राहुल गांधी को खुश करके मुख्यमंत्री पद बचाना चाहते हैं गहलोत- BJP के तंज के बीच पारित हुए दो विधेयक

मैं कांग्रेस का पंडित तो नहीं, लेकिन मुझे आभास हो रहा है कि जो समझौता सरकार बचाने के दौरान अशोक गहलोत, सचिन पायलट और कांग्रेस आलाकमान के बीच हुआ था, अब उसे पूरा करने का आ चुका है समय- राजेंद्र राठौड़, विधानसभा में कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव की गूंज के बीच सरकार ने पारित कराए दो विधेयक

राज्यपाल ने लौटाया बिल विधानसभा में हुआ पारित
राज्यपाल ने लौटाया बिल विधानसभा में हुआ पारित

Politalks.News/Rajasthan. एक तरफ जहां कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को लेकर दिल्ली में सियासी उठापठक तेज हो गई है तो वहीं बुधवार को राजस्थान विधानसभा परिसर में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद की गूंज सुनाई दी. बुधवार को दिल्ली पहुंचे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी से कई मुद्दों को लेकर मुलाकात की. सीएम गहलोत के इस दिल्ली दौरे को लेकर प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने सीएम गहलोत की जमकर चुटकी ली. विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बात करते हुए बीजेपी नेताओं ने कहा कि, ‘अशोक गहलोत इस बार अपना जादू नहीं चला पाए इसी कारण विधानसभा का सत्र इतना छोटा बुलाया गया है.’ वहीं बुधवार को विधानसभा में विपक्ष के हंगामे के बीच कृषि उपज मंडी संशोधन बिल के साथ साथ राजस्थान अधिवक्ता कल्याण निधि विधेयक भी सरकार ने पारित करा लिया है. इस दौरान बीजेपी ने सदन से बॉयकॉट कर दिया.

कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के लिए सम्भावित उम्मीदवार के तौर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे चल रहा है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि जल्द ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसके लिए अपना नामांकन भरने वाले हैं. यही नहीं चर्चा ये भी है कि सीएम गहलोत अगर अध्यक्ष बनते हैं राजस्थान में परिवर्तन होना लाजमी है. वहीं बुधवार को राजस्थान विधानसभा परिसर में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद की गूंज सुनाई दी. प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव में सीएम गहलोत का नाम सामने आने पर चुटकी ली. विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले पत्रकारों से बात करते हुए उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कांग्रेस के एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत का जिक्र करते हुए सीएम गहलोत पर तंज कसा. राठौड़ ने कहा कि, ‘मुझे नहीं लगता कि किसी भी राजनीतिक दल में राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे बड़े पद पर रहने के बाद कोई व्यक्ति दूसरे किसी पद पर काम कर सकता है.’

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पत्रकारों से बात करते हुए राजेंद्र राठौड़ ने कहा, ‘मैं कांग्रेस का पंडित तो नहीं, लेकिन मुझे आभास हो रहा है कि जो समझौता सरकार बचाने के दौरान अशोक गहलोत, सचिन पायलट और कांग्रेस आलाकमान के बीच हुआ था, अब उसे पूरा करने का समय आ चुका है.’ वहीं बीजेपी नेता वासुदेव देवनानी ने कहा कि, ‘मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार अपना जादू नहीं चला पाए. स्थिति तो इतनी खराब है कि मुख्यमंत्री को विधायकों का समर्थन दिखाने के लिए रात 10 बजे बैठक बुलाना पड़ी. केवल राहुल गांधी को खुश करके मुख्यमंत्री अपना पद बचाना चाहते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस बार वो इसमें सफल हो पाएंगे.’

बुधवार को विधानसभा में प्रदेश सरकार ने दो विधेयक पारित करवाए. सदन में में हंगामे के बीच कृषि उपज मंडी संशोधन बिल पारित कर दिया गया. हालांकि भाजपा विधायकों ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए सदन से वाकआउट कर दिया. भाजपा ने इस संशोधन बिल को काला कानून करार दिया है. भाजपा के तमाम विधायकों ने इसे किसान विरोधी कानून बताते हुए जनमत जानने के लिए भेजने की मांग की. विधेयक पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि, ‘आज देश भर के सभी राज्यों में सर्वाधिक मंडी टैक्स केवल राजस्थान की गहलोत सरकार ही लगा रही है. ऐसे में यह काला कानून नहीं है तो आखिर क्या है.’ वहीं उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि, ‘इस संशोधन के जरिए यूजर चार्जेज में बढ़ोतरी की गई है. उससे सीधे तौर पर किसान प्रभावित होंगे.’ हालांकि विपक्ष के हंगामे के बीच सरकार ने इस विधेयक को पारित करवा लिया.

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वहीं मार्च 2020 में जिस राजस्थान अधिवक्ता कल्याण निधि विधेयक को कुछ टिप्पणियों के साथ वापस लौटा दिया गया था, बुधवार को उसी विधेयक को कुछ संशोधनों के साथ सदन में पारित कर दिया गया. दरअसल 7 मार्च 2020 को राजस्थान विधानसभा में अधिवक्ता कल्याण निधि विधेयक 2020 को पारित किया गया था लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र ने 1 साल बाद 2021 में इस विधेयक को कुछ टिप्पणियों के साथ वापस लौटा दिया था. सदन में जब इस विधेयक पर चर्चा शुरू हुई तो प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने इसका हवाला दिया और यह भी कहा कि, ‘राजस्थान को कहीं पश्चिम बंगाल मत बना देना. राज्यपाल ने जिन टिप्पणियों और आपत्तियों के साथ इस बिल को भेजा था उसमें सुधार करना बेहद जरूरी है लेकिन सरकार ने इसमें जल्दबाजी में संशोधन किया है. राज्यपाल के अधिकारों का हनन मौजूदा गहलोत सरकार लगातार करती आई है.’

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