण चौधरी का काफी दबदबा था और वे पहले भी यहां से विधायक रह चुके थे. लेकिन अल्प समुदाय की अच्छी तादात होने की वजह से मांझी से ये सीट चुनी. पार्टी के निकाले जाने के बाद से ही मांझी ने इस सीट पर अपना चुनावी प्रचार करना शुरु कर दिया. इमामगंज में क़रीब 15 फ़ीसदी वोटर मुसलमान हैं. लंबे समय से यहां का पिछड़ा वर्ग जदयू को सपोर्ट कर रहा था इसलिए ये सीट लगातार उदय चौधरी के पास थी लेकिन जब मांझी ने यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो उच्च वर्ग मांझी के समर्थन में आ गया.

इसके पीछे वजह भी रही. दरअसल पिछले कई सालों से मुसलमान तबका नक्सलियों का शिकार रहा था और वो इस सब के लिए चौधरी को जिम्‍मेदार मानते थे. माना ये भी जाता है कि रंगदारी पर रोक को लेकर कोई न ही जदयू और न ही चौधरी ने कड़े क़दम उठाए. ऐसे में इलाक़े के माओवादी चौधरी का खुलकर समर्थन करते थे.

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यहां ये बताना भी जरूरी है कि नई पार्टी से चुनाव लड़ रहे जीतनराम एक सेफ गेम खेलकर चल रहे थे. उन्होंने दो सीटों पर चुनाव लड़ा. इमामगंज सीट के साथ मांझी ने अपनी पिछले विधानसभा सीट मखदूमपुर से भी चुनावी पर्चा भरा. वे यहां से पहले भी विधायक रह चुके थे लेकिन इमामगंज को उन्होंने मखदूमपुर से ज्यादा सुरक्षित सीट समझा. इसकी दो वजह रहीं.

पहली- इमामगंज सीट पर चौधरी से पहले ही वहां के वोटर नाराज चल रहे थे. दूसरी- यहां की 38 फीसद आबादी अनुसूचित जाति व जनजाति की है. इमामगंज विधानसभा क्षेत्र में 7 फीसद वोटर अगड़ी जाति और 31 फीसद दलित समाज के है जिनमें से 19 फीसदी वोटर मांझी समुदाय से आते हैं. 15 फीसद आबादी मुस्लिम है. ऐसे में मांझी के लिए ये सीट जीत के लिहाज से काफी उपयुक्त थी.

ऐसे में मांझी ने यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान किया, जदयू ने अपनी परम्परागत सीट पर जोखिम न लेते हुए एक बार फिर उदय नारायण चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा. चुनावी परिणाम आए तो मांझी की हिंदूस्तान आवाम मोर्चा तो कुछ खास नहीं कर पाई लेकिन मांझी अपनी एक सीट बचा ले गए. उन्होंने इमामगंज विधानसभा सीट पर जदयू के उदय चौधरी को मात दी और विधानसभा का टिकट कटाया.

वहीं मखदूमपुर सीट पर मांझी दूसरे नंबर पर रहे. यहां राजद के सूबेदार दास विजेता रहे. लेकिन मांझी ने इमामगंज सीट फतह कर नीतीश कुमार पर दो तरफा वार किया. पहला- उन्होंने जदयू की परम्परागत सीट रही इमामगंज पर जीत दर्ज कर नीतीश कुमार से अपना हिसाब चुकता कर लिया. दूसरा- इस सीट पर जीत दर्ज कर वे बिहार में सबसे बड़े दलित नेता बन गए. इसका फायदा उन्हें इस चुनाव में भी मिल रहा है जहां उन्हें लेकर महागठबंधन और जदयू दोनों में कैट फाइट चल रही थी लेकिन अंत में छीका जदयू के भाग्य में फूटता दिख रहा है.

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मांझी एनडीए का हिस्सा बनने वाले हैं और जदयू से गठबंधन करेंगे. वैसे नीतीश कुमार चाहते हैं कि मांझी पार्टी समेत जदयू में विलय कर लें लेकिन नीतीश को बिहार की राजनीति का चाणक्य कहा जाता है और मांझी इस बात को भली भांति समझते हैं. ऐसे में मांझी एक पार्टी प्रमुख बनकर ही गठबंधन में शामिल होंगे. हालांकि उनकी पार्टी का पिछला प्रदर्शन काफी कमजोर रहा लेकिन बिहार के सबसे बड़े दलित नेता के तौर पर जीतनराम मांझी का चेहरा दलित वोटर्स में काफी लोकप्रिय है और महागठबंधन भी इस बात को अच्छी तरह जानता है. गठबंधन के चलते जदयू और बीजेपी के वोट भी मांझी को ही मिलेंगे, ऐसे में इस सीट से मांझी के पहाड़ को हिला पाना राजद और महागठबंधन के लिए मुश्किल होने वाला है.

खैर ये सियासी समर है और पूर्व विधायक उदय नारायण चौधरी भी टिकट की जुगत में लगे हुए हैं. ऐसे में मांझी को इस सीट से टिकट पाने में मुश्किल हो सकती है लेकिन माना यही जा रहा है कि मांझी सेफ सीट से ही चुनावी मैदान में उतरेंगे. अगर गठबंधन के तहत ये सीट हिंदूस्तान आवाम मोर्चा की झोली में नहीं आई तो फिर वे मखदूमपुर सीट पर फिर से दांव खेलेंगे जो इस बार उनके लिए सुरक्षित सीट बन सकती है. इस सीट से वे विधायक रह चुके हैं और पिछले चुनाव में हम पार्टी से दूसरे नंबर पर रहे थे. ऐसे में उनकी दलित नेता की छवि के चलते दोनों सीटें आसानी से उनके कब्जे में आ जाएंगी, ऐसा माना जा रहा है.

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