Politalks.News/Delhi/SupremeCourt. लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ यानी मीडिया को जनहित का संरक्षक और सरकार व आम लोगों के बीच के सेतु के रूप में देखा जाता है. यही नहीं राजनीतिक पहलुओं में भी मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लेकिन दुर्भाग्यवश, मीडिया ज़िम्मेदार पत्रकारिता पर ध्यान केंद्रित ना करके खुले तौर हेट स्पीच के साथ बेबुनियादी मुद्दों पर चर्चा करने का एक केंद्र बन चूका है. मीडिया को गलत तरीके से प्रयोग करके लोगों के बीच मतभेद पैदा किया जा रहा है. इन्हीं कुछ मुद्दों को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय मीडिया के साथ साथ केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई है. हेट स्पीच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मेनस्ट्रीम मीडिया के साथ साथ सोशल मीडिया का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘सबसे ज्यादा हेट स्पीच मीडिया और सोशल मीडिया पर है, हमारा देश किधर जा रहा है? यह एंकर की जिम्मेदारी है कि वह किसी को नफरत भरी भाषा बोलने से रोके. प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है लेकिन, ये पता होना चाहिए कि एक रेखा कहां खींचनी है.’
आपको बता दें कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल दायर की गई हेट स्पीच की याचिकाओं पर सुनवाई की गई. जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने इस दौरान भारतीय मीडिया के साथ साथ केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा. कोर्ट ने कहा कि, ‘न्यूज चैनल भड़काऊ बयानबाज़ी का प्लेटफार्म बन गए हैं. प्रेस की आजादी अहमियत रखती है लेकिन बिना रेगुलेशन के टीवी चैनल हेट स्पीच का जरिया बन गए है. यह देखना एंकरों की जिम्मेदारी है कि कहीं भी हेट स्पीच न हो. प्रेस की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है लेकिन उन्हें अमेरिका जितनी आजादी नहीं है कि वो कुछ भी चलाएं. प्रेस को ये पता होना चाहिए कि एक रेखा कहां खींचनी है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है लेकिन, TV पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है.’
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सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, ‘राजनीतिक दल इससे पूंजी बनाते हैं और टीवी चैनल एक मंच के रूप में काम कर रहे हैं. आज जब आप टीवी चालू करते हैं तो हमें हेट स्पीच के अलावा कुछ नहीं मिलता.’ सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, ‘आप मेहमानों को बुलाते हैं और उनकी आलोचना करते है. हम किसी खास एंकर के नहीं बल्कि आम चलन के खिलाफ हैं, एक सिस्टम होना चाहिए, जो कि पैनल डिस्कशन और डिबेट्स, इंटरव्यू को देखें. अगर एंकर को समय का एक बड़ा हिस्सा लेना है तो कुछ तरीका निर्धारित करें. सवाल लंबे होते हैं जो व्यक्ति उत्तर देता है उसे समय नहीं दिया जाता. गेस्ट को शायद ही कोई समय मिलता है.’ इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछते हुए कहा कि, ‘इस पर अब तक केंद्र सरकार चुप क्यों है? वो आगे क्यों नहीं आता? राज्य को एक संस्था के रूप में जीवित रहना चाहिए. केंद्र को पहल करनी चाहिए और इसके खिलाफ एक सख्त नियामक तंत्र स्थापित करना चाहिए.’
वहीं कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उठे सवाल कि, ‘नफरत फैलाने वाले शो दर्शकों को क्यों पसंद आते हैं?,’ इस पर कोर्ट ने कहा कि ‘किसी रिपोर्ट में नफरत से भरी भाषा कई लेवल पर होती है. ठीक वैसे, जैसे किसी को मारना. आप इसे कई तरह से अंजाम दे सकते हैं. चैनल हमें कुछ विश्वासों के आधार पर बांधे रखते हैं लेकिन, सरकार को प्रतिकूल रुख नहीं अपनाना चाहिए. उसे कोर्ट की मदद करनी चाहिए. अगर किसी एंकर के कार्यक्रम में भड़काऊ कंटेंट होता है तो उसको ऑफ एयर किया जाना चहिये और उसपर जुर्माना भी लगाना चहिये.’ दरअसल हरिद्वार में पिछले साल आयोजित ‘धर्म संसद’ कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुवनवाई हुई थी.
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यहां आपको बता दें कि इससे पहले चुनाव के दौरान हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल किया था और कहा था कि ‘उम्मीदवारों को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता जब तक केंद्र ” हेट स्पीच ” या “घृणा फैलाने” को परिभाषित नहीं करता. आयोग केवल IPC या जनप्रतिनिधित्व कानून का उपयोग करता है. उसके पास किसी राजनीतिक दल की मान्यता वापस लेने या उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का कानूनी अधिकार नहीं है. अगर कोई पार्टी या उसके सदस्य हेट स्पीच में लिप्त होते हैं तो उसके पास डी रजिस्टर करने की शक्ति नहीं है. चुनाव आयोग ने केंद्र के पाले में गेंद डाल दी थी. यही कारण है कि आज सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच से जुड़े मुद्दे पर केंद्र सरकार को लताड़ लगाई है.